हिरासत में मौत के मामलों में सख़्त दृष्टिकोण की ज़रूरत: सुप्रीम कोर्ट

हिरासत में मौत के मामले में एक पुलिस कॉन्स्टेबल को दी गई ज़मानत रद्द करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारी एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में अधिक प्रभाव डाल सकता है.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में मौत के मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि हिरासत में मौत के मामलों में आरोपी पुलिसकर्मियों की जमानत याचिकाओं से निपटते समय ‘सख्त दृष्टिकोण’ अपनाने की जरूरत है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ हिरासत में मौत के मामले में एक पुलिस कॉन्स्टेबल को दी गई जमानत के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने हाईकोर्ट द्वारा कॉन्स्टेबल को दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा कि पुलिस अधिकारी एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में अधिक प्रभाव डाल सकता है.

इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली पुलिसकर्मी की जमानत के खिलाफ मृतक के भाई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस अपील को स्वीकार करते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह एक तथ्य है कि उसे सामान्य परिस्थितियों में संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत किसी आरोपित को जमानत देने के आदेश को अमान्य करने के लिए अपने अधिकारक्षेत्र का इस्तेममाल नहीं करना चाहिए. लेकिन जमानत देने के सवाल से निपटने के दौरान यह मानदंड हिरासत में मौत के उस मामले में लागू नहीं होगा, जहां पुलिस अधिकारी ही आरोपी हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी पुलिसकर्मी को बीते साल 15 फरवरी को जमानत दे दी थी.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मुख्य रूप से दो कारणों से जमानत देने और ‘सख्त दृष्टिकोण’ अपनाने के सवाल पर सामान्य नियम से अपवाद बना रहा है. पहला कि आरोपी पुलिस बल का हिस्सा है और दूसरा की आरोप हिरासत में मौत का है.

अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज है, बावजूद इसके आरोपी को हिरासत के डेढ़ साल के भीतर ही जमानत पर रिहा कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कथित अपराध गंभीर प्रकृति का है और इस कारक पर उच्च न्यायालय द्वारा उचित रूप से विचार नहीं किया गया है.

पीठ ने कहा, ‘आरोपपत्र की सामग्री को ध्यान में रखते हुए हमें नहीं लगता कि यह एक उपयुक्त मामला था जहां आरोपी को प्रारंभिक हिरासत के डेढ़ साल के भीतर ही जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए था. इसलिए हम इस लागू आदेश को रद्द कर देते हैं और आरोपी को चार सप्ताह की अवधि के भीतर सीबीआई अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश देते हैं. आरोपी के आत्मसमर्पण करने के बाद, उसे संबंधित अदालत द्वारा हिरासत में ले लिया जाएगा.’

गौरतलब है कि पुलिस हिरासत में मरने वाले व्यक्ति को 11 फरवरी, 2021 को एक डकैती के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में 19 पुलिसकर्मियों को आरोपित बनाया गया है.