श्रीनगर में नरेंद्र मोदी की रैली के मद्देनज़र दसवीं बोर्ड की परीक्षा टाले जाने समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर/pixabay)

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जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म होने के पांच साल बाद पहली बार सूबे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के मद्देनजर जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने 7 मार्च को होने वाली दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा स्थगित कर दी है. द टेलीग्राफ के अनुसार, स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का जिक्र नहीं किया गया है, हालांकि इस यात्रा के लिए राज्य में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है. स्कूल शिक्षा बोर्ड ने कहा है कि ‘अपरिहार्य परिस्थितियों के मद्देनजर कक्षा दस का कृषि, परिधान, मेकअप और होम फर्निशिंग, ऑटोमोटिव, सौंदर्य और कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल, आईटी और आईटीईएस, शारीरिक शिक्षा और खेल, प्लंबिंग/रिटेल, सुरक्षा, दूरसंचार, पर्यटन और आतिथ्य, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर सहित व्यावसायिक विषयों की परीक्षा को 4 अप्रैल के लिए स्थगित कर दिया गया है.’ दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं 7 मार्च से 3 अप्रैल के बीच आयोजित होने वाली थीं. प्रैक्टिकल इम्तिहानों की तारीखों की घोषणा बाद में की जानी थी. 7 मार्च को मोदी श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में एक रैली को संबोधित करेंगे, जो 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद उनकी पहली रैली होगी.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अभय एस. ओका ने कहा है कि अदालत से संबंधी कार्यक्रमों पूजा-अर्चना बंद होनी चाहिए. बार एंड बेंच के अनुसार, जस्टिस ओका ने सुझाव दिया है कि ऐसे कार्यक्रमों की शुरुआत से पहले संविधान की प्रस्तावना की एक प्रति के सामने झुककर धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. 3 मार्च को पुणे के पिंपरी-चिंचवाड़ में एक नए न्यायालय भवन के शिलान्यास कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि ‘कभी-कभी न्यायाधीशों को अप्रिय बातें कहनी पड़ती हैं. मैं कुछ अप्रिय बात कहने जा रहा हूं. मुझे लगता है कि हमें अदालतों में कार्यक्रमों के दौरान पूजा-अर्चना बंद कर देनी चाहिए. इसके बजाय, हमें संविधान की प्रस्तावना की एक प्रति रखनी चाहिए और एक कार्यक्रम शुरू करने के लिए उसके सामने झुकना चाहिए.’

सुप्रीम कोर्ट ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई को लेकर उत्तराखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बुधवार को ‘कुछ राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिए पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाने’ के लिए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) किशन चंद को फटकारते हुए अदालत ने कहा कि उन्होंने जनता के भरोसे को कचरे के डिब्बे में फेंक दिया है. सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियां पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील गौरव बंसल द्वारा दायर याचिका पर आई, जिन्होंने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगर सफारी बनाने के उत्तराखंड सरकार के प्रस्ताव को चुनौती दी थी. इस पर जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में यह संदेह से परे स्पष्ट है कि तत्कालीन वन मंत्री और डीएफओ खुद को ही लिए कानून मान रहे थे. उन्होंने कानून की घोर अवहेलना करते हुए और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए पर्यटन को बढ़ावा देने के बहाने इमारतें बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की अवैध कटाई की. यह एक क्लासिक मामला है जो दिखाता है कि कैसे नेताओं और नौकरशाहों ने जन विश्वास के सिद्धांत को कूड़ेदान में फेंक दिया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के असम दौरे से चार दिन पहले विपक्ष के 16 राजनीतिक दलों के संयुक्त फोरम (यूओएफए) ने उनके कार्यालय को पत्र लिखकर कहा है कि यदि उत्तर-पूर्वी राज्य में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) लागू किया जाता है तो हालात अस्थिर होने की संभावना है. रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 10 फरवरी को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा था कि सीएए को आगामी लोकसभा चुनावों से पहले अधिसूचित और लागू किया जाएगा, जिसके बाद असम में अधिनियम के प्रति सार्वजनिक प्रतिरोध फिर से सामने आ गया है. अब यूओएफए ने घोषणा की कि अगर असम में यह अधिनियम लागू किया गया तो वह विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला शुरू करेगा, जिसमें राज्य के प्रशासनिक मुख्यालय गुवाहाटी में जनता भवन का ‘घेराव’ भी शामिल होगा. वहीं, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) ने भी सीएए लागू किए जाने की सूरत में आंदोलन करने की घोषणा की है. यूओएफए में 16 पार्टियां शामिल हैं, जो कांग्रेस, रायजोर दल, असम जातीय परिषद, आम आदमी पार्टी, असम तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई (एम), सीपीआई, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, सीपीआई (एम-एल), एनसीपी- शरद पवार (असम), समाजवादी पार्टी (असम), पूर्वांचल लोक परिषद, जातीय दल, एपीएचएलसी (असम), शिव सेना (असम) और राष्ट्रीय जनता दल (असम) हैं.

तेलंगाना के एक 30 वर्षीय व्यक्ति, जिन्हें धोखे से यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध में शामिल किया गया था, की कथित तौर पर युद्ध के दौरान मौत हो गई है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस सप्ताह की शुरुआत में हैदराबाद निवासी मोहम्मद अफसान (30) के परिवार ने अख़बार को बताया था कि कैसे उन्हें धोखा दिया गया था कि वह रूसी सरकारी कार्यालयों में सहायक के रूप में नौकरी के लिए आवेदन कर रहे थे, लेकिन उन्हें मोर्चे पर जाने के लिए मजबूर किया गया. अफ़सान के परिवार ने बताया कि वे नवंबर 2023 में मॉस्को गए थे और रूस-यूक्रेन सीमा से आखिरी वीडियो कॉल 31 दिसंबर को की थी. उनके भाई ने बताया, ‘उसके बाद, उससे कोई संपर्क नहीं हुआ; हमें हाल ही में पता चला कि उसके पैर में चोट लग गई है. हम केंद्र से हस्तक्षेप करने और उन्हें निकालने की व्यवस्था करने का निवेदन किया था.’ मालूम हो कि इससे पहले 21 फरवरी को एक अन्य भारतीय- गुजरात निवासी 23 वर्षीय हेमिल मंगुकिया की भी युद्ध के दौरान मौत हो गई थी.