‘रेता में कौनो जिनगी नाहीं बा महाराज! हम किस बेस पर वोट दें?’

लोकसभा चुनाव से पहले यूपी के महराजगंज और कुशीनगर ज़िले के 27 गांवों के क़रीब पचास हज़ार लोगों ने मतदान बहिष्कार की घोषणा की है. आवाजाही के लिए सामान्य रास्ता बनने की बाट जोह रहे गंडक नदी पार के इन गांवों की पुल बनाने की मांग काफ़ी पुरानी है, जिसे लेकर वे पूछ रहे हैं कि पुल, सड़क नहीं हैं तो वोट क्यों दें.

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सोहगीबरवां बाजार में लगा मतदान बहिष्कार का बैनर. (फोटो: मनोज सिंह)

गोरखपुर: बड़ी गंडक नदी (नारायणी) पर पुल और सड़क नहीं बनने से टापू बने महराजगंज और कुशीनगर जिले के 27 गांवों के 50 हजार लोगों ने मतदान बहिष्कार की घोषणा की है. इन गांवों में मतदान बहिष्कार के बैनर लग गए हैं और मतदान बहिष्कार को प्रभावी बनाने के लिए लोगों ने नारायणी संघर्ष समिति का गठन किया है. संघर्ष समिति ने दोनों जिलों के डीएम को ज्ञापन देने के साथ-साथ प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को पत्र भेजा है.

बड़ी गंडक नदी के पार बिहार और नेपाल बॉर्डर पर ये 27 गांव स्थित हैं. ये गांव सात ग्राम पंचायतों में आते हैं. इसमें से तीन ग्राम पंचायत सोहगीबरवां, शिकारपुर और भोतहां महराजगंज जिले में आते हैं जबकि हरिहरपुर, शिवपुर, बसंतपुर और नारायनपुर ग्राम पंचायत कुशीनगर जिले में आते हैं.

ये सभी ग्राम पंचायत एक ही भौगोलिक स्थिति में हैं लेकिन प्रशासनिक रूप से ये दो- जिलों और दो-दो तहसीलों और अलग-अलग लोकसभा व विधानसभा क्षेत्र में बंटे हुए हैं. महराजगंज जिले के तीन ग्राम पंचायत निचलौल तहसील में आते हैं जबकि कुशीनगर जिले की सभी पांच ग्राम पंचायत नवसृजित खड्डा तहसील में आते हैं. इन गांवों के पूरब नारायणी नदी है तो उत्तर में बिहार का बाल्मीकिनगर रिजर्व फॉरेस्ट और पश्चिम चंपारण जिला है. नारायणी नदी के एक तरफ बिहार का नवल परासी जिला है और इस जिले का सुस्ता गांव कुशीनगर और महराजगंज के इन गांवों से काफी करीब चार किलोमीटर पर है.

इन सभी गांवों के समूह को सोहगीबरवां गांव नाम से ही जाना जाता है. सोहगीबरवां इन सभी गांवों के केंद्र में हैं और यहां का मुख्य बाजार भी है. यहीं पर पुलिस थाना भी बना हुआ है. यह इलाका एक समय जंगल पार्टी के नाम से चर्चित डकैतों के गिरोह से काफी पीड़ित रहा है.

नदियों से घिरा इलाका, बरसात में आना-जाना दुरूह

इन गांवों से करीब 40 किलोमीटर पर गंडक नदी के अपस्टीम पर नेपाल में गंडक बैराज बना हुआ है जबकि 13.50 किमी कुशीनगर जिले में पनियहवा के पास सड़क व रेल पुल है. भैंसहा घाट से शिवपुर गांव के बीच करीब आठ किलोमीटर के दायरे में बड़ी गंडक नदी दो धाराओं में बहती है. मुख्य धारा भैसहां तटबंध के पास है जबकि दूसरी धारा शिवपुर गांव के पास है.

सेतु निगम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भैसहां तटबंध के पास मानसून के बाद व पहले नदी की की इस धारा की चौड़ाई लगभग 700 मीटर है. भैंसहा तटबंध के पास नदी की धारा के बाद ढाई किलोमीटर का टापू है. इसके बाद दूसरी धारा बहती है जिसकी चौड़ाई 650 मीटर है. इस धारा के दो किलोमीटर बाद शिवपुर गांव है.

