काशी- मथुरा के मंदिरों के लिए राम मंदिर जैसा आंदोलन ज़रूरी नहीं: दत्तात्रेय होसबाले

आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने काशी और मथुरा के संदर्भ में कहा कि मामलों की सुनवाई अदालत में हो रही है, अयोध्या विवाद का समाधान भी अंततः अदालतों के माध्यम से ही निकला. अगर मामला न्यायपालिका द्वारा हल किया जा सकता है तो समान पैमाने के आंदोलन की आवश्यकता कहां है.

नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सरकार्यवाह पद के लिए दत्तात्रेय होसबाले को पुनः निर्वाचित करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत. (फोटो साभार: आरएसएस)

आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने काशी और मथुरा के संदर्भ में कहा कि मामलों की सुनवाई अदालत में हो रही है, अयोध्या विवाद का समाधान भी अंततः अदालतों के माध्यम से ही निकला. अगर मामला न्यायपालिका द्वारा हल किया जा सकता है तो समान पैमाने के आंदोलन की आवश्यकता कहां है.

नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सरकार्यवाह पद के लिए दत्तात्रेय होसबाले को पुनः निर्वाचित करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत. (फोटो साभार: आरएसएस)

नई दिल्ली: आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने काशी और मथुरा के मंदिरों के संदर्भ में रविवार को कहा कि मंदिर से जुड़े अन्य मुद्दों पर राम जन्मभूमि जैसे आंदोलन की जरूरत नहीं है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘मामले (काशी और मथुरा) की सुनवाई अदालत में हो रही है. अयोध्या विवाद का समाधान भी अंततः अदालतों के जरिये ही निकला. अगर मामला न्यायपालिका द्वारा हल किया जा सकता है तो उस पैमाने के आंदोलन की आवश्यकता कहां है?’

फिर से महासचिव चुने जाने के बाद बोलते हुए होसबाले ने कहा, ‘मथुरा और काशी को पुनः प्राप्त करने के लिए संतों और विहिप के बीच मांग बढ़ रही है, लेकिन हर समस्या के लिए एक समान दृष्टिकोण नहीं हो सकता है. सामाजिक और धार्मिक संगठनों के नेतृत्व में हिंदू समय-समय पर इन मुद्दों को उठा सकते हैं.’

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, दत्तात्रेय होसबाले ने चुनावी बॉन्ड का भी जिक्र किया और कहा कि चुनावी बॉन्ड एक प्रयोग था और केवल समय ही बताएगा कि ये फायदेमंद रहे हैं या नहीं.

होसबाले ने यह भी कहा कि किसी विशेष समुदाय को अल्पसंख्यक बताने से समाज में विभाजन होता है. उन्होंने कहा, ‘संविधान में वर्णित अल्पसंख्यकों की अवधारणा पर पुनर्विचार की आवश्यकता है. यह राष्ट्र किसका है? यह हर किसी का है. लेकिन कुछ समुदायों को अल्पसंख्यक कहने का चलन कई दशकों से चला आ रहा है. संघ अल्पसंख्यक-एसएम राजनीति का विरोध करता है.’

उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस भारत के सभी नागरिकों को राष्ट्रीयता के आधार पर ‘हिंदू’ मानता है और उन लोगों के साथ संवाद बनाए रखने की कोशिश करता है जो इस विचार से सहमत नहीं हैं.

पूरे देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने का समर्थन करते हुए होसबाले ने कहा कि आरएसएस ने हमेशा इसका स्वागत किया है. उत्तराखंड में यूसीसी के हालिया अधिनियम का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विधेयक का अच्छी तरह से अध्ययन किया जाना चाहिए और पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए क्योंकि आरएसएस ऐसा कदम चाहता है.

ज्ञात हो कि आरएसएस की बैठक में कर्नाटक के शिवमोग्गा में जन्मे होसबाले को अगले तीन वर्षों के लिए आरएसएस के सर कार्यवाह (महासचिव) के रूप में फिर से चुना गया. होसबाले ने सुरेश भैयाजी जोशी का स्थान लिया था जो 2021 तक चार कार्यकाल तक आरएसएस के महासचिव रहे थे.

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बाद दूसरे नंबर के सर कार्यवाह का पुनर्निर्वाचन हर तीन साल में होता है. अपने दोबारा चुने जाने के बाद होसबाले ने यह भी कहा कि संघ ने अभी तक चुनावी बॉन्ड मामले पर चर्चा नहीं की है.

उन्होंने कहा, ‘चुनावी बॉन्ड देख-जांच कर लाए गए. ऐसा नहीं है कि आज अचानक से चुनावी बॉन्ड आ गए. इन्हें पहले भी लाया गया था. जब भी कोई बदलाव लाया जाता है तो सवाल उठाए जाते हैं. जब ईवीएम आई तो सवाल भी उठे…सवाल स्वाभाविक हैं. लेकिन समय बताएगा कि नई प्रणाली कितनी फायदेमंद और प्रभावी है.’