मोदी सरकार के ‘अमृत काल’ में आर्थिक असमानता ब्रिटिश राज से भी अधिक है

वर्ल्ड इनक्वॉलिटी डेटाबेस में बताया गया है कि 1922 में भारत के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की कुल आय में हिस्सेदारी 13% थी, जो 1940 में बढ़कर 20% हो गई. 2022-23 आते-आते शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों के पास भारत की कुल आय का 22.6 प्रतिशत हिस्सा और कुल संपत्ति का 40.01 प्रतिशत हिस्सा है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: World Inequality Report 2022/Wikimedia Commons)

वर्ल्ड इनक्वॉलिटी डेटाबेस में बताया गया है कि 1922 में भारत के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की कुल आय में हिस्सेदारी 13% थी, जो 1940 में बढ़कर 20% हो गई. 2022-23 आते-आते शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों के पास भारत की कुल आय का 22.6 प्रतिशत हिस्सा और कुल संपत्ति का 40.01 प्रतिशत हिस्सा है.

मोदी सरकार के दौर की आर्थिक असमानता ब्रिटिश राज से भी ज्यादा हो गई है. यह निष्कर्ष वर्ल्ड इनक्वॉलिटी डेटाबेस (World Inequality Database) के भारत से संबंधित आर्थिक असमानता पर लिखे गए पेपर से निकलता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 से लेकर 2022 के बीच यानी मोदी सरकार के दौर में भारत में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा बढ़ी है. सबसे ज्यादा फायदा भारत के शीर्ष एक फीसदी अमीरों को हुआ है.

वर्ल्ड इनक्वॉलिटी डेटाबेस ने भारत में मौजूद आर्थिक असमानता पर जारी पेपर का शीर्षक है- भारत में आर्थिक असमानता: ‘अरबपति राज’ अब ब्रिटिश औपनिवेशिक राज से भी अधिक असमान है (Economic Inequality in India: The ‘Billionaire Raj’ is now more unequal than the British Colonial Raj). मतलब भारत की आर्थिक असमानता में अरबपतियों का राज है. अरबपतियों के राज में चल रहा भारत अंग्रेजों की गुलामी के दौर से भी ज्यादा आर्थिक असमानता वाला देश बन गया है. इस रिपोर्ट को नितिन कुमार भारती, लुकास चैन्सल, थॉमस पिकेटी और अनमोल सोमंची ने लिखा है.

जब भारत पर ब्रिटेन की हुकूमत राज कर रही थी, यह ब्रिटेन का उपनिवेश था. सरकार को लोग नहीं चुनते थे, बल्कि ब्रिटेन की हुकूमत चुनती थी. तब, 1922 में भारत के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की कुल आय में हिस्सेदारी 13% थी, जो 1940 में बढ़कर 20% हो गई . उसके बाद जब भारत आजाद हुआ, तब से लेकर साल 1980 की शुरुआत तक भारत में आर्थिक असमानता की खाई यानी अमीरी और गरीबी के बीच की खाई कम होती रही.

आजादी के बाद भारत की आर्थिक असमानता कम होने के पीछे दावा किया जाता है समाजवादी नीतियों को अपनाने का. इसके बाद साल 1982 के बाद जैसे ही सरकारों ने देश की अर्थव्यवस्था को अमीरों के जरिये आगे बढ़ाने की नीतियां बनाईं, वैसे ही आर्थिक असमानता बढ़ने लगी. साल 2000 के बाद आर्थिक असमानता की खाई जमीन और आसमान के अंतर की गति से बढ़ने लगी.

साल 2022-23 आते-आते भारत में अमीरी और गरीबी की खाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों के पास भारत की कुल आय का 22.6 प्रतिशत हिस्सा और कुल संपत्ति का 40.01 प्रतिशत हिस्सा है.

वर्तमान समय, जिसे मोदी सरकार भारत का ‘अमृत काल’ बताती है, यह दावे करती है कि वह भारत को दुनिया की शीर्ष 3 अर्थव्यवस्था में शामिल करवाएगी, उस दौर में देश में अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती खाई गुलाम भारत से भी ज्यादा बड़ी हो गई है.