भैंसहा घाट पर बना पीपा पुल. (फोटो: मनोज सिंह)

कुशीनगर के जिलाधिकारी द्वारा लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव को 16 मार्च 2023 को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि भैंसहा घाट और शिवपुर के पास नदी की ढलान ज्यादा एवं घुमाव होने के कारण यहां नदी का प्रवाह हमेशा तीव्र रहता है जो बरसात के मौसम में और बढ़ जाता है. प्रवाह तीव्र होने के कारण मानव चालित नाव उपयुक्त नहीं रहती है और यदा-कदा दुर्घटना का कारण बनती है. बरसात के मौसम में नदी के पार ग्राम पंचायत शिवपुर आदि में बसे ग्रामीणों को शिक्षा, स्वास्थ्य, शादी-ब्याह, चुनाव आदि हेतु बिहार प्रांत के ग्रामों व वाल्मीकि टाइगर रिजर्व क्षेत्र से होकर लगभग 40-50 किलोमीटर अतिरिक्त दूरी तय कर विद्यालय, अस्पताल, बाजार, ब्लॉक और जनपद मुख्यालय जाना पड़ता है जिससे उनके अर्थ , समय व श्रम का अपव्यय होता है. साथ ही लोकसभा, विधानसभा, पंचायत निर्वाचन के दौरान सरकारी कर्मचारियों आदि को विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने दायित्व का निर्वहन करना पड़ता है.

जिलाधिकारी ने अपने इस पत्र में सेतु निगम की रिपोर्ट के आधार पर भैंसहां घाट पर पीपा पुल के स्थान पर पांच किलोमीटर का पुल बनाए जाने की संस्तुति की है. उन्होंने लिखा है कि पुल निर्माण हो जाने से मुख्यालय की दूरी लगभग 40 से 50 किमी कम हो जाएगी और लगभग 80 हजार ग्रामीण मुख्य शहर एवं जनपद मुख्यालय से जुड़ जायेंगे, जिससे उस क्षेत्र का शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय आदि के क्षेत्र में चहुंमुखी विकास होगा.

सेतु निगम ने 5.021 किलोमीटर लंबे पुल, पहुंच मार्ग, अतिरिक्त पहुंच मार्ग, सुरक्षात्मक कार्य एप्रोच, संपर्क मार्ग आदि के लिए के लिए 47383.98 लाख रुपये का अनुमानित बजट बनाया है.

बरसात के चार महीने ये सभी गांव टापू बन जाते हैं और गांव से बाहर जाने के लिए नाव से नारायणी नदी पार करने के अलावा और विकल्प नहीं रहता है. सोहगीबरवां से बिहार के नौरंगिया जाने एक एक कच्चा रास्ता है जो जंगल से गुजरता है. इस रास्ता बेहद खराब है और बाइक से चलना भी मुश्किल है. यह रास्ता भी बरसात में रोहुआ नाले के पानी से भर जाता है और आवागमन बंद हो जाता है. इस रास्ते को बिहार सरकार इसलिए नहीं बनवा रही है क्योंकि यह रास्ता वन भूमि से गुजरता है.

चार वर्ष पहले भैंसहा घाट पर पीपा पुल लगाया गया. यह पीपा पुल अक्टूबर से जून तक लगाए जाने की व्यवस्था है. पीपा पुल भैंसहा घाट पर नारायणी नदी की एक धारा पर लगाया जाता है. इससे बाइक, टेंपो, टैक्टर आ-जा सकते हैं लेकिन यह नदी में अक्सर पानी बढ़ने से यह बेकाम हो जाता है और फिर नाव से ही लोगों को आवागमन करना पड़ता है. ग्रामीणों की शिकायत है कि पीपा पुल निर्धारित समय में नहीं लगाया जाता है और इसके लिए भी अधिकारियों व जन प्रतिनिधियोें से गुहार लगानी पड़ती है.

इन गांवों के लोगों को अपने तहसील जाने के लिए अक्सर बिहार के नौरंगिया या बाल्मीकिनगर से होते हुए खड्डा व निचलौल जाना पड़ता है. सोहगीबरवां, शिकारपुर व भोतहां के लोगों को अपने तहसील जाने के लिए 65 किलोमीटर और जिले जाने के लिए 91 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. इसी तरह बाकी गांवों के लोगों को खड्डा तहसील पहुंचने के लिए 30 से 60 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है.

यदि भैंसहा घाट पर बड़ी गंडक नदी पर पुल बन जाए तो इन सभी गांवों की 50 हजार आबादी को खेती, शिक्षा, चिकित्सा सहित जरूरी काम आसानी से हो जाते.

