नई दिल्ली: सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्टिविस्ट कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा जुटाए गए डेटा से पता चला है कि नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी बॉन्ड योजना की संवैधानिकता पर अपना फैसला सुरक्षित रखने के बाद 1,577 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना मामले में बीते वर्ष 2 नवंबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इसके बाद इस साल 15 फरवरी 2024 को इस योजना को अदालत ने असंवैधानिक करार देते हुए तत्काल प्रभाव से रद्द करने का फैसला सुनाया था. हालांकि, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने कोर्ट के फैसला सुरक्षित रखने के दो दिन बाद ही चुनावी बॉन्ड बिक्री के 29वें चरण की घोषणा कर दी थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, 6 नवंबर से 20 नवंबर 2023 तक चली 29वें दौर की बिक्री में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड बेचे गए. इसके अगले चरण में 2 जनवरी से 11 जनवरी 2024 तक 570 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे गए. कुल मिलाकर देखें तो 29वें चरण में बेचे गए लगभग 99 प्रतिशत बॉन्ड और 30वें चरण में बेचे गए 94 प्रतिशत बॉन्ड 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में थे.
नरेंद्र मोदी सरकार ने अकेले 2024 में 1 करोड़ रुपये के 8,350 चुनावी बॉन्ड भी छापे थे.
ज्ञात हो कि लोकेश बत्रा द्वारा दायर एक पूर्व आरटीआई से यह भी पता चला था कि इन चुनावी बॉन्ड की छपाई और प्रबंधन का खर्चा करदाता (टैक्सपेयर) यानी आम लोगों की जेब से होता है. इसमें चंदा देने वाले लोगों, कंपनियों या राजनीतिक पार्टियों की कोई भूमिका नहीं है.
भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा जारी डेटा के मुताबिक, भाजपा को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 8,251 करोड़ रुपये मिले हैं, जो साल 2018 के बाद से इस योजना के जरिए चंदे से मिली कुल राशि का लगभग 50% है.