केंद्र सरकार ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में तैनात वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक कुमार परमार ने अन्य उल्लंघनों के अलावा ‘सरकार के खिलाफ’ सार्वजनिक शिकायतें और अन्य सामग्री सोशल मीडिया पर पोस्ट करके सिविल सेवा नियमों का उल्लंघन किया है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार की एक जांच के बाद फैसला सुनाया गया है कि जम्मू-कश्मीर में तैनात वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक कुमार परमार ने अन्य उल्लंघनों के अलावा ‘सरकार के खिलाफ’ सार्वजनिक शिकायतें और अन्य सामग्री सोशल मीडिया पर पोस्ट करके सिविल सेवा नियमों का उल्लंघन किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने पिछले साल 15 नवंबर को अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के नियम 8 के तहत 1992-बैच के आईएएस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की थी.
परमार के खिलाफ कार्रवाई द वायर द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को लिखे उनके पत्र को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित करने के कुछ दिनों बाद हुई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने वित्त और कानून विभागों की सलाह की अवहेलना की और एक निजी बीमा कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए कई करोड़ रुपये के अनुबंध में संशोधन किया.
हालांकि, परमार के खिलाफ जांच की अंतिम रिपोर्ट, जिनकी 2020 से उनकी ‘वार्षिक प्रदर्शन रिपोर्ट’ में सात प्रतिकूल प्रविष्टियां हैं, अभी तक तैयार नहीं की गई हैं, लेकिन गृह मंत्रालय ने माना है कि अधिकारी ने सोशल मीडिया पर कथित तौर पर असत्यापित सामग्री जो ‘सरकार और उसकी नीतियों, उपलब्धियों और कामकाज के खिलाफ थी, पोस्ट करके अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 का उल्लंघन किया है.
अपने बचाव में परमार ने यह तर्क देते हुए आरोपों से इनकार किया है कि उन्होंने ‘केवल ट्विटर पर पोस्ट की गई वैध सामग्री साझा की है जो सार्वजनिक चिंता के मुद्दों पर प्रकाश डालती है (जिस पर) जम्मू-कश्मीर प्रशासन के संबंधित अधिकारियों द्वारा ध्यान और तत्काल कार्रवाई की जरूरत है.
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक फैसले, जिसमें कहा गया था कि सरकारी अधिकारियों को निजी वॉट्सऐप ग्रुप में पोस्ट के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है, का हवाला देते हुए परमार ने मंत्रालय को बताया कि जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक सचिवों के वॉट्सऐप ग्रुप के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया गया था, जिसमें उन्होंने ऑफिशियल ग्रुप के तौर पर विवादित पोस्ट डाली थीं.
परमार ने अपने बचाव में कहा, ‘सरकार ने सरकारी कर्मचारी/कार्यालय के लिए वॉट्सऐप ग्रुप बनाने के लिए कोई सर्कुलर या वैधानिक प्रावधान नहीं दिया है, इसलिए ग्रुप में सरकारी कर्मचारियों की किसी भी गतिविधि को गंभीर अनुशासनात्मक नियमों से नहीं जोड़ा जा सकता है. इस प्रकार ऐसे किसी सरकारी आदेश के अभाव में यह अधिकारियों का एक निजी वॉट्सऐप ग्रुप है.’
गृह मंत्रालय ने आईएएस अधिकारी द्वारा वॉट्सऐप ग्रुप में पोस्ट किए गए पांच ‘विवादास्पद’ ट्वीट्स का हवाला दिया है. इनमें से एक ट्वीट खुद परमार ने लिखा था. उनमें से कुछ को सरसरी तौर पर पढ़ने से पता चलता है कि ये सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के अस्पष्ट दावे हैं, लेकिन उनमें से दो स्पष्ट हैं.
सबसे पहले मुजफ्फर खान नामक व्यक्ति ने ट्विटर पर पोस्ट किया था, जिसने जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी के संकट के बारे में बात की थी. दूसरा ट्वीट, जिसके लिए परमार पर कदाचार का आरोप लगाया गया है, उसमें मोहसिन वानी नाम के शख्स ने जम्मू-कश्मीर के राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर लोक सेवा गारंटी अधिनियम (पीजीएसए) के तहत निर्दिष्ट समयसीमा के अनुसार दस्तावेज उपलब्ध न कराने की अपनी आपबीती बताई है.
उन्होंने लिखा, ‘मैंने पीजीएसए के तहत राजस्व विभाग में फर्द इंतिखाब के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था, अंतिम तिथि 10 दिन थी. आज 24 दिन बीत गए और पटवारी न तो जवाब देने की जहमत उठाता है और न ही कोई जवाबदेही है. सभी पीएसजीए सेवाओं के लिए ऑटो अपील जरूरी है.’