नदी में पानी बढ़ जाने पर बिहार को जाने वाला यही रास्ता एक मात्र विकल्प होता है. (फोटो: मनोज सिंह)

इस दुरूह भौागोलिक स्थिति के कारण कुशीनगर और महराजगंज का जिला प्रशासन इन गांवों में विकास योजनाओं को लागू करने में असमर्थ पाता रहा है. इसलिए कभी इन गांवों को बिहार में शामिल करने की तो कभी सभी गांवों को एक जिले और एक तहसील में शामिल किए जाने की मांग उठी और इस बारे में शासन स्तर से लिखा-पढ़ी भी हुई.

वर्ष 2022 के शुरू के महीनों में इन गांवों को बिहार में शामिल करने की बात उठी. अप्रैल 2022 में राजस्व परिषद की ओर से कमिश्नर गोरखपुर से गांवों का राजस्व अभिलेख मांगे गए. बिहार से अधिकारियों-कर्मचारियों का एक दल भी सर्वे करने आया लेकिन जल्द ही यह मामला ठंडा पड़ गया.

इसके पहले 2017 में खड्डा का विधायक बनने के बाद जटाशंकर त्रिपाठी ने महराजगंज के तीन ग्राम पंचायतों- सोहगीबरवां, शिवपुर और भोतहां को कुशीनगर के खड्डा तहसील में शामिल करने के बारे में राज्यपाल और मुख्यमंत्री को कई पत्र लिखे. इस बारे में शासन स्तर पर पहल भी हुई लेकिन बात निर्णायक मुकाम तक नहीं पहुंची.

इस मांग को लेकर दोनों जिले के लोगों की अलग-अलग राय भी उभरकर सामने आई थी लेकिन आज दोनों जनपदों के सात ग्राम पंचायतों के लोग इस बात पर एकराय हैं कि गांवों के अदला-बदली से ज्यादा जरूरी काम है कि गंडक नदी पर पुल बने. पुल बनने से बाकी समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाएगा.

गंडक नदी पार के सात ग्राम पंचायतों के लोगों की पुल बनाने की मांग काफी पुरानी है. गांव के लोगों ने बिहार जाने वाले सड़क बनाने के लिए भी काफी प्रयास किए लेकिन दूसरे राज्य का मामला होने के कारण वे सफल नहीं हो पाए. ग्रामीणों ने तब पुल की मांग पर अपने को फोकस किया. पक्का पुल न बनने पर 2017 के विधानसभा चुनाव में ग्रामीणों ने मतदान बहिष्कार की आवाज उठाई. तीन वर्ष बाद एक मार्च 2020 को जब पीपा पुल बना तो ग्रामीणों ने उद्घाटन करने आए उप मुख्यमंत्री एवं लोक निर्माण मंत्री केशव प्रसाद मौर्य से पक्का पुल बनाने की मांग रखी. उन्होंने आश्वासन दिया.

फिर जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 29 मार्च 2023 को खड्डा तहसील भवन का उद्घाटन करने आए तो सातों गांवों के प्रधानों ने उन्हें पुल बनाने की मांग करते हुए ज्ञापन दिया.

सांसदों एवं विधायकों की मुख्यमंत्री के साथ 14 जनवरी 2023 की बैठक में खड्डा के विधायक विवेकानंद पांडेय ने पुल बनाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री को प्रतिवेदन दिया. मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव ने इस बारे में लोक निर्माण विभाग को कार्रवाई करने को कहा. लोक निर्माण विभाग की पहल पर सेतु निगम ने 15 मार्च को पुल की अनुमानित लागत का विवरण तैयार किया और एक दिन बाद ही 16 मार्च 2023 को कुशीनगर के जिलाधिकारी ने पुल निर्माण के धन आवंटित करने का अनुरोध पत्र प्रमुख सचिव लोक निर्माण को भेज दिया.

पिछले वर्ष तीन महीने में पुल के बारे में जो तेजी शासन स्तर पर दिखाई गई वह बाद में शिथिल होती गई. पिछले एक वर्ष से इस बारे में कोई नई पहल नहीं हुई है. शासन के ठंडे रुख को देखते हुए ही ग्रामीणों ने मतदान बहिष्कार का नारा देते हुए अपनी मांग उठाई है.

‘हमन के अबहिन तक पुल जोहत बानी’

बाइक से रिपोर्टर को नारायणी नदी पार करा रहे सोहगीबरवां के अमीर हमजा इस विकट परिस्थिति के कारण अब खड्डा में घर बनवा कर रह रहे हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई हो सके. वे कहते हैं, ‘सोहगीबरवां में प्राइमरी तक ही शिक्षा की व्यवस्था है. इंटर तक एक निजी स्कूल अब संचालित होने लगा है. आप ही बताइए इस रेता में कौन शिक्षक पढ़ाने आएगा?’

अमीर आगे कहते हैं, ‘आजादी के बाद केतना सांसद-विधायक अइलन लेकिन पुल और रास्ता नाहीं बन सकल. हमन के अबहिन तक पुल जोहत बानी. जटा बाबा (पूर्व विधायक जटाशंकर त्रिपाठी ) पीपा पुल लगवा देहनल त थोड़ा राहत हो गईल बा. सब दिक्कत रास्तवे का बा. नाहीं तक नदी और जंगल का इ इलाका केके पसंद नाहीं आई. हमरे अब्बा बतावत रहन कि जब नावे से ही लोग आवत जात रहलन तो सोहगीबरवां में बहुत बड़ा बाजार लगत रहे. दूर-दूर से लोग आवत रहे. लेकिन ए समय तो यहां रहल काला पानी के सजा की तरह बा. बाढ़ में सब तरह पानी-पानी हो जाला. तब मत कहिए हम लोगन कइसे रहते हैं. आप खुदे देख रहे हैं. रेता में कौनो जिनगी नाहीं बा महाराज.’

अमीर हमजा ने बताया कि सामूहिक रूप से निर्णय हुआ है कि वोट का बहिष्कार किया जाएगा. पुल, सड़क नहीं तो वोट नहीं. वे सवाल पूछते हैं कि ‘हम किस बेस पर वोट दें.’

सभी सात गांवों में दलित और पिछड़ी जाति के लोग सर्वाधिक हैं. सबसे अधिक आबादी करीब 30 हजार मुसहरों की है. मुसहरों के पास खेत बारी कम है. मुसहर मजदूरी पर निर्भर हैं. बारिश के समय कोई काम नहीं मिलता है. तब जिंदगी चलाना मुश्किल हो जाता है, इसलिए मुसहर नौजवान गांव से पलायन कर रहे हैं.

भोतहा गांव के ज्ञान चंद्र 30 हजार मुसहरों में सबसे अधिक पढ़े लिखे युवा हैं. उन्होंने सिद्वार्थनगर जाकर एमए और बीएड किया. वे सिसवा के एक डिग्री कालेज में पढ़ाते थे जहां उन्हें सिर्फ दस हजार रुपये वेतन मिल रहा था. उन्होंने नौकरी छोड़ दी है और फिलहाल बेरोजगार हैं. इस समय मुसहरों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं. पुल और सड़क की मांग को लेकर मतदान बहिष्कार के आंदोलन में वह सक्रिय भूमिका में हैं.

कुशीनगर के डीएम को ज्ञापन देने गए नारायणी संघर्ष समिति के पदाधिकारी. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

महराजगंज और कुशीनगर के डीएम को ज्ञापन देने गए प्रतिनिधिमंडल में वे शामिल थे. ज्ञानचंद्र और श्रीकांत कहते हैं कि इस बार लोग मतदान बहिष्कार के प्रति गंभीर हैं. दोनों कहते हैं कि 2017 में विधानसभा चुनाव के समय मतदान बहिष्कार पूरी तरह सफल नहीं हो पाया था क्योंकि कुछ टोलों में लोगों ने एक जनप्रतिनिधि के कहने पर मतदान कर दिया था पर इस बार सभी एकमत हैं.

सोहगीरबरवां के भोतहा टोला निवासी श्रीकांत ने बताया कि उनके गांव में 200 घर हैं जिसमें 125 मुसहर, 66 कुर्मी और तीन गोंड जाति के लोगों का है. शेष अन्य जातियों के हैं.

वे बताते हैं, ‘जून महीने के बाद भैंसहा घाट से होकर जाना बंद हो जाता है क्योंकि नदी में पानी बढ़ जाता है. इस स्थिति में हम लोग नौ किलोमीटर जंगल के रास्ते बिहार के नौरंगिया जाते हैं और वहां से मदनपुर, पनियहवा होते हुए खड्डा आते हैं. फिर सिसवा होकर निचलौल तहसील पहुंचते हैं. कई बार हम लोग नौरंगिया होते हुए बाल्मीकिनगर जाते हैं और वहां से ट्रेन से सिसवा आकर फिर बस या टैक्सी से निचलौल जाते हैं.’

भोतहां गांव के महेंद्र पटेल कहते हैं, ‘उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जब पीपा पुल का उद्घाटन करने आए थे तो उन्होंने कहा था कि जहां -जहां पीपा पुल लगता है वहां पक्का पुल भी बन जाता है. आप लोगों को थोड़ा धैर्य रखना होगा लेकिन चार वर्ष बाद भी पक्का पुल निर्माण में कोई प्रगति नहीं हुई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब खड्डा तहसील का उद्घाटन करने आए तो उन्होंने भी पक्का पुल का आश्वासन दिया लेकिन कुछ नहीं हुआ.’ वे तीखे स्वर में कहते हैं, ’75 साल से आश्वासने मिलत बा. सरकार बन गइले के बाद केहू पूछत बा.’

श्रीकांत कहते हैं, ‘2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सांसद पंकज चौधरी वोट मांगने आए तो हम लोगों ने पुल बनाने की मांग रखी. तब उन्होंने कहा कि आप सबको हमें नहीं मोदी जी को देखना है. इस बार आएं तो हम पूछेंगे कि अब किसे देखना है.’

श्रीकांत बताते हैं,’ हमारे गांव से चार किलोमीटर दूर नेपाल का सुस्ता गांव है. वहां पर 90-95 घर हैं. इतने लोगों के लिए नेपाल सरकार ने पांच करोड़ की लागत से 14 पाये वाला झूला पुल बनवाया है लेकिन हमारी सरकार 50 हजार लोगों के लिए पुल बनाने पर मौन साधे हुए है.’

भोतहा गांव से कुछ दूर पर स्थित शिवपुर गांव कुशीनगर जिले में आता है. यहां की आबादी चार हजार हैं जिसमें दो हजार से अधिक मतदाता है. गांव में मुसहर, कोइरी, राजभर, निषाद बिरादरी की आबादी ज्यादा है.

इस गांव के निवासी निजामुद्दीन नारायणी संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष हैं. वे गंडक नदी पर पुल बनवाने के लिए बहुत सक्रिय हैं.

वो कहते हैं, ‘मैं बिहार वाले रास्ते को बनवाते-बनवाते थक गया, हार गया. तब पीपा पुल के लिए संघर्ष शुरू किया गया जो सफल रहा. हम चाहते हैं कि गंडक नदी पर पुल बनाने के साथ-साथ महराजगंज के तीन गांवों को कुशीनगर में जोड़ दिया जाए. इससे सभी गांवों की एक प्रशासनिक इकाई हो जाएगी और हम लोगों को आवागमन के साथ-साथ जरूरी कामों के लिए दो जिलों में नहीं भटकना होगा.’

वे आगे जोड़ते हैं, ‘हम दो जिलों के साथ-साथ दो राज्यों में भी बंटे हुए हैं. हम लोगों के पते पर चिट्ठी बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के नाम से आती है क्योंकि सोहगीबरवां में डाकखाना इसी जिले के अंतर्गत आता है. हमारा तहसील और ब्लॉक खड्डा है जबकि कानूनगो क्षेत्र पनियहवा का है. इससे राजस्व कार्यों के लिए हमें दो जगह जाना होता है.’

सोहगीबरवां बाजार में मतदान बहिष्कार का बड़ा बैनर लगा है. वहीं चाय के दुकान पर नारायणी संघर्ष समिति के अध्यक्ष रामसहाय दुबे, संरक्षक ब्रह्मा यादव और समिति के वरिष्ठ सदस्य राजेश गुप्ता, विनय सिंह, परशुराम यादव मिले.

रामसहाय दुबे ने बताया कि उनके पास सेतु निगम के डायरेक्टर का फोन आया था. उन्होंने कहा कि हम लोगों का ज्ञापन प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है. सोहगीबरवां सहित सभी गांवों को जोड़ने के लिए बड़ी गंडक पर पांच किलोमीटर लंबा पुल बनाना होगा, जिस पर 500 करोड़ का खर्च आएगा.

कलीमुल्ला मीडिया की भूमिका से भी निराश और आक्रोशित हैं. कहते हैं, ‘तमाम मीडिया वाले कैमरा लेकर आते हैं लेकिन हमारी बात सरकार तक पहुंचा नहीं पाते.’

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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