संसद द्वारा कानून पारित होने के चार साल बाद केंद्र सरकार ने सोमवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों को अधिसूचित किया है. विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा ने राजनीतिक लाभ और धार्मिक भावनाओं से फायदा उठाने के लिए आम चुनाव से पहले ‘विभाजनकारी’ क़ानून को फिर से ज़िंदा कर दिया है.
नई दिल्ली: संसद द्वारा कानून पारित होने के चार साल बाद जैसे ही केंद्र सरकार ने सोमवार को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के नियमों को अधिसूचित किया, विपक्षी दलों और पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों ने इसका विरोध करने की बात कही.
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने राजनीतिक लाभ और धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले ‘विभाजनकारी’ अधिनियम को फिर से जीवित कर दिया है.
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे.
सीएए को दिसंबर 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई. हालांकि, मुस्लिम संगठनों और समूहों ने धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया और इसका विरोध किया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिसूचना के समय पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने कहा कि यह विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और असम में चुनावों का ध्रुवीकरण करने के लिए ‘स्पष्ट रूप से डिजाइन’ किया गया है और इसका उद्देश्य ‘चुनावी बॉन्ड घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट की गंभीर सख्ती’ के बाद ‘सुर्खियों का प्रबंधन करना’ है.
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने कहा, ‘इस नियम को लाने में उन्हें 4 साल और 3 महीने लग गए. विधेयक दिसंबर 2019 में पारित किया गया था. 3-6 महीने के अंदर कानून बन जाना चाहिए था. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से नौ एक्सटेंशन मांगे और कल रात नियमों को अधिसूचित करने से पहले 4 साल और 3 महीने का समय लिया. ये सिर्फ ध्रुवीकरण के लिए हैं- बंगाल और असम में चुनावों को प्रभावित करने के लिए. अगर वे इसे ईमानदारी से कर रहे थे तो वे इसे 2020 में क्यों नहीं लाए? वे इसे अब चुनाव से एक महीने पहले ला रहे हैं. यह हेडलाइन मैनेजमेंट है… यह सामाजिक ध्रुवीकरण की रणनीति है.’
केरल सीएए लागू नहीं करेगा: पिनराई विजयन
वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने दोहराया कि उनका राज्य सीएए लागू नहीं करेगा. वाम दलों द्वारा शासित केरल सुप्रीम कोर्ट में सीएए को चुनौती देने वाला और इसकी विधानसभा 2019 में कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाला पहला राज्य था.
विजयन कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा चुनाव के मद्देनजर नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों की अधिसूचना का उद्देश्य देश को बेचैन करना है. लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले गृह मंत्रालय ने सीएए को लेकर अधिसूचना जारी कर दी है. यह लोगों को विभाजित करना, सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काना और संविधान के मूल सिद्धांतों को कमजोर करना है. समान अधिकार प्राप्त भारतीय नागरिकों को विभाजित करने के इस कदम का एकजुट होकर विरोध किया जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘इसे केवल संघ परिवार के हिंदुत्व सांप्रदायिक एजेंडे के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है. 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आकर बसे गैर-मुसलमानों को नागरिकता देना, जबकि मुसलमानों को नागरिकता देने से इनकार करना संविधान का खुला उल्लंघन है. यह धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता को परिभाषित करने जैसा है. यह मानवता, देश की धर्मनिरपेक्ष परंपरा और उसके लोगों के लिए एक खुली चुनौती है.’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘एलडीएफ सरकार ने कई बार दोहराया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, जो मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक मानता है, केरल में लागू नहीं किया जाएगा. हम उस स्थिति को दोहराते हैं. केरल इस सांप्रदायिक और विभाजनकारी कानून के विरोध में एकजुट होगा.’
अगर सीएए लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करेगा, तो विरोध करेंगे: टीएमसी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि अगर उन्हें सीएए भारत में रहने वाले लोगों के समूहों के खिलाफ भेदभावपूर्ण लगता है और यह उनके मौजूदा नागरिकता अधिकारों को कम करता है तो वह इसका जमकर विरोध करेंगी.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा, ‘अगर कोई असमानता है और अगर किसी को बाहर करने का कोई प्रयास किया जाता है, अगर लोगों के अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, तो टीएमसी चुप नहीं रहेगी. विरोध प्रदर्शन होंगे.’
उन्होंने कहा, ‘पहले मुझे नियम समझने दो. अगर मुझे लगेगा कि लोगों को वंचित किया जा रहा है तो हम इसके खिलाफ लड़ेंगे. मैं नजर रख रही हूं. नियमों के अधिसूचित होने के बाद मुझे उनका अध्ययन करने की जरूरत है.’
पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ टीएमसी और ममता बनर्जी अतीत में इस कानून की तीखी आलोचक रही हैं, उन्होंने कहा कि यह विभाजनकारी है और इसे पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘यह और कुछ नहीं बल्कि भाजपा का चुनावी प्रचार है. हम चुनाव से पहले कोई ताजा गड़बड़ी नहीं चाहते. मैं नहीं चाहती कि भाजपा किसी भी तरह के उकसावे में शामिल हो. मुझे पता है कि यह दिन, जब रमज़ान महीना शुरू हो रहा है, घोषणा करने के लिए क्यों चुना गया.’
