देहरादून: सितंबर 2022 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में श्रीनगर के पास डोभ गांव की 19 वर्षीय युवती अंकिता भंडारी के साथ हैवानियत व हत्या के घाव इस बार यहां के लोकसभा चुनावों में भाजपा के गले की फांस बने हुए हैं. डेढ़ वर्ष बाद भी लोग इस घटना को भूले नहीं हैं. पारिवारिक चुनौतियों के बाद भी अंकिता के आगे बढ़ने के बड़े सपने थे. किसी भी तरह वह अपने असहाय मां-बाप और घर का सहारा बनना चाहती थी. इसलिए अपने घर से कोई सौ किमी दूर ऋषिकेश के पास एक रिसॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट की छोटी-सी नौकरी शुरू की, लेकिन फिर कभी वापस नहीं लौट पाई.
अंकिता को अपने इस काम पर आए महीना भर भी नहीं बीता था कि उससे पहले ही उसे वेश्यावृत्ति में धकेले जाने का विरोध करने पर मौत के घाट उतार दिया गया. ज़मीनी रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरोप है कि रिसॉर्ट का मालिक भाजपा व आरएसएस का प्रभावशाली नेता था. उसके बेटे ने अपने दो कर्मचारियों के साथ मिलकर अंकिता पर भाजपा संगठन के एक प्रमुख पदाधिकारी की हवस पूरी करने का दबाव बनाया था, जिसका विरोध करने व भेद खुलने के डर से उसकी हत्या कर दी गई.
क्या बनेगा चुनावी मुद्दा
इस बार लोकसभा चुनावों में उत्तराखंड की सभी पांचों सीटों पर अंकिता भंडारी हत्याकांड, बेरोजगारी, अग्निवीर योजना की वजह से सेना में भर्ती का उत्साह खत्म होना और गांवों को उजाड़ने तथा शहरों को बसाने की नीतियों के अलावा अवैज्ञानिक तरीके से सड़कों, सुरंगों की खुदाई से ध्वस्त होते पहाड़ और शिक्षा की बदहाल स्थिति, आम आदमी की पहुंच से दूर अस्पताल, सड़क व पानी जैसे कई ज्वलंत मुद्दे हैं.
गढ़वाल की टिहरी समेत बाकी तीनों सीटों पर अंकिता हत्याकांड का अंडरकरंट है. भाजपा के खिलाफ कांग्रेस, उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) समेत हर विपक्षी दल प्रायः हर चुनावी सभा में हमलावर है.
अंकिता भंडारी के साथ जिस तरह का सलूक हुआ, उस वजह से उनके माता-पिता से हमदर्दी रखने वालों में यह सबसे ज्यादा भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है. इसलिए चुनावों के बीच आम जनमानस में गुस्से की इस तपिश से भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें हैं.
गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में ही अंकिता का घर है और यह हत्यास्थल के अधीन आता है. यहां भाजपा को हर जगह स्कूल-कॉलेज की छात्राओं, महिलाओं, नौजवानों, जन संगठनों आदि के तीखे सवालों का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा के पास कोई ठोस जवाब नहीं है.
वहीं कांग्रेस ने इस मामले को मुख्य चुनावी मुद्दों के केंद्र में रखा है. अंकिता के माता-पिता को आरंभ से ही धामी सरकार के रवैये पर कोई भरोसा नहीं था. वे इस बात पर अड़े रहे कि हत्यारों को जल्द सजा सुनिश्चित करने के लिए सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट के सुपुर्द हो. टास्क फोर्स की जांच मात्र दिखावे की थी क्योंकि उसने जांच के कई बिंदुओं पर पर्दा डाल दिया.
महिलाओं की नाराज़गी
उत्तराखंड महिला मंच के आग्रह पर हत्या के कुछ सप्ताह बाद ही देश की कई महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के उच्चस्तरीय जांच दल ने फरवरी 2023 में जारी जांच रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने अंकिता की हत्या की एसआईटी जांच को प्रभावित करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए और परिवार के साथ कदम-कदम पर अपमानजनक बर्ताव किया.
टीम ने घटनास्थल से सबूत मिटाने के दोषी जिला प्रशासन के अधिकारियों और भाजपा विधायक रेणु बिष्ट के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने पर भी रोष जताया था.
महिला मंच की सदस्य उमा भट्ट कहती हैं, ‘सरकारी वकील के जरिये कोर्ट में कमजोर पैरवी का विरोध हुआ तो नए वकील की वजह से मामला पटरी पर आ सका.’
उनका आरोप है कि जेल में बंद हत्यारों की कॉल डिटेल्स को सरकार व भाजपा के दबाव में अदालत में पेश नहीं करना वास्तव में सबूतों को कमजोर करना है, ताकि अपराधी आगे जाकर सजा से बच निकलें. अंकिता की मां इस बात से भी क्षुब्ध हैं कि छिटपुट बहाने बनाकर जांच जानबूझकर कछुआ चाल से चली.
हत्यारों के मोबाइल कॉल का ब्यौरा बरामद करने, वक्त पर कार्रवाई न करने और बाद में घटनास्थल से सबूत नष्ट करवाने में राज्य सरकार, जिला प्रशासन और महिला भाजपा विधायक को जांच के दायरे में रखने की भी मांग हुई थी.
