नई दिल्ली: देश के प्रमुख थिंक टैंक में से एक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च- इंडिया (सीपीआर) के बीते साल जून में कर छूट का दर्जा खोने के बाद संस्थान को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 10.16 करोड़ रुपये का टैक्स देने को कहा गया है. इसका भुगतान करने के लिए सीपीआर को एक माह का समय दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 22 मार्च के डिमांड नोटिस के अनुसार, यह मांग 19.25 करोड़ रुपये मिलने की गणना के आधार पर की गई है और सीपीआर को अब एओपी यानी व्यक्तियों का संघ (association of persons) माना जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि मंगलवार (26 मार्च) को ही सीपीआर ने घोषणा की थी कि उसकी मुख्य कार्यकारी यामिनी अय्यर 1 अप्रैल 2024 को पद छोड़ देंगी और सीनियर फेलो श्रीनिवास चोक्काकुला उनकी जगह लेंगे.
अख़बार के पास उपलब्ध जानकारी से पता चलता है कि हाल में जारी किया गया 73 पेज का डिमांड नोटिस सीपीआर द्वारा उन्हीं कथित उल्लंघनों को दोहराता है, जो थिंक टैंक को कर छूट की स्थिति और इस साल फरवरी में विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत पंजीकरण रद्द से पहले मिले नोटिस में दर्ज किए गए थे.
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा 22 मार्च की टैक्स डिमांड के बारे में पूछे जाने पर चोक्काकुला ने बताया, ‘मैंने केवल इसके बारे में सुना है. सीपीआर के पास इन मुद्दों को संभालने वाले पेशेवरों की एक टीम है और हम तय करेंगे कि इस बारे में कैसे आगे बढ़ना है.’
ज्ञात हो कि कर छूट का दर्जा खोने के समय अय्यर ने इस कार्रवाई को ‘एक स्वतंत्र, उच्च सम्मानित अनुसंधान संस्थान को कमज़ोर करने वाला कदम बताया था.’
सीपीआर की मुश्किलें 7 सितंबर, 2022 को तब शुरू हुई थीं, जब इसके परिसर में आयकर विभाग ने एक ‘सर्वेक्षण’ किया था, जिसके बाद थिंक टैंक और उसके प्रमुख कर्मचारियों को कई कारण बताओ नोटिस भेजे गए.
आयकर (आईटी) विभाग ने तब आरोप लगाया था कि सीपीआर ने अपनी आय का उपयोग ‘अपने घोषित उद्देश्यों के अलावा’ अन्य कामों के लिए किया था. इसकी कई गतिविधियां ‘वास्तविक नहीं थीं’ और तो कुछ इसके उद्देश्यों के अनुरूप नहीं की जा रही थीं. अपने जवाब में सीपीआर ने लगातार किसी भी गलत काम से इनकार किया था.
वर्तमान आदेश, जिसमें आईटी अधिनियम की धारा 143 (3) के तहत सीपीआर पर टैक्स लगाया गया है, में अन्य कारकों के साथ निम्नलिखित कथित उल्लंघनों पर साक्ष्य (और सीपीआर के उत्तर) भी दर्ज किए गए हैं:
– सीपीआर नमाती इंक यूएसए से फंडिंग प्राप्त करने के बाद मुकदमेबाजी वाली गतिविधियों में लगी हुई है और सीपीआर द्वारा दावा किया गया 2.69 करोड़ रुपये का खर्च उनके उद्देश्यों के खिलाफ है.
– सीपीआर जन अभिव्यक्ति सामाजिक विकास संस्था (जेएएसवीएस) के माध्यम से हसदेव आंदोलन में शामिल था. जबकि जेएएसवीएस ने इन्हें स्वैच्छिक योगदान के रूप में दिखाया है, सीपीआर ने उन्हें भुगतान किए गए कुल 16.86 लाख रुपये को ‘पेशेवर शुल्क’ के रूप में दिखाया है. ये खर्च, अब सीपीआर की कर मांग में जोड़ा गया है.
– सीपीआर भवन की चौथी मंजिल का नवीनीकरण करने वाले ठेकेदार को दिए गए 27.32 लाख रुपये के भुगतान को ‘फर्जी लेनदेन’ और ‘धन की हेराफेरी’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
– सीपीआर को आईटी प्रावधानों के तहत आवश्यक संगठनों और एक विदेशी विश्वविद्यालय को दी गई व्यावसायिक सेवाओं की प्राप्तियों के लिए खातों की अलग-अलग किताबें नहीं रखने के लिए दोषी ठहराया गया है. आईटी के अनुसार, संस्था ने व्यावसायिक आय को उस आय के साथ जोड़ दिया है जिस पर वह छूट का दावा कर रहा था.
गौरतलब है कि सीपीआर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में आईटी छूट रद्द करने को चुनौती दी है लेकिन नवीनतम आईटी मांग नोटिस ने इस कार्यवाही को ‘विशिष्ट और अलग’ कहा है.