गोरखपुर ज़िले में नेशनल हाईवे 28 पर बाईपास निर्माण के लिए अधिग्रहीत भूमि का कम मुआवज़ा पाने से नाराज़ 26 गांवों के किसानों ने उचित मुआवज़ा न मिलने पर भाजपा को वोट न देने का नारा बुलंद करते हुए उनके गांव में ‘भाजपा नेताओं का प्रवेश वर्जित’ लिखे बैनर और पोस्टर लगाए हैं.
गोरखपुर: लोकसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहे हैं लोग अपनी मांगों को लेकर मुखर हो रहे हैं. अपने हक की आवाज कहीं मतदान बहिष्कार तो कहीं राजनीतिक दलों व नेताओं के लिए चेतावनी के जरिये उठाई जा रही है. गोरखपुर जिले में बाईपास निर्माण के लिए अधिग्रहीत भूमि का कम मुआवजा पाने से नाराज 26 गांवों के किसानों ने ‘उचित मुआवजा नहीं तो भाजपा को वोट नहीं’ का नारा बुलंद करते हुए बैनर और पोस्टर लगाए हैं.
गोरखपुर जिले के 26 गांवों के किसानों के इस रुख से भाजपा और प्रशासन खासा परेशान है. पुलिस ने बालापार गांव में दो बार जाकर बैनर उतार लिए और एक किसान परिवार को अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी.
क्या है किसानों की नाराज़गी का कारण
दरअसल, गोरखपुर जिले में नेशनल हाईवे 28 पर कोनी जगदीशपुर गांव से लेकर नेशनल हाईवे 29 ई पर मानीराम तक 26.616 किलोमीटर का फोर लेन बाईपास (रोड रिंग) रोड बनाया जा रहा है. नेशनल हाईवे प्राधिकरण द्वारा बनाए जा रहे इस बाईपास के लिए 26 गांवों की 155.6245 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की गई है.
इनमें बैजनाथपुर, बालापार, बनगाई, बनकटिया खुर्द, बनकटी उर्फ इटहिया, बूढाडीह, जंगल औराही, बेलवा रायपुर, कैथवलिया, कोनी, जंगल अहमद अली शाह उर्फ तूरा, करमहा, महमूदाबाद उर्फ मोगलपुरा, मठिया, मानीराम, परसिया, रहमत नगर, मौला खोर, नैयापार खुर्द, नरायनपुर दोयम, रमवापुर, सराय गुलरिया, रसूलपुर, ताल जहदा, सिहोरिया, सोनराइच गांव शामिल हैं.
यह बाईपास कोनी गांव से शुरू होकर इन गांवों से होता हुआ मानीराम में गोरखपुर-सोनौली मार्ग में मिल जाएगा.
बाईपास बनाने के लिए अक्टूबर 2021 में भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई. उस समय कहा गया कि प्रभावित किसानों को उचित मुआवजा दिया जाएगा लेकिन जब मुआवजे का निर्धारण किया गया तो उनके होश उड़ गए क्योंकि निर्धारित मुआवजा बाजार दर से काफी कम था.
बाईपास के लिए इन गांवों में अधिग्रहीत जमीन काफी अहमियत वाली है क्योंकि इसमें तमाम किसानों की जमीन व्यावसायिक प्रकृति की भी है और खेती के लिहाज से बहुफसली है. प्रभावित किसानों की मांग थी कि उनकी जमीन का मुआवजा बाजार दर से निर्धारित किया जाए क्योंकि जिस सर्किल रेट पर मुआवजा तय किया जा रहा है उसे वर्ष 2016 से बढ़ाया ही नहीं गया है.
यहां उल्लेखनीय है कि यूपी में योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद गोरखपुर जिले में सर्किल रेट नहीं बढ़ाया क्योंकि विकास योजनाओं के लिए बड़ी मात्रा में भूमि अधिग्रहण किया जाना था. यूपी की सत्ता में आने के बाद सड़क चौड़ीकरण, फोर लेन, सिक्स लेन सहित तमाम योजनाओं के लिए किसानों की काफी जमीन ली गई जिसका मुआवाजा 2016 के सर्किल रेट से निर्धारित किया गया. इस वजह से किसानों को काफी नुकसान हुआ.