अरविंद केजरीवाल ने भाजपा पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया
वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीएए को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की और भाजपा पर ‘वोट बैंक की राजनीति’ का आरोप लगाया.
केजरीवाल ने सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ’10 साल तक देश पर शासन करने के बाद मोदी सरकार चुनाव से पहले सीएए लेकर आई है. यह ऐसे समय में है जब गरीब और मध्यम वर्ग महंगाई की मार झेल रहा है और बेरोजगार युवा रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं. उन वास्तविक मुद्दों को हल करने के बजाय, ये लोग सीएए लाए हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘कहा जा रहा है कि तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी. इसका मतलब है कि वे चाहते हैं कि पड़ोसी देशों के लोग भारत में बसें. क्यों? सिर्फ वोट बैंक के लिए. जब हमारे युवाओं के पास नौकरियां नहीं होंगी तो अलग-अलग देशों से आकर यहां बसने वाले लोगों को नौकरी कौन देगा? उनके लिए घर कौन बनायेगा? क्या भाजपा उन्हें नौकरी देगी या उनके लिए घर बनाएगी.’
केजरीवाल ने दावा किया कि 11 लाख से ज्यादा उद्योगपति केंद्र की नीतियों से तंग आकर देश छोड़कर चले गए. उन्होंने कहा, ‘उन्हें वापस लाने के बजाय, वे चाहते हैं कि पड़ोसी राज्यों के गरीब लोग यहां बस जाएं? क्या यह वोट बैंक के लिए है?’
उन्होंने कहा, ‘पूरा देश सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा है. पहले हमारे बच्चों को नौकरी दें, हमारे लोगों के लिए घर बनाएं. फिर आप दूसरे देशों से लोगों को ला सकते हैं. दुनिया में हर देश दूसरे देशों से आने वाले गरीबों को रोकता है क्योंकि इससे स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के अवसर प्रभावित होते हैं. भाजपा दुनिया की एकमात्र राजनीतिक पार्टी है जो दूसरे देशों के गरीबों को अपना वोट बैंक बनाने की गंदी राजनीति कर रही है. यह देश के खिलाफ है.’
उन्होंने कहा, ‘असम और पूरे पूर्वोत्तर में लोग इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं. वे बांग्लादेश से पलायन के शिकार हैं और उनकी भाषा और संस्कृति खतरे में है. भाजपा ने असम और पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को धोखा दिया है. लोकसभा चुनाव में लोग करारा जवाब देंगे.’
सीएए पूरी तरह से अनुचित, तमिलनाडु में लागू नहीं किया जाएगा: एमके स्टालिन
सीएए को पूरी तरह से अनुचित बताते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मंगलवार को कहा कि यह कानून दक्षिणी राज्य में लागू नहीं किया जाएगा.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टालिन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘सीएए से कोई लाभ नहीं होने वाला है, जो केवल भारतीय लोगों के बीच विभाजन पैदा करने का मार्ग प्रशस्त करता है. (राज्य) सरकार का रुख यह है कि यह कानून पूरी तरह से अनुचित है, इसे निरस्त किया जाना चाहिए.’
मुख्यमंत्री, जो राज्य के सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के प्रमुख भी हैं, ने आगे कहा, ‘तमिलनाडु सरकार सीएए को लागू करने के लिए किसी भी तरह से कोई अवसर नहीं देगी, जो बहुलवाद, धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यक समुदायों और श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी के खिलाफ भी है.’
उन्होंने अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले ‘जल्दबाजी में’ सीएए नियमों को अधिसूचित करने के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर भी सवाल उठाया.
भाजपा ध्यान भटकाने की राजनीति कर रही है: अखिलेश यादव
वहीं, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने सीएए को लेकर भाजपा पर निशाना साधते हुए इसे भाजपा का ध्यान भटकाने का खेल करार दिया. उन्होंने कहा कि सरकार को यह भी बताना चाहिए कि उनके 10 साल के शासनकाल में लाखों नागरिकों ने देश की नागरिकता क्यों छोड़ दी.
यादव ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘जब देश के नागरिक आजीविका के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं, तो दूसरों के लिए ‘नागरिकता कानून’ लाने से क्या होगा? जनता अब भाजपा की ध्यान भटकाने की राजनीति के खेल को समझ चुकी है. भाजपा सरकार को बताना चाहिए कि उनके 10 साल के शासन के दौरान लाखों नागरिकों ने देश की नागरिकता क्यों छोड़ दी. कल चाहे कुछ भी हो जाए आपको ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ का हिसाब देना होगा और फिर ‘केयर फंड’ का भी.’
इसी तरह, एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सीएए विभाजनकारी है और गोडसे की इस धारणा पर आधारित है कि मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया जाना चाहिए.
सीपीआई महासचिव डी. राजा ने कहा कि चुनाव से ठीक पहले सीएए को लागू करना समाज का ध्रुवीकरण करने और मौजूदा ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं है.
