बैन संगठनों द्वारा धन के उपयोग की पुष्टि के बिना यूएपीए में बैंक खाते फ्रीज़ नहीं कर सकते: कोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने यूएपीए के तहत चेन्नई की एक ट्रस्ट के बैंक खाते फ्रीज करने के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि जब तक कि केंद्र सरकार जांच करके इस बात की संतुष्टि न कर ले कि उन खातों में मौजूद धन का इस्तेमाल प्रतिबंधित संगठनों के लिए किया जा रहा है, बैंक खातों को तब तक फ्रीज नहीं किया जा सकता.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फ्लिकर)

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत बैंक खातों को तब तक फ्रीज नहीं किया जा सकता है जब तक कि केंद्र जांच करके इस बात को लेकर संतुष्ट न हो कि उन खातों में मौजूद धन का इस्तेमाल प्रतिबंधित संगठनों के लिए किया जा रहा है या किए जाने का इरादा है.

द हिंदू के मुताबिक, जस्टिस एमएस रमेश और जस्टिस सुंदर मोहन की खंडपीठ ने चेन्नई के तमिलनाडु डेवलपमेंट फाउंडेशन ट्रस्ट के बचत बैंक खाते को फ्रीज करने के एक कार्यकारी आदेश को रद्द करते हुए ऐसा कहा. ट्रस्ट पर यूएपीए के तहत प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की सहायता करने का संदेह था.

जजों ने कहा कि यूएपीए की धारा 7 केंद्र को गैर कानूनी संघ के धन के उपयोग पर रोक लगाने का अधिकार देती है और धारा 7 (1) ऐसे निषेधात्मक आदेश पारित करने से पहले पालन की जाने वाली प्रक्रियाओं को निर्धारित करती है. ये प्रावधान पूर्व जांच और पुष्टि को अनिवार्य बनाते हैं.

पीठ ने अपने आदेश में लिखा, ‘बेशक, वर्तमान मामले में केंद्र सरकार ने उस तरीके को व्यक्त नहीं किया है जिससे वे व्यक्तिपरक संतुष्टि पर पहुंचे थे, बल्कि डिजिटल उपकरणों से मिले कुछ दस्तावेजों पर भरोसा किया जो अकेले पीएफआई के नाम का सबूत देते हैं, याचिकाकर्ता ट्रस्ट के नाम का नहीं.’

इसमें कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने यह विशिष्ट रुख अपनाया था कि उसका पीएफआई के साथ कोई संबंध नहीं है और उसके बचत बैंक खाते के धन का उपयोग कभी भी पीएफआई की गतिविधियों के लिए नहीं किया गया है, लेकिन उत्तरदाता इस स्थिति में नहीं है कि याचिकाकर्ता ट्रस्ट और पीएफआई के बीच सांठगांठ को प्रमाणित कर सके.’

फैसला लिखते हुए जस्टिस रमेश ने लिखा, ‘जब धारा 7(1) निषेधात्मक आदेश पारित करने से पहले एक जांच करना अनिवार्य बनाती है, जो कि वर्तमान मामले में नहीं की गई है, तो परिणामी आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करने के अलावा संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) का उल्लंघन होगा.’

खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील आई. अब्दुल बासित से भी सहमति जताई कि उनके मुवक्किल से यूएपीए की धारा 7 (4) के तहत जिला अदालत का दरवाजा खटखटाकर वैकल्पिक राहत का लाभ उठाने की भी अपेक्षा नहीं की जा सकती थी, क्योंकि बैंक खाता फ्रीज करने का कार्यकारी आदेश ट्रस्ट को तामील ही नहीं कराया गया.

जजों ने कहा, ‘यह बताने की जरूरत नहीं है कि निषेधात्मक आदेश ने ट्रस्ट के कामकाज को ठप कर दिया होगा और इसे ट्रस्ट के उद्देश्यों को पूरा करने से अक्षम कर दिया होगा. इसलिए, ट्रस्ट के एकमात्र बैंक खाते को फ्रीज करने से उस पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा होगा.’

उन्होंने आदेश में यह भी लिखा, ‘जब भी यूएपीए की धारा 7 को लागू करके उत्तरदाताओं द्वारा कोई दंडात्मक कार्रवाई शुरू की जाती है, तो उनका कर्तव्य होता है कि वे प्रभावित पक्ष को की गई कार्रवाई के बारे में सूचित करें. दूसरे शब्दों में, इस