बाईपास निर्माण से प्रभावित किसानों ने प्रशासन से कई बार बातचीत कर उचित मुआवजा दिए जाने की मांग रखी. किसान मुख्यमंत्री से भी मिले. उन्हें हर बार आश्वासन मिला कि उचित मुआवजा दिया जाएगा लेकिन मुआवजा वितरण की प्रक्रिया जारी रहने के बीच में भी पिछले वर्ष बाईपास का निर्माण शुरू कर दिया गया. किसानों के विरोध को दरकिनार करते हुए कई स्थानों पर उनकी फसल रौंद दी गई.
किसानों ने संगठित होकर जब जगह-जगह पंचायत शुरू की तो जिला प्रशासन की ओर से कहा गया कि वे जिलाधिकारी के पास आर्बिटेशन दाखिल करे जिस पर सुनवाई कर उनकी भूमि के मुआवजे को बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है. किसानों को एक बार फिर उम्मीद जगी कि उन्हें उचित मुआवजा मिल जाएगा लेकिन आर्बिटेशन दाखिल होने के बाद आज तक इस पर सुनवाई नहीं हो सकी है. किसानों को लगातार तारीख पर तारीख मिल रही है.
जिला प्रशासन ने एक तरफ आर्बिटेशन का निपटारा नहीं किया तो दूसरी तरफ पुलिस के बल पर बाईपास का निर्माण शुरू कर दिया. किसान असहाय पड़ गए और मजबूरी में उन्होंने प्रशासन द्वारा निर्धारित मुआवजा लेना शुरू कर दिया लेकिन उन्हें इस बात का मलाल है कि उनके साथ अन्याय हुआ.
लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही उन्हें अपनी नाराजगी व्यक्त करने का मौका मिल गया. कई गांवों में भाजपा को चेतावनी वाले बैनर टंग गए. इन बैनरों पर लिखा था- उचित मुआवजा नहीं तो भाजपा को वोट नहीं. भाजपा नेताओं का प्रवेश वर्जित.
इस बैनर में सवाल किया गया है कि विकास के नाम पर किसानों की हत्या, ये भारी अन्याय है, गूंगे बहरे शासन-प्रशासन क्या यही न्याय है? किसान उन्हीं को देंगे अपना जनमत जो दिलाएंगे जमीन की उचित कीमत.
इस बैनर में देवरिया में बाईपास निर्माण में उचित मुआवजा दिए की बात को देवरिया के साथ न्याय, गोरखपुर के साथ अन्याय, आखिर क्यों के जरिये व्यक्त किया गया है.
पुलिस ने उतरवाए बैनर
इस तरह के बैनर बालापार, रमवापुर, करमहां सहित कई गांवों में एक सप्ताह पहले देखे गए. इसके बारे में स्थानीय अखबारों में खबर छपने पर प्रशासन और पुलिस सक्रिय हो गई. छह मार्च की दोपहर चिलुआताल और पीपीगंज थाने की पुलिस बालापार गांव पहुंच गई और वहां लगे बैनर को उतारने लगी. इस पर वहां बड़ी संख्या में किसान जुट गए और उन्होंने बैनर उतारने का विरोध किया. इसको लेकर पुलिस से किसानों की तीखी नोकझोंक हुई. पुलिस को बिना बैनर उतारे वापस लौटना पड़ा लेकिन अगली सुबह लोगों ने देखा कि बैनर फटा हुआ है.
किसानों को लगा कि पुलिस ने ही बैनर फाड़ा होगा तो उन्हें उसी स्थान पर दूसरा बैनर लगा दिया. फिर से बैनर लगने की जानकारी होने पर चिलुआताल पुलिस सात की रात बालापार गांव के विकास पांडेय के घर पहुंच गई और दरवाजा खटखटाने लगी. विकास पांडेय ने बताया कि वे उस वक्त घर पर नहीं थे. घर के लोगों ने दरवाजा नहीं खोला तो पुलिस ने उन्हें फोन किया और कहा कि उनसे बातचीत करने आए हैं.
