‘कारवां’ की सेना पर प्रकाशित रिपोर्ट हटाने के सरकारी आदेश के ख़िलाफ़ याचिका समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर)

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कारवां पत्रिका चलाने वाले दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन ने पत्रिका द्वारा भारतीय सेना पर प्रकाशित एक रिपोर्ट हटाने के सरकारी आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है. रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार (13 मार्च) को दायर याचिका में केंद्र सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए कारवां ने कहा है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आदेश ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन किया है. इसने यह भी जोड़ा है कि अनुच्छेद 14 के तहत मंत्रालय द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करती है क्योंकि कारवां को शिकायत या उसमें लगाए गए आरोपों की प्रति नहीं दी गई थी. बीते फरवरी महीने में सरकार ने जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले में भारतीय सेना के खिलाफ अत्याचार और हत्या के आरोपों पर पत्रकार जतिंदर कौर तूर की ‘स्क्रीम्स फ्रॉम द आर्मी पोस्ट’ शीर्षक वाली रिपोर्ट को आईटी अधिनियम के तहत चौबीस घंटे के भीतर वेबसाइट से हटाने का आदेश दिया था. रिपोर्ट पत्रिका के फरवरी माह के प्रिंट संस्करण में भी प्रकाशित हुई थी.

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने चुनावी बॉन्ड मामले में हस्तक्षेप करने के लिए इसके अध्यक्ष द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई याचिका से खुद को अलग कर लिया है. रिपोर्ट के अनुसार, एसोसिएशन के अध्यक्ष आदीश सी. अग्रवाल ने 11 मार्च को लिखे गए सात पन्नों के पत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए कहा था कि विभिन्न राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले कॉरपोरेट्स के नामों का खुलासा करने से कॉरपोरेट्स उत्पीड़न के प्रति संवेदनशील हो जाएंगे. अदालत ने बॉन्ड जारी करने वाले भारतीय स्टेट बैंक को इससे जुड़ा विवरण चुनाव आयोग को देने को कहा है, जिसे यह डेटा 15 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर लगाना है. अग्रवाल का पत्र सामने आने के बाद 12 मार्च को एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने एक प्रस्ताव पारित करते हुए इस कदम की निंदा की और इसे सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को कमजोर करने का प्रयास बताया. एससीबीए के मानद सचिव रोहित पांडे ने समिति के एक लिखित प्रस्ताव में कहा कि एसोसिएशन को यह स्पष्ट करना होगा कि समिति के सदस्यों ने न तो अध्यक्ष को ऐसा कोई पत्र लिखने के लिए अधिकृत किया है और न ही वे उसमें व्यक्त किए गए उनके विचारों से सहमत हैं. उन्होंने कहा कि अग्रवाल के पत्र की सामग्री माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार को खत्म और कमजोर करने का एक प्रयास थी और वे स्पष्ट रूप से इसकी निंदा करते हैं.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर केंद्र सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि यह लोकसभा चुनाव से पहले खड़ा किया गया ‘राजनीतिक ड्रामा’ है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, उन्होंने कहा कि असम की तरह पश्चिम बंगाल में डिटेंशन कैंप नहीं चाहतीं. उन्होंने जोड़ा कि यह कानून राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से जुड़ा हुआ है और यही कारण है कि वे इसका विरोध कर रही हैं. मालूम हो कि असम सरकार ने साल 2009 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा ‘विदेशी घोषित’ लोगों को निर्वासित किए जाने तक हिरासत में रखने के लिए डिटेंशन केंद्रों को अधिसूचित किया था. ‘घोषित विदेशियों’ को रखने के लिए कोई स्थायी जगह बनने तक इन्हें केंद्रीय जेलों में चलाया जा रहा है. इस बीच राज्य का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर- मतिया ट्रांजिट कैंप पिछले साल जनवरी में शुरू हुआ है. पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ टीएमसी और ममता बनर्जी इस कानून की तीखी आलोचक रही हैं और कह चुकी हैं कि ‘विभाजनकारी’ सीएए को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा.

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा है कि निर्वाचन आयोग समय आने पर चुनावी बॉन्ड का विवरण साझा करेगा. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सीईसी राजीव कुमार बुधवार को जम्मू में संवाददाताओं से बात कर रहे थे, जब बॉन्ड्स के विवरण के सवाल पर उन्होंने कहा कि  आदेश के बाद स्टेट बैंक ने 12 मार्च तक सभी विवरण जमा कर दिए थे और वे (दिल्ली) वापस जाने के बाद उन आंकड़ों को देखेंगे और निश्चित रूप से समय पर इसका खुलासा करेंगे. उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘सुप्रीम कोर्ट में हमारा रुख रहा है कि चुनाव आयोग पारदर्शिता के पक्ष में है. हम आयोग में जो कुछ भी करते हैं और हमारे डीएम चुनाव के दौरान जो कुछ भी करते हैं वह दो बातों पर आधारित होता है- पारदर्शिता और पारदर्शिता. मतदाता को यह जानने का पूरा हक़ है कि हम क्या कर रहे हैं.’ इसी बैठक में उन्होंने जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने में हो रही देरी पर सवाल के जवाब में कहा कि विधानसभा चुनाव जल्द से जल्द होंगे. ‘राजनीतिक दलों, जिलाधिकारियों, सरकार और अर्धसैनिक बलों के अधिकारियों की प्रतिक्रिया लेने के बाद सुरक्षा समीक्षा के बाद संसदीय चुनावों के साथ या इसके बाद यह चुनाव कराने पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा.’