इस रिपोर्ट की मानें, तो शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों के पास भारत की कुल आय और संपत्ति में जितनी ज्यादा हिस्सेदारी आज है, उतनी ज्यादा पहले कभी नहीं रही. भारत में नेता हर बात में ऐतिहासिक जोड़ना पसंद करते हैं. यह रिपोर्ट प्रमाण है कि मौजूदा वक्त में भारत में ऐतिहासिक तौर पर सबसे ज्यादा आर्थिक असमानता पल रही है.

भारत में शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की देश की कुल आय और संपत्ति में जितनी हिस्सेदारी है, उतनी हिस्सेदारी दुनिया के किसी भी अन्य देश में वहां के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की नहीं है. आबादी और भूगोल के मामले में देखा जाए, तो भारत की तुलना दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका जैसे देश से की जा सकती है. इन तीनों देशों को मिला देने के बाद जो शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की वहां की कुल आय और संपत्ति में हिस्सेदारी बनती है, उससे भी ज्यादा भारत के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की यहां की कुल आय और संपत्ति में है.

रिपोर्ट से बताती है कि साल 1951 में भारत के शीर्ष 10 प्रतिशत अमीरों की देश की कुल आय में हिस्सेदारी 37% थी, जो 1982 में घटकर 30 प्रतिशत हो गई. मगर साल 1990 के बाद भारत के शीर्ष 10 प्रतिशत अमीरों की धन-संपदा में इजाफा होने लगा. अब इनकी देश की कुल आय में हिस्सेदारी 60% के आसपास है, जबकि दूसरी तरफ भारत की नीचे की 50% आबादी की देश की कुल आय में हिस्सेदारी महज 15% है. इसका आशय हुआ कि भारत के शीर्ष 50% लोगों के पास भारत की 85% आय है.

कह सकते हैं कि भारत की आर्थिक सरकारी नीतियां इतनी बदतर हैं कि अमीरी और गरीबी का अंतर कम नहीं हो रहा, बल्कि बढ़ रहा है.

अगर शीर्ष 10% आबादी की भारत की कुल संपत्ति में हिस्सेदारी की बात की जाए तो यह 65% के आसपास बनती है, जबकि नीचे की 50% आबादी की देश की कुल संपत्ति में हिस्सेदारी महज 6.4% है. जिसका आशय है कि भारत के 60% से ज्यादा संसाधनों पर केवल 10% अमीरों का हक है, जबकि 50% आबादी का हक महज 6.4% संसाधनों पर है.

देश में नीचे की 50% आबादी की वार्षिक औसत आय महज 71 हजार रुपये है, यानी महीने में महज 6,000 रुपये के आसपास. वहीं, भारत के शीर्ष 10,000 सबसे अमीर लोग देश की प्रति व्यक्ति आय के मुकाबले 2069 गुना ज्यादा कमाते हैं.

चीन में लोगों की औसत आय वर्ष 1975 तक भारत की औसत आय के बराबर थी. मगर साल 1980 के बाद भारत में इतनी ज्यादा आर्थिक असमानता बढ़ी कि भारत की औसत आय चीन के मुकाबले 250 प्रतिशत कम है. जिसका अर्थ हुआ कि एक चीनी नागिरक एक भारतीय नागरिक के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा कमाता है.

वर्ल्ड इनक्वॉलिटी डेटाबेस का यह पेपर भारत की कर व्यवस्था पर भी सवाल उठाता है. आसान भाषा में समझिए तो बात यह है कि एक बेहतर कर प्रणाली वह होती है जिसमें अमीरों से ज्यादा कर वसूला जाए और गरीबों से कम. भारत में उल्टा हो रहा है.

यहां की कर व्यवस्था में अमीरों पर कर का भार कम पड़ रहा है और गरीबों पर ज्यादा. अगर केवल भारत के 162 सबसे अमीर लोगों पर दो प्रतिशत का टैक्स बढ़ा दिया जाए तो उससे राष्ट्रीय आय में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी होगी कि मनरेगा के लिए मोदी सरकार जो बजट निर्धारित करती है, उसके दो गुना से भी ज्यादा.

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