विकास कहने पर कि अगले दिन मिलेंगे, पुलिस की ओर से उन्हें धमकी दी गई और कहा गया कि बैनर लगाने और किसानों को संगठित करने का काम न करें नहीं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
विकास पांडेय ने बताया कि उनके पास पूरे दिन पुलिस और एलआईयू (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) के लोगों का फोन आता रहा वे इस मसले पर आगे क्या करने जा रहे हैं?
विकास पांडेय कहते हैं, ‘पुलिस की प्रताड़ना से परिवार डर गया और मुझसे कहा कि चुपचाप बैठ जाऊं. मैं बहुत क्षुब्ध हूं लेकिन परिवार के दबाव में शांत हूं. पुलिस के घर आने की खबर सुन शनिवार को 400 से अधिक किसान मिलने आए थे. सभी का कहना था कि यदि आवाज उठाने के लिए इस तरह प्रताड़ित किया जाएग तो वे सभी गोरखपुर चलकर सामूहिक गिरफ़्तारी देंगे.’
विकास पांडेय की करीब तीन एकड़ भूमि अधिग्रहीत हुई है. इसमें से एक एकड़ भूमि व्यावसायिक उपयोग की है. बेरोजगार विकास इस भूमि पर मैरिज हॉल बनाना चाहते थे. उन्होंने निर्माण कार्य शुरू किया था लेकिन भूमि अधिग्रहीत होने के कारण काम रोकना पड़ा. उन्हें डर है कि निर्माण को ध्वस्त कराने की कार्रवाई कभी भी हो सकती है. उन्हें इस भूमि का मुआवजा 1.78 लाख प्रति डिसमिल मिल रहा है जबकि बाजार मूल्य 15 से 16 लाख रुपये डिसमिल है कि यह भूमि मुख्य सड़क से सटे है. बाकी दो एकड़ जमीन का मुआवजा 80 हजार और 1.35 लाख डिसमिल के हिसाब से मिल रहा है जो बहुत कम है.
26 वर्षीय विकास पांडेय ने अभी तक मुआवजा नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि अधिकतर किसानों ने मजबूरी में मुआवजे का पैसा लिया है. बहुत से किसानों के पास थोड़ी ही भूमि थी जो अधिग्रहीत हो गई. वे इस भूमि पर खेती भी नहीं कर पा रहे थे. इसलिए उन्होंने सहमति पत्र दे दिया.
गोरखपुर के भूमि अध्याप्ति कार्यालय के अनुसार, 70 फीसदी से अधिक किसानों को मुआवजा दे दिया गया है.
रमवापुर गांव के अनूप मिश्र के परिवार एक हेक्टेयर एकड़ भूमि अधिग्रहीत हुई. सड़क किनारे की जमीन का करीब एक लाख रुपये डिसमिल की दर से मुआवजा मिला है जबकि यहां पर 20 से 22 लाख रुपये डिसमिल जमीन का रेट चल रहा है.
उन्होंने बताया, ‘हमारे गांव में भी भाजपा को चेतावनी वाला बैनर लगा है. सभी किसान बातचीत कर अपने-अपने गांवों में बैनर-पोस्टर लगा रहे हैं.’
मिश्र कहते हैं, ‘हम लोगों ने पहले के चुनावों में भाजपा को वोट दिया था लेकिन इस बार कतई नहीं देंगे क्योंकि हमारे साथ अन्याय हुआ है और हमारी कोई सुनवाई भी नहीं हो रही है.’
बाजार मूल्य के बजाय सर्किल रेट से दिया गया मुआवजा
रमवापुर गांव में अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे के निर्धारण को देख सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसानों के साथ किस तरह अन्याय हुआ है.
