नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार सीपीसीबी ने दिल्ली-एनसीआर में पर्यावरण की रक्षा के लिए अब तक एकत्र किए गए धन में से 80 प्रतिशत का इस्तेमाल ही नहीं किया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, सीपीसीबी की यह रिपोर्ट ट्रिब्यूनल द्वारा दिसंबर, 2023 में पारित आदेश के अनुपालन में दायर की गई थी.
सीपीसीबी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत वैधानिक प्रदूषण नियंत्रण वॉचडॉग है. सीपीसीबी ने यह रिपोर्ट 20 मार्च को सौंपी थी. इसमें कहा गया है कि सीपीसीबी को मोटे तौर पर दो मदों- पर्यावरण संरक्षण शुल्क (ईपीसी) और पर्यावरण मुआवजा (ईसी) के तौर पर फंड मिलते हैं. निकाय ने दोनों मदों के तहत एकत्र किए गए कुल 777.69 करोड़ रुपये में से केवल 156.33 रुपये यानी केवल 20 प्रतिशत ही खर्च किए हैं.
एनजीटी ने अन्य बातों के अलावा शहरी स्थानीय निकायों के अधिकारक्षेत्र में आने वाली सड़कों के निर्माण और मरम्मत की फंडिंग में सीपीसीबी की भागीदारी पर सवाल उठाने के बाद इन दोनों फंडों से व्यय का विवरण मांगा था.
एनजीटी के समक्ष दायर एक रिपोर्ट के अनुसार, सीपीसीबी ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण संरक्षण शुल्क निधि से जो 95.4 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, उनमें से आधे से अधिक का उपयोग वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन करने पर किया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बाकी राशि प्रयोगशाला उपकरणों को उन्नत करने, क्षेत्र के दौरे, वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को मजबूत करने और कुछ धान के भूसे प्रबंधन पर खर्च की गई.
इसके अलावा, सीपीसीबी ने विभिन्न शहरों में हवा की गुणवत्ता सुधारने, पर्यावरण सुधार और जमीनी सर्वेक्षण के लिए पर्यावरण क्षतिपूर्ति (ईसी) निधि से 393.8 करोड़ रुपये में से 61.13 करोड़ रुपये खर्च किए.
इस साल 3 जनवरी 2024 तक सीपीसीबी ने ईपीसी खाते में 383.39 करोड़ रुपये एकत्र किए थे और इसमें से 95.4 करोड़ रुपये वितरित किए गए, जबकि 288.49 करोड़ रुपये शेष रह गए थे.
सीपीसीबी ने बताया है कि वैज्ञानिक अध्ययन, निरीक्षण अभियान और स्वच्छ वायु अभियान शुरू करने जैसे कार्यों पर 88.7 करोड़ रुपये खर्च किए गए.