अंकिता के माता-पिता के साथ जन संगठनों ने कई बार धरने और प्रदर्शन भी किए. भाजपा समेत कई दलों की महिलाएं और नौजवानों ने इनमें खुलकर शिरकत की. चूंकि हत्यारे और उसके परिवार का संबंध भाजपा और संघ के कई प्रभावशाली लोगों से था, इसलिए ये मांगें अनसुनी कर दी गईं.
धामी सरकार पर सवाल
पूरे राज्य में भारी जनाक्रोश भड़कने के बाद इस दुष्कर्म और हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग का धामी सरकार ने अदालत के भीतर और बाहर हर स्तर पर विरोध किया. इससे धामी सरकार पर हर किसी ने सवाल उठाए.
राज्य सरकार की शह पर अंकिता के असहाय माता-पिता की मदद करने वालों पर झूठे केस बना दिए गए, जिनमें उन्हीं के गांव के आशुतोष नेगी भी शामिल हैं, जिन्होंने मामले में परिवार को कानूनी मदद उपलब्ध कराने में सक्रिय भूमिका निभाई, उन्हें एक झूठे मामले में फंसाकर जेल में डाल दिया गया.
कई लोगों की नजर में राज्य बनने के बाद से ही यहां पनपी ओछी राजनीतिक संस्कृति ने धनाढ्य बनने के लिए अपराधियों, राजनेताओं, सरकारी अधिकरियों व माफिया गिराहों के आंतरिक गठजोड़ को और मजबूत बनाया.
भाजपा और राज्य की धामी सरकार आंदोलनकारियों व प्रमुख विपक्षी कांग्रेस के निशाने पर इसलिए है क्योंकि अंकिता का मुख्य हत्यारा पुलकित आर्या राज्य माटी कला आयोग के अध्यक्ष और दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री विनोद आर्या का बेटा था.
मूलतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुम्हार समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विनोद आर्या जाति के पीछे आर्यसमाजी चोला ओढ़ने से भी बाज़ नहीं आए, ताकि उत्तराखंड में अनुसूचित समुदाय से मिले-जुले नाम का भ्रम बनाए रखने का भी सियासी लाभ उठा सकें.
इस हत्याकांड की जांच भले ही राज्य की एक महिला आईपीएस की अगुवाई में गठित टास्क फोर्स ने की, लेकिन इससे पहले कि टास्क फोर्स हत्याकांड और अपराध स्थल में मौजूद सबूतों तक पहुंच पाती, हत्याकांड के संभावित घटनास्थल को राज्य सरकार, प्रशासन और पुलिस की पूरी निगरानी में ढहा दिया गया.
यह सब कुछ राज्य की धामी सरकार की आंखों के सामने हुआ. बताया जाता है कि यमकेश्वर क्षेत्र से भाजपा की विधायक रेणु बिष्ट, जिनके हत्यारों के परिवार से करीबी ताल्लुक हैं, ने बुलडोजर लाकर रिसॉर्ट में अंकिता के निजी कमरे को ढहा दिया और सीसीटीवी फुटेज के साक्ष्यों को भी मिटा दिया. आरोप यह भी है कि उसी कमरे में अंकिता के साथ रिसॉर्ट के मालिक और मैनेजर ने बलात्कार किया था.
विंडबना यह भी है कि अंकिता की पढ़ाई के बैच के एक मित्र के साथ उसकी कई महीनों की बातचीत और मोबाइल चैट की जानकारी तो टास्क फोर्स ने आसानी से जुटा ली, लेकिन हत्यारों की ओर से इसी अवधि में की गई बातचीत और चैट का ब्यौरा टास्क फोर्स ने पूरी तरह छिपा दिया.
भाजपा नेता के इस रिसॉर्ट में सत्ताधारी भाजपा, संघ परिवार, प्रशासन और पुलिस के अलावा कई तरह के संदिग्ध लोगों का आना-जाना बताया जाता था. साथ ही, उन्हें यहां हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराए जाने की चर्चाएं आम थीं.
दूसरी ओर, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अंकिता भंडारी की हत्या और जनाक्रोश को किस तरह अनदेखा कर कर रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस वीआईपी प्रदेश संगठन मंत्री को परोसने के लिए अंकिता भंडारी की हत्या हुई, उसे पद से हटाना तो दूर बल्कि वो इन दिनों उत्तराखंड में भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान का प्रमुख किरदार बना हुआ है.
अंकिता के गांव के लोग मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से इसलिए भी आक्रोशित हैं क्योंकि मुख्यमंत्री ने श्रीनगर में स्थानीय नर्सिंग कॉलेज का नाम अंकिता भंडारी के नाम पर रखने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक वादा नहीं निभाया.
बहरहाल, उत्तराखंड के चुनावों को अंकिता भंडारी हत्यांकांड प्रभावित करे या नहीं, लेकिन पहली बार पहाड़ों के किसी बड़े चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा महिलाओं व लड़कियों की सुरक्षा के सवालों पर इतनी बुरी तरह घिरी हुई है कि समान नागरिक संहिता कानून लाकर अपनी वाहवाही करने के खोखले टोटके भी उसके काम नहीं आ रहे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)