2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक रैली में अमित शाह ने कहा था कि ‘हम सबसे पहले सीएए के माध्यम से भारत आए शरणार्थियों को नागरिकता देंगे, फिर एनआरसी लाकर घुसपैठियों को देश से निकालेंगे.’ हालांकि, अब इस संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उनसे केवल सीएए की बात करें.
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एक हालिया साक्षात्कार में ‘सीएए-एनआरसी क्रोनोलॉजी’ संबंधी एक सवाल टालते नजात आए. शाह द्वारा सीएए की ‘क्रोनोलॉजी’ बताने वाले उक्त बयान ने दिसंबर 2019 में सीएए या नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद स्वतंत्र भारत में सबसे व्यापक विरोध प्रदर्शनों में से एक को बढ़ावा दिया था.
1 मई 2019 को एक रैली में अमित शाह ने विवादास्पद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम की ‘क्रोनोलॉजी’ बताई थी और अपने एक वीडियो के साथ ट्वीट किया था.
उन्होंने कहा था, ‘हम नागरिकता संशोधन विधेयक लाने वाले हैं. इसके तहत आसपास के देशों से जो भी हिंदू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन शरणार्थी आए हैं, इन सभी को हम भारतीय नागरिकता देकर भारत का नागरिक बनाने का काम करेंगे. सबसे पहले हम सीएए के माध्यम से यहां आए शरणार्थियों को नागरिकता देंगे, फिर एनआरसी के माध्यम से घुसपैठियों का चुन-चुनकर देश से निकालने का काम करेंगे.’
First we will pass the Citizenship Amendment bill and ensure that all the refugees from the neighbouring nations get the Indian citizenship. After that NRC will be made and we will detect and deport every infiltrator from our motherland. pic.twitter.com/oB2SlBaQ0j
— Amit Shah (Modi Ka Parivar) (@AmitShah) May 1, 2019
अब, गृह मंत्रालय द्वारा आम चुनाव से ठीक पहले और अधिनियम पारित होने के चार साल तीन महीने बाद सीएए के नियमों की घोषणा के समय को लेकर उठ रहे सवालों के चलते आलोचनाओं का सामना कर रहे शाह सीएए से एनआरसी तक पहुंचने के क्रम के बारे में बोलने से कतरा रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, समाचार एजेंसी एएनआई के अब एक पॉडकास्ट में उक्त क्रोनोलॉजी पर सवाल को टालते हुए उन्होंने कहा, ‘अब कोई एनआरसी नहीं है, केवल सीएए के बारे में बात करें.’ उन्होंने एएनआई से दोनों मुद्दों को ‘मिक्स’ न करने को कहा.
सीएए के पक्ष में ‘अखंड भारत’ का तर्क
गुरुवार को सामने आए पॉडकास्ट में शाह ने कहा, ‘अखंड भारत के जो लोग हिस्सा थे और जिन पर धार्मिक प्रताड़ना हुई है, उनको शरण देना हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है.’
हजारा, शिया या अहमदिया जैसे मुस्लिम समूहों को संभवतः उन देशों में सताया जा रहा है, पर शाह ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उन्हें सताया गया, उन्होंने कहा, ‘अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक देश हैं. हमारे पास उत्पीड़न का कोई डेटा नहीं है. वहां मुसलमानों पर कैसे अत्याचार किया जा सकता है?’ इस कानून को भारत के अतीत से जुड़ा हुआ बताते हुए शाह ने कहा कि मुसलमानों को अन्य कानूनों के तहत नागरिकता लेने की अनुमति है, लेकिन सीएए ने दक्षिण एशिया के तीन देशों के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता की प्रक्रिया तेज कर दी है जो दिसंबर 2019 से पहले देश में आए थे और पांच साल से भारत में रह रहे हैं.
शाह ने नियमों के समय पर सवाल उठाने के लिए विपक्ष को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने 2019 के अपने घोषणापत्र में कहा था कि हम सीएए लेकर आएंगे. 2019 में विधेयक संसद के दोनों सदनों ने पास कर दिया था, उसके बाद कोविड के कारण थोड़ा देरी हुई. नियम लाने के समय या राजनीतिक नफा-नुकसान का सवाल नहीं है, विपक्ष तुषटिकरण की राजनीति करके अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहता है.’
पूर्वी भारत, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस अधिनियम के इनर लाइन परमिट की आवश्यकता वाले राज्यों या भारत के संविधान की छठी अनुसूची द्वारा संरक्षित समूहों/क्षेत्रों पर लागू नहीं होने की बात कही.
ऑल्ट न्यूज के अभिषेक ने शाह द्वारा गलतबयानी, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने और गलत जानकारी देने के बारे में एक्स पर तथ्यों की व्याख्या करने वाला एक पोस्ट लिखा है.
उन्होंने कहा, ‘गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 1951 में बांग्लादेश में हिंदू आबादी 22% थी. आप सोच रहे होंगे कि बांग्लादेश तो 1971 में आजाद हुआ था, फिर वह 1951 की जनगणना के मुताबिक दावा कैसे कर रहे हैं? लेकिन ठहरिए, वह पूर्वी बंगाल/पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का जिक्र कर रहे हैं. पूर्वी पाकिस्तान की जनगणना का अलग डेटा उपलब्ध है.’
वह आगे लिखते हैं, ‘लेकिन रुकिए, जब वह पाकिस्तान की हिंदू और सिख आबादी (23%) के बारे में दावा करते हैं तो इस बिंदु पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिस डेटा का वह उल्लेख कर रहे हैं, उसी के अनुसार भारत सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध पाकिस्तान की 1951 की पहली जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि हिंदू और अन्य धर्मों की संयुक्त जनसंख्या (मुस्लिम और ईसाइयों को छोड़कर) पाकिस्तान, पूर्वी बंगाल/पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान की कुल जनसंख्या का 12.86% थी.’
वह आगे लिखते हैं, ‘यदि पूर्वी बंगाल/पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के डेटा को कुल जनसंख्या गणना से बाहर कर दिया जाए, जैसा कि गृहमंत्री ने पहले ही उस डेटा का अलग से उल्लेख किया है, तो हिंदू और अन्य धर्मों की जनसंख्या का कुल प्रतिशत (मुस्लिम और ईसाइयों को छोड़कर) आज के पाकिस्तान (जिसमें केवल पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान शामिल हैं) की कुल जनसंख्या का 7.5% था.’
This is what misrepresentation of facts looks like. A very clever way of twisting facts and spreading misinformation as per your need.
Home Minister Amit Shah said that in 1951, Hindu Population of Bangladesh was 22%. You must be thinking that Bangladesh got independence in… https://t.co/LlqmIo79Go pic.twitter.com/QeB4DPBnkt
— Abhishek (@AbhishekSay) March 14, 2024
अंत में अभिषेक लिखते हैं, ‘दोनों ही तरीकों से, चाहे वह पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के आंकड़ों को शामिल करें या बाहर करें, पाकिस्तान में हिंदू और सिख आबादी के बारे में विभाजन के बाद की जनगणना को लेकर उनका दावा फिर भी गलत है.’