सोनम वांगचुक ने बुधवार को कहा कि लद्दाख के लोग वादे पूरे न करने से आहत हैं, इसलिए सरकार को उसका वादा याद दिलाने के लिए मैंने आमरण अनशन पर बैठने का फैसला किया है.
नई दिल्ली: लेह में बुधवार (6 मार्च) को पूर्ण बंद रहा और केंद्र शासित प्रदेश के प्रतिनिधियों तथा केंद्र सरकार के बीच वार्ता विफल होने के बाद लद्दाखी नवप्रवर्तक और कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 21 दिन के आमरण अनशन की घोषणा की.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, बंद का आह्वान सामाजिक और धार्मिक संगठनों द्वारा किया गया था और लेह में एक रैली आयोजित की गई जिसमें पूरे क्षेत्र से सैकड़ों लोग एकत्र हुए.
जैसा कि द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि लद्दाखी समूह केंद्र सरकार से निम्नलिखित मांग कर रहे हैं:
1. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा
2. छठी अनुसूची में शामिल करना
3. लद्दाख में लोक सेवा आयोग की स्थापना (सुरक्षित नौकरियों के लिए)
4. लद्दाख के लिए दो सांसद
बुधवार को मीडिया को संबोधित करते हुए वांगचुक ने कहा, ‘लद्दाख के लोग वादे पूरे न करने से आहत हैं. सरकार को उसका वादा याद दिलाने के लिए मैंने आमरण अनशन पर बैठने का फैसला किया है.’
#SAVELADAKH #SAVEHIMALAYAS
Sonam Wangchuk appeals to the world to live simply,
starts #ClimateFast of 21 days (extendable till death)
Please watch full video in English here:https://t.co/XHkcIdQQ7b#ILiveSimply #MissionLiFE #ClimateActionNow pic.twitter.com/KQi5EMro9X— Sonam Wangchuk (@Wangchuk66) March 6, 2024
वांगचुक ने कहा कि वह 21 दिनों को एक घटनाचक्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि यह स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी द्वारा किया गया सबसे लंबा उपवास था.
4 मार्च को लद्दाख के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की थी. बैठक के बाद प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि मंत्रालय उनकी मांगों को पूरा करने को तैयार नहीं है. हालांकि, मंत्रालय ने दावा किया था कि ‘महत्वपूर्ण प्रगति‘ हुई है.
द टेलीग्राफ के अनुसार, नुब्रा के पूर्व विधायक डेल्डेन नामग्याल ने लेह रैली में कहा, ‘स्थानीय निवासियों की बहुत मूल मांगें हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा पूरा किया जाना चाहिए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार इन मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं है.’
इन मांगों को लेकर लद्दाख में लगातार विरोध प्रदर्शन और बंद हो रहे हैं. शुरुआत में यह क्षेत्र जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र सरकार के 5 अगस्त 2019 के फैसले के खिलाफ नहीं था, लेकिन अब नागरिक समाज समूह रोजगार और स्थानीय संस्कृतियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं.