इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और माकपा की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सीएए नियमों के अमल पर रोक की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि यह एक ऐसा क़ानून है जो धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर प्रहार करता है, जो संविधान की मूल संरचना है.
नई दिल्ली: संसद में अधिनियम पारित होने के चार साल बाद केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) नियम, 2024 को अधिसूचित करने के एक दिन बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा)की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) नियमों पर रोक लगाने की मांग को लेकर मंगलवार को अपनी याचिकाओं के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने आवेदन में आईयूएमएल, जिसकी अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है, ने कहा कि नियम नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2(1)(बी) द्वारा बनाई गई छूट के तहत कवर किए गए व्यक्तियों को नागरिकता देने के लिए एक अत्यधिक संक्षिप्त और फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया बनाते हैं, जो स्पष्ट रूप से मनमाना है और केवल उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों के एक वर्ग के पक्ष में अनुचित लाभ पैदा करता है, जो अनुच्छेद 14 और 15 के तहत अनुमति योग्य नहीं है.
आईयूएमएल ने कहा कि अधिकार प्राप्त समिति, जो आवेदनों की जांच कर सकती है, की संरचना परिभाषित नहीं है. इसने आगे कहा, ‘नियम नागरिकता नियम 2009 के तहत पंजीकरण के लिए ‘जांच के स्तर’ को खत्म करते हैं और दस्तावेजों को सत्यापित करने की शक्ति जिला स्तरीय समिति को देते हैं.’
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आईयूएमएल ने इस बात का भी जिक्र किया है कि कैसे केंद्र ने लगभग पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट में विवादास्पद सीएए के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के प्रयास को यह तर्क देकर टाल दिया था कि नियम तैयार नहीं किए गए थे.
आईयूएमएल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने अधिनियम पर रोक लगाने के लिए दबाव डाला था. हालांकि, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नियम तैयार नहीं किए गए हैं और इसलिए कार्यान्वयन नहीं होगा. ये रिट याचिकाएं साढ़े चार वर्षों से लंबित हैं.’
उधर, डीवाईएफआई की तरफ से वकील बीजू पी. रमन और सुभाष चंद्रन केआर ने सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. डीवाईएफआई ने शीर्ष अदालत में मामले की शीघ्र सुनवाई की मांग करते हुए तर्क दिया है कि यह पहली बार है कि धर्म को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए संदर्भ बिंदु या शर्त के रूप में पेश किया गया है.
आवेदनों की जांच
सीएए नियमों ने ज़मीनी स्तर पर जिला कलेक्टरों द्वारा नागरिकता के आवेदनों की स्वतंत्र और स्तरीय जांच को ख़त्म कर दिया है और आवेदकों को नागरिकता देने के संबंध में राज्य सरकारों की सिफारिशों को समाप्त कर दिया गया है. 2009 के नागरिकता नियमों के तहत केंद्र को नागरिकता प्रदान करने की प्रक्रिया में राज्य सरकारों से परामर्श करने की आवश्यकता थी.
आवेदन में कहा गया है कि ‘पंजीकरण या किसी विदेशी को भारतीय नागरिकता देने के लिए आवेदन की जांच तीन स्तरों पर की गई थी- कलेक्टर, राज्य सरकार और केंद्र सरकार. अंततः केंद्र सरकार ने ही नागरिकता देने का निर्णय लिया है.’
आईयूएमएल ने कहा कि सीएए नियम, 2024 ने दस्तावेजों को सत्यापित करने और निष्ठा की शपथ दिलाने के लिए ‘जिला स्तरीय समिति’ को जांच की शक्ति दी है. नागरिकता आवेदनों की जांच के लिए एक ‘अधिकार प्राप्त समिति’ को भी अधिकृत किया गया है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है. यहां तक कि अधिकार प्राप्त समिति की संरचना को भी नियमों में परिभाषित किया गया है.
इसमें कहा गया है, ‘राज्य सरकार के लिए सिफारिशें देने या केंद्र सरकार के लिए आवेदक की उपयुक्तता के बारे में जांच करने की कोई गुंजाइश नहीं है.’
इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार करना चाहिए था.
आवेदन में कहा गया है, ‘अगर सुप्रीम कोर्ट सीएए को असंवैधानिक पाता है, तो जिन लोगों को नागरिकता मिल गई होगी, वे इससे वंचित हो जाएंगे, जिससे एक विषम स्थिति पैदा होगी… सीएए और नियमों के कार्यान्वयन को स्थगित करना सबसे अच्छा है.’
आईयूएमएल ने कहा, ‘ये व्यक्ति पहले से ही भारत में हैं और उन्हें भारत से निर्वासित या निष्कासित किए जाने का कोई खतरा नहीं है. इसलिए कोई जल्दी नहीं थी.’
इसमें कहा गया कि वह प्रवासियों को नागरिकता देने के खिलाफ नहीं है, लेकिन सीएए नागरिकता देने में धर्म के आधार पर भेदभाव करता है.
आईयूएमएल ने कहा, ‘यह एक ऐसा कानून है जो धर्म के बहिष्कार पर आधारित है. यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर प्रहार करता है, जो संविधान की मूल संरचना है… अधिनियम के कार्यान्वयन को धर्म के संदर्भ में निष्पक्ष बनाया जाए.’
आवेदन में कहा गया है कि अदालत को एक अधिनियम और उसके नियमों के अमल पर रोक लगा देनी चाहिए जो एक क़ानून से जुड़ी संवैधानिकता की धारणा के बावजूद स्पष्ट रूप से मनमाने ढंग से और स्पष्ट रूप से असंवैधानिक हैं.
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे.
सीएए को दिसंबर 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई. हालांकि, मुस्लिम संगठनों और समूहों ने धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया और इसका विरोध किया.