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को चुनावी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने का आदेश दिया, ठीक उसी दिन भाजपा को सीएए लागू करने की घोषणा करनी पड़ी, जो सुर्खियों का प्रबंधन करने और अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए उसकी हताशा को दर्शाता है.’
उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में भाजपा शहरी रोजगार गारंटी, निजी क्षेत्र में आरक्षण और आजीविका प्रदान करने पर कानून बनाने में इतनी ही जल्दबाजी दिखा सकती थी, लेकिन उनकी प्राथमिकता लोगों को विभाजित करना और पूंजीपतियों की रक्षा करना है.
कहा, ‘भाजपा-आरएसएस नागरिकता को धर्म से जोड़ती है और हमारा संविधान धर्म को नागरिकता का मानदंड नहीं बनाता है.’
वहीं, सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘आज सुबह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से घबराई मोदी सरकार ने एसबीआई को चुनावी बॉन्ड के खरीददारों और प्राप्तकर्ताओं के बारे में कल तक डेटा उपलब्ध कराने के लिए नोटिस जारी किया है, इस वैध राजनीतिक भ्रष्टाचार पर जनता का ध्यान केंद्रित करने वाली प्राइम टाइम मीडिया बहस पर कब्जा कर लिया जाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘ध्यान भटकाने के लिए सीएए नियमों की अधिसूचना की घोषणा की है! ऐसी रणनीति सफल नहीं होगी. मोदी द्वारा जनमत का हेरफेर ‘भक्तों’ से आगे नहीं बढ़ रहा है.’
असम: केंद्र द्वारा नियमों को अधिसूचित किए जाने पर ‘हड़ताल’ की घोषणा की गई
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और 30 इंडिजिनस संगठनों ने सोमवार को गुवाहाटी, बारपेटा, लखीमपुर, नलबाड़ी, डिब्रूगढ़ और तेजपुर सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में सीएए की प्रतियां जलाईं.
16-पार्टी यूनाइटेड अपोजिशन फोरम असम (यूओएफए) ने चरणबद्ध तरीके से अन्य आंदोलनात्मक कार्यक्रम आयोजित करने के अलावा मंगलवार को राज्यव्यापी हड़ताल की घोषणा की. एएएसयू के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा, ‘हम सीएए के खिलाफ अपना अहिंसक, शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक आंदोलन जारी रखेंगे. साथ ही, हम अपनी कानूनी लड़ाई भी जारी रखेंगे.’
भट्टाचार्य ने जोर देकर कहा कि असम और उत्तर पूर्व के मूल निवासी सीएए को कभी स्वीकार नहीं करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘मंगलवार को क्षेत्र के सभी राज्यों की राजधानियों में नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) द्वारा सीएए की प्रतियां जलाई जाएंगी. एएएसयू और 30 संगठन भी असम में मशाल जुलूस निकालेंगे और अगले दिन से सत्याग्रह शुरू करेंगे.’
डिब्रूगढ़ में एएएसयू सदस्यों की पुलिस के साथ झड़प हो गई जब पुलिस ने उन्हें शहर के चौकीडिंगी इलाके में उनके कार्यालय से जुलूस निकालने से रोकने की कोशिश की.
आसू की नलबाड़ी जिला इकाई ने एक विरोध रैली निकाली और स्थानीय नगर निगम बोर्ड कार्यालय के सामने अधिनियम की प्रतियां भी जलाईं.
यह इशारा करते हुए कि छठी अनुसूचित क्षेत्रों और उत्तर पूर्व में इनर लाइन परमिट (आईएलपी) के प्रावधान वाले राज्यों को सीएए से छूट दी गई है, भट्टाचार्य ने कहा, ‘हमारा सवाल यह है कि जो चीज पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों के लिए खराब है, वह अन्य हिस्सों के लिए कैसे अच्छी हो सकती है. असम में भी आठ जिलों में इसे लागू नहीं किया जाएगा.’
उन्होंने यह भी दावा किया कि सीएए असम समझौते के खिलाफ है, जो इस पूर्वोत्तर राज्य में अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए 25 मार्च, 1971 की समय सीमा तय करता है.
केंद्र सरकार द्वारा कानून का प्रस्ताव करने वाला विधेयक लाए जाने के बाद से एएएसयू सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे रहा है और पहले ही इस अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुका है.
इस बीच, छात्रों ने गुवाहाटी में कॉटन यूनिवर्सिटी के सामने सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है.
असम जातीय परिषद (एजेपी), जिसका गठन 2019-20 में राज्य में सीएए विरोधी आंदोलन के बाद हुआ था, ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया.
इसके सदस्यों ने गुवाहाटी सहित कई हिस्सों में विरोध मार्च निकालते हुए काले झंडे दिखाए और सरकार के खिलाफ नारे लगाए.
यूओएफए ने मंगलवार को राज्यव्यापी ‘हड़ताल’ का आह्वान किया है. सीएए के कार्यान्वयन के लिए नियमों को अधिसूचित किए जाने पर विपक्षी राजनीतिक दलों, छात्र संगठनों और अन्य संगठनों ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज करने की घोषणा की थी.