रमवापुर गांव में कुल 10.167 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की गई जिसमें 0.746 हेक्टेयर भूमि सरकारी (चक मार्ग, मुख्य मार्ग, नाली, सिंचाई विभाग की भूमि, नवीन परती, सड़क आदि ) भूमि थी. इस तरह 9.421 हेक्टेयर भूमि का मुआवजा तय किया.
विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी विभाग के अनुसार, सभी भूमि कृषिक भूमि है. बाजार दर से मुआवजा निर्धारित करने के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना से तीन वर्ष पूर्व के 42 बैनामों में से 21 उच्चतर बैनामों का औसत निकाला गया जो 1,31,15,510.41 (एक करोड़ इकतीस लाख पंद्रह लाख पांच सौ दस रुपये इकतालीस पैसे) रुपये होता है लेकिर इस मुआवजे को यह कहकर अमान्य कर दिया गया इसमें कुछ जमीन का क्रय विक्रय कई बार और काफी कम रकबे का अधिक मूल्य देकर आवास आदि के लिए बैनामा कराया गया है.
भूमि अध्याप्ति विभाग द्वारा अधिग्रहीत जमीन का मुआवजा बाजार दर से न कर डीएम सर्किल रेट से किया गया जो जनपदीय मार्ग पर 60 लाख प्रति हेक्टेयर, संपर्क मार्ग पर 55 लाख प्रति हेक्टेयर और अन्यत्र अवस्थित भूमि का 43 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से निर्धारित किया गया. इस हिसाब से 9.421 हेक्टेयर भूमि का कुल मुआवजा 4,40,88,900 (चार करोड़ चालीस लाख नौ सौ) रुपये हुआ.
भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र में भूमि होने के कारण इसे दो गुना करते हुए 100 प्रतिशत तोषण और 558 दिन का 12 प्रतिशत प्रति वर्ष का ब्याज जोड़ते हुए कुल मुआवजा 18,41,53,900 (अठारह करोड़ इकतालीस लाख तिरेपन हजार नौ सौ) रुपये दिये जाने का निश्चय हुआ.
रमवापुर के अनूप मिश्र की तरह कोनी के मुकेश की 30 डिसमिल भूमि अधिग्रहीत हुई है. रमवापुर के पवन कुमार जायसवाल की 15 डिसमिल जमीन अधिग्रहीत हुई है. वे कहते हैं, ‘जमीन हमारी आन बान शान है लेकिन हमसे जबरदस्ती जमीन ले ली गई.’
कथवलिया के फखरुद्दीन, जंगल औराही के राजेंद्र प्रसाद मौर्य, महमूदाबाद के महेंद्र यादव, जंगल औराही के रामआसरे, जय प्रकाश मौर्य, बेलवा रायपुर के रवि गुप्ता, नइयापार के मोहम्मद सलीम, रमवापुर के वृजराज सिंह की यही पीड़ा है.
राजेंद्र प्रसाद मौर्य और उनके दो भाइयों की दो बीघा जमीन अधिग्रहीत हुई है. राजेंद्र इस जमीन में सब्जी की खेती कर जीवनयापन करते थे. उनके दो बेटे मुंबई में मजदूरी करते हैं. वर्ष 2021 में उनकी जमीन का सीमांकन करने आए अधिकारियों-कर्मचारियों ने आश्वासन दिया था कि उन्हें अच्छा मुआवजा मिलेगा लेकिन सभी उम्मीदें धराशायी हो गईं.
अधिकतर किसानों का कहना है कि मुआवजा एक से दो लाख डिसमिल मिला है जबकि उनकी जमीन की कीमत तीन से लेकर दस लाख डिसमिल तक और कहीं-कहीं इससे भी अधिक है.
बाईपास निर्माण से प्रभावित किसानों द्वारा भाजपा को चेतावनी वाले बैनर-पोस्टर की खबर पर गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी काजल निषाद भी सात मार्च को बालापार में पहुंची और प्रभावित किसानों से मिलीं. उन्होंने किसानों का साथ देने का वादा किया. देखना है कि किसानों के प्रतिरोध की गूंज कहां तक सुनाई देगी और इसका कितना असर होगा.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)