लोकसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा से सिर्फ एक दिन पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पहाड़ी जातीय जनजाति, पद्दारी जनजाति, कोली और गड्डा ब्राह्मण समुदायों को 10% आरक्षण देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, ओबीसी का कोटा भी 4% से बढ़ाकर 8% कर दिया है. विपक्ष ने इसे भाजपा के चुनावी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उठाया गया कदम बताया है.
श्रीनगर: लोकसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से 24 घंटे से भी कम समय पहले, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शुक्रवार शाम को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पहाड़ी समुदाय और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का कोटा बढ़ाने के लिए केंद्रशासित प्रदेश के आरक्षण नियमों में संशोधन की घोषणा की, साथ ही ओबीसी सूची में 15 और समुदायों को जोड़ने का ऐलान किया.
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि इस कदम के समय से पता चलता है कि भाजपा चुनावों में इससे चुनावी लाभ उठाना चाहती है.
पहाड़ियों के लिए आरक्षण
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में केंद्रशासित प्रदेश की प्रशासनिक परिषद ने पहाड़ी जातीय जनजाति, पद्दारी जनजाति, कोली और गड्डा ब्राह्मण समुदायों को 10% आरक्षण देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. इन समुदायों को आरक्षण की घोषणा संसद द्वारा उन्हें अनुसूचित जनजाति घोषित करने के लिए विधेयक पारित करने के दो महीने बाद और भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) द्वारा लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा से ठीक एक दिन पहले की गई .
लोकसभा और राज्यसभा से क्रमश: 6 फरवरी और 9 फरवरी को मंजूरी मिल जाने के बाद, भारत के राष्ट्रपति ने 12 फरवरी को विधेयक को मंजूरी दे दी थी.
जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में अधिसूचित चार समुदायों में से, राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ी समुदाय 2019 से 4 प्रतिशत आरक्षण का लाभ प्राप्त कर रहा था, उस समय तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने उन्हें नौकरियों और सरकार द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण देने वाले विधेयक को मंजूरी दी थी.
पहाड़ियों को एसटी का दर्जा दिए जाने से गुज्जर-बकरवाल समुदायों में व्यापक विरोध देखा गया था, जिन्होंने आरोप लगाया कि इस कदम का उद्देश्य उनकी आदिवासी पहचान को कमजोर करना है.
गुज्जर-बकरवाल समुदायों को शांत करने के लिए, केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने 2022 से बार-बार यह कहा है कि पहाड़ियों को आरक्षण देने से उनका कोटा प्रभावित नहीं होगा.
दोनों समुदायों के बीच एक संतुलन स्थापित करने के लिए, इस साल एसटी घोषित पहाड़ी तथा तीन अन्य समुदायों और पहले से अधिसूचित एसटी, दोनों को ही अब 10-10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा, जिससे जम्मू-कश्मीर में एसटी श्रेणी का आरक्षण 20 प्रतिशत हो जाएगा.
पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देना और उनके कोटा में बढ़ोतरी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की पहाड़ी समुदाय को लुभाने की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है. समुदाय पीर पंजाल क्षेत्र, जिसमें मुस्लिम बहुल राजौरी और पुंछ जिले भी शामिल हैं, के 8 में से 7 खंडों में बहुमत में है. इन सात खंडों में से छह अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट का हिस्सा हैं.
इस कदम से अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को फायदा होने की संभावना है, जो ऐसा पहला चुनावी क्षेत्र है जिसमें जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के भौगोलिक हिस्से शामिल हैं. इस सीट में 18 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं – 7 जम्मू के और 11 कश्मीर के. परिसीमन आयोग द्वारा इस सीट के गठन पर काफी विवाद हुआ था और इसकी सीमा का निर्धारण एक पार्टी विशेष को फायदा पहुंचाने के लिहाज से करने के आरोप लगे थे.
नए समूह और ओबीसी कोटा में वृद्धि
प्रशासनिक परिषद ने अन्य पिछड़ा वर्ग में 15 और समुदायों को शामिल किया है. नए सामाजिक समूहों को मान्यता देने के अलावा, सरकार ने ओबीसी का कोटा भी 4% से बढ़ाकर 8% कर दिया है.
दिसंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम में संशोधन से पहले, ओबीसी को केंद्रशासित प्रदेश में ‘कमजोर और वंचित वर्ग (सामाजिक जाति)’ के रूप में जाना जाता था.
इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने और उनका कोटा बढ़ाने से जम्मू और उधमपुर सीटों पर भाजपा की पकड़ मजबूत होगी, जिन्हें पार्टी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में लगातार जीता था.
चुनावी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उठाया कदम: विपक्ष
द वायर से बात करते हुए, चार बार के विधायक और वरिष्ठ सीपीआई (एम) नेता एमवाई तारिगामी ने इस कदम के पीछे का कारण भाजपा के चुनावी उद्देश्यों की पूर्ति को बताया है.
उन्होंने कहा, ‘यह चुनावी उद्देश्यों के लिए है और इसीलिए यह घोषणा (लोकसभा) चुनाव की तारीखों की घोषणा से एक दिन पहले की गई है.’
कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के मुख्य प्रवक्ता रविंदर शर्मा ने कहा कि इन संशोधनों के समय से पता चलता है कि सत्तारूढ़ भाजपा इस कदम से चुनावी लाभ लेना चाहती है.
उन्होंने कहा, ‘उन्हें पहाड़ी और अन्य समुदायों के लिए आरक्षण की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा उन्हें एसटी का दर्जा देने वाले विधेयक को मंजूरी देने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने चुनावों के कारण इसमें देरी की.’
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