नई दिल्ली: कश्मीर विश्वविद्यालय में ‘समान नागरिक संहिता’ (यूसीसी) पर भारतीय सेना द्वारा आयोजित सेमिनार चौतरफा आलोचना के बाद रद्द कर दिया गया है.
रिपोर्ट के मुताबकि, इस कार्यक्रम के खिलाफ स्थानीय राजनीतिक दलों, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों और एक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी सहित अन्य लोगों ने विरोध दर्ज करवाते हुए सेना से इस ‘विभाजनकारी मुद्दे’ से दूर रहने का आग्रह किया था.
मामले के तूल पकड़ने के बाद सेना द्वारा शनिवार (23 मार्च) को इस सेमिनार रद्द कर दिया गया. श्रीनगर स्थित रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल मनोज साहू ने कहा, ‘आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण कश्मीर विश्वविद्यालय में कश्मीर ज्यूरिस्ट द्वारा 26 मार्च को होने वाला कानूनी जागरूकता सेमिनार रद्द कर दिया गया है.’
गौरतलब है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देशभर में समान नागरिक संहिता लागू करने की इच्छुक है.
इस मुद्दे को कई लोगों ने भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर प्रहार करार दिया है और कश्मीर में सेमिनार को भाजपा द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए देश की सशस्त्र बलों का उपयोग करने के एक और प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
26 मार्च को निर्धारित इस कार्यक्रम का शीर्षक ‘नेविगेटिंग लीगल फ्रंटियर्स: अंडरस्टैंडिंग इंडियन पीनल कोड 2023 एंड द क्वेस्ट फॉर यूनिफॉर्म सिविल कोड’ था. यह एक दिवसीय सेमिनार सेना के मुख्यालय 31 सब एरिया द्वारा कश्मीर विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित किया जा रहा था.
राजनीतिक दलों का विरोध
इस सेमिनार के संबंध में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पूछा कि ‘क्या सेना के लिए समान नागरिक संहिता पर बहस करना उचित है और वह भी कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में’.
Is it appropriate for the Indian Army to get involved in the divisive issue of the uniform civil code & that too in a sensitive area like Kashmir? There is a reason the Indian Army has remained apolitical & areligious. This ill-advised UCC seminar is a threat to both these basic… pic.twitter.com/MD2FPmPabd
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) March 23, 2024
उन्होंने आगे लिखा, ‘भारतीय सेना गैर-राजनीतिक और गैर-धार्मिक है, इसकी कोई वजह है. यूसीसी पर सेमिनार इन दोनों मूल सिद्धांतों के लिए खतरा है. इससे सेना पर राजनीति की गंदी दुनिया में शामिल होने के साथ-साथ धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने के आरोप लगने का खतरा है.’
जम्मू-कश्मीर में सेना की रणनीतिक उत्तरी कमान का नेतृत्व कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने द वायर से बात करते हुए कहा कि सेना को राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों से दूर रहना चाहिए.
लेफ्टिनेंट जनरल हुडा ने कहा, ‘मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि कोई भी विषय जिसमें राजनीति या धर्म की थोड़ी सी भी झलक हो, सेना को सावधानी से उससे बचना चाहिए, खासकर सार्वजनिक तौर पर चर्चा से.’
हालांकि, यह सेमिनार सशस्त्र बलों द्वारा आयोजित अपनी तरह का पहला कार्यक्रम नहीं है, यह जम्मू-कश्मीर में शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े नियमित खेल और अन्य कार्यक्रम आयोजित करता है. लेकिन यह शायद पहली बार था कि सेना सीधे तौर पर किसी राजनीतिक विषय पर किसी कार्यक्रम को प्रायोजित कर रही थी और वह भी कश्मीर के सबसे प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान में.
नई दिल्ली स्थित थिंक-टैंक इंस्टिट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के कार्यकारी निदेशक अजय साहनी ने सेना के इस फैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया.
अजय साहनी कहते हैं, ‘अगर यह अधिकारियों के बीच जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक बंद कमरे की चर्चा होती, तो यह एक अलग मामला होता. लेकिन इस तरह की भागीदारी वास्तव में सेना की संस्थागत संस्कृति और लंबे समय से स्थापित परंपराओं के लिए बुरा संकेत है.’
इस कार्यक्रम के संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘भारतीय सेना दुनिया की चौथी सबसे मजबूत और सबसे अनुशासित सेनाओं में से एक है. चूंकि भाजपा ने धर्म को हथियार बना लिया है और इसे देश के सभी पवित्र संस्थानों में घुसपैठ करा रही है, इसलिए सेना भी इससे हताहत होती दिख रही है.’
इस सेमिनार के लिए शुक्रवार (22 मार्च) को भेजे गए निमंत्रण पत्र के अनुसार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस एन. कोटश्वर सिंह इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होने वाले थे. वहीं जम्मू-कश्मीर के कानून सचिव अचल सेठी और मेजर जनरल पीबीएस लांबा, जो सेना के मुख्यालय 31 सब एरिया के जीओसी हैं, पैनलिस्ट में शामिल थे.
कार्यक्रम का एक पैनल इस चर्चा के लिए निर्धारित किया गया था कि कैसे नया कोड ‘धर्मनिरपेक्षता और … सामाजिक सद्भाव के सिद्धांतों के साथ संरेखित होता है’ और यह भारत में ‘व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता को बनाए रखने में योगदान देता है.’
इसमें ‘पारिवारिक कानून और विरासत कानूनों’ के लिए समान नागरिक संहिता की ‘चुनौतियों और लाभों’ पर भी चर्चा होनी थी.
निमंत्रण पत्र में कहा गया था कि सेमिनार के अंत में दूसरी पैनल चर्चा ‘भारतीय न्याय संहिता 2023’ पर केंद्रित होगी, जिसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 की जगह ली है. इसके अलावा आईपीसी में हाल के संशोधनों ने कैसे ‘अपराध पीड़ितों के अधिकारों को सशक्त बनाने और उनकी रक्षा करने’ को कैसे बढ़ावा दिया है इस पर भी बात होनी थी.
निमंत्रण पत्र के अनुसार, दोनों पैनल चर्चाओं के बाद प्रश्नोत्तर सत्र होने वाले थे.