गृह मंत्रालय ने कहा कि परमार ने वॉट्सऐप ग्रुप में ट्वीट पोस्ट करके अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के नियम 7 का उल्लंघन किया है.
‘आरोपों’ में मंत्रालय ने परमार पर ‘अपने अधिकारक्षेत्र से परे’ विभागों में ‘अनुचित हस्तक्षेप’ का भी आरोप लगाया है. यह उस घटना की बात है, जब वह 8 अप्रैल, 2023 को जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक सुधार निरीक्षण (एआरआई) प्रशिक्षण और शिकायत विभाग के प्रशासनिक सचिव के रूप में पुंछ के दौरे पर थे.
मंत्रालय ने कहा है, ‘जिले में उनके दौरे के दौरान लिए गए फैसले/जारी किए गए निर्देश विभिन्न विभागों के कामकाज में अनुचित हस्तक्षेप की ओर इशारा करते हैं, जो उनके विभाग को सौंपे गए कार्यक्षेत्र से परे था.’
द वायर द्वारा प्राप्त यात्रा के आधिकारिक रिकॉर्ड नोट के अनुसार, परमार ने पुंछ में चल रहे विकास कार्यों और कुछ नागरिक मुद्दों के संबंध में कई निर्देश जारी किए थे, जो जिले के पंचों, सरपंचों और अन्य के साथ बैठक के दौरान उनके सामने उठाए गए थे. इसमें जन प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया जिसमें जिला विकास आयुक्त भी शामिल थे.
अन्य लोगों के अलावा परमार ने पुंछ के अतिरिक्त उपायुक्त को जिले में एक सरकारी योजना के लिए धन के कथित हेरफेर की जांच करने का निर्देश दिया था. दूसरे में अधिकारी ने एक वरिष्ठ इंजीनियर को पुंछ के सुरनकोट क्षेत्र के निवासियों के लिए ‘सभी क्षतिग्रस्त पाइपों की बहाली और सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने’ के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया, जहां एक दशक पहले 2014 की जम्मू-कश्मीर बाढ़ में पीने के पानी की पाइपलाइनें क्षतिग्रस्त हो गई थीं.
व्यावसायिक नियमों के नियम 4 (i) का हवाला देते हुए, जिसके तहत ‘प्रशासनिक सुधार, निरीक्षण और लोक शिकायतों का निवारण’ एआरआई विभाग को सौंपा गया है, परमार ने मंत्रालय को बताया कि उन्हें विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा किए गए कार्यों का निरीक्षण करने के लिए कानून द्वारा ‘सौंपा गया’ था.
परमार ने आरोप से इनकार करते हुए कहा, ‘निरीक्षण दल निर्धारित प्रारूप के अनुसार निरीक्षण करता है और अपनी रिपोर्ट संबंधित प्रशासनिक विभाग को सौंपता है.’
‘आरोपों’ में परमार पर एक जांच की रिपोर्ट को लीक करने का भी आरोप लगाया है जो उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपने से पहले 2023 में जम्मू-कश्मीर के एक भारतीय वन सेवा अधिकारी द्वारा कथित कदाचार और अनुशासन के उल्लंघन को लेकर फाइल की थी.
मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि परमार ने ‘एक जांच अधिकारी के रूप में अपनी भूमिका को संभालने में प्रोफेशनलिज़्म की कमी दिखाई और जांच रिपोर्ट की गोपनीयता बनाए रखने में विफल रहे, जो उनकी एकमात्र जिम्मेदारी थी.’ इसके जवाब में परमार ने कहा है, ‘चूंकि मैं जांच रिपोर्ट का लेखक था, इसलिए इसे मेरे द्वारा कभी भी गुप्त के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था, इसलिए इसकी गोपनीयता का सवाल पूरी तरह से अस्पष्ट है.’
जांच रिपोर्ट को लीक करने में आईएएस अधिकारी की कथित संलिप्तता कथित पेशेवर कदाचार और अक्षमता, अन्य सरकारी विभागों के साथ हस्तक्षेप और दुर्व्यवहार के आठ मामलों में से एक है, जो आईएएस अधिकारी पर लगाए गए हैं.
इस दावे के जवाब में कि परमार ने जल जीवन मिशन (जेजेएम) के अमल में पेशेवर अक्षमता दिखाई, परमार ने मंत्रालय को बताया कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों को केंद्र प्रायोजित योजना के कार्यान्वयन में कथित उल्लंघनों के बारे में बताया था, जिसके कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है.
परमार ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और तत्कालीन मुख्य सचिव अरुण मेहता पर जेजेएम के कार्यान्वयन में ‘गड़बड़ियों’ को उजागर करने के बाद अपनी जाति के कारण उन्हें परेशान करने और अपमानित करने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का दरवाजा भी खटखटाया है.
आईएएस अधिकारी ने कहा कि उन्होंने ‘आपराधिक साजिश’ और शीर्ष अधिकारियों से जुड़े ‘चूक और कमीशन के विभिन्न कृत्यों’ के बारे में, जिसमें शीर्ष अधिकारी शामिल थे, गृह मंत्रालय को आठ पत्र लिखे थे, जिसके परिणामस्वरूप कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर में जेजेएम का खराब कार्यान्वयन हुआ था, जबकि ‘पेशेवर अक्षमता’ के आरोपों को ‘अस्पष्ट, तथ्यात्मक रूप से गलत, पक्षपाती, पूर्वाग्रही और भ्रामक’ कहकर खारिज कर दिया था.
परमार ने मंत्रालय को बताया कि जम्मू-कश्मीर के जल शक्ति विभाग के प्रशासनिक सचिव के रूप में अपने संक्षिप्त तीन महीने के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने ‘खराब प्रदर्शन और पेशेवर अक्षमता’ के लिए दो मुख्य इंजीनियरों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिनमें से एक मनेश कुमार भट्ट को जम्मू संभाग से निलंबित कर दिया गया.
उन्होंने कहा कि भट के खिलाफ ‘नियमित विभाग कार्रवाई’ को बंद करने के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन की मंजूरी ने उनके रुख को ‘सही’ साबित कर दिया है कि अधिकारी के ‘खराब प्रदर्शन और पेशेवर अक्षमता’ के कारण जम्मू-कश्मीर में जेजेएम का खराब कार्यान्वयन हुआ. भट्ट को सरकारी आदेश संख्या: 204-जेके (जेएसडी) (दिनांक 25/08/2023) के माध्यम से जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1956 के नियम 30 के संदर्भ में ‘निंदा’ का दंड दिया गया था.
हालांकि, परमार ने गृह मंत्रालय को दिए अपने जवाब में कहा कि सामान्य वित्तीय नियमों, केंद्रीय सतर्कता आयोग के दिशानिर्देशों और 23 जून, 2022 को छठी शीर्ष समिति की बैठक के निर्देश, माल की खरीद के लिए मैनुअल, 2017 के खंड 7.5.9 और खंड 8.1.12 का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए कश्मीर के भट्ट के समकक्ष के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.
कथित अनियमितताओं के आरोपों के जवाब में गुजरात के भरूच जिले के आईएएस अधिकारी ने मंत्रालय को बताया कि उन्हें हाल ही में 2023 तक केंद्र शासित प्रदेश में सेवा करने के लिए जम्मू-कश्मीर के सतर्कता विभाग से मंजूरी मिल गई है और ऐसे में आरोपों को ‘शुरुआत से हटा दिया जाना चाहिए.’
मंत्रालय ने यह भी आरोप लगाया था कि आईएएस अधिकारी ने बिना अनुमति के जल शक्ति विभाग में 398 अधिकारियों का तबादला कर दिया. आरोप को खारिज करते हुए, परमार ने जवाब दिया कि विभाग में कर्मचारियों की भारी कमी के कारण ट्रांसफर आवश्यक हो गया था और उन्होंने एलजी सिन्हा के सलाहकार आरआर भटनागर से सभी तबादलों के लिए अनुमोदन प्राप्त किया था.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन में शीर्ष अधिकारियों से जुड़े एक कथित ‘ट्रांसफर रैकेट’ की ओर इशारा करते हुए परमार ने दावा किया कि एक वरिष्ठ अधिकारी, जो वर्तमान में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत हैं, ने अनधिकृत तबादलों का सहारा लिया और एक आदेश जारी करके अपने कार्यालय में राजस्व अधिकारियों को स्थानांतरित करने की शक्तियों को केंद्रीकृत कर दिया. यह पहले के सरकारी आदेश का उल्लंघन है जिसने संभागीय आयुक्तों, उपायुक्तों और उप संभागीय मजिस्ट्रेटों को तबादलों की शक्ति प्रदान की थी.
इससे पहले, परमार ने जम्मू-कश्मीर में सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए बजाज आलियांज को एक अनुबंध के आवंटन में प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों की संलिप्तता वाली कथित ‘चूक और कमीशन’ का मुद्दा उठाया था. वित्तीय अनियमितताओं के कारण जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अनिल अंबानी की रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के साथ एक अनुबंध समाप्त करने के बाद आईएएस अधिकारी ने एलजी सिन्हा और डॉ. मेहता पर भी आरोप लगाए थे. इस मामले की जांच फिलहाल सीबीआई द्वारा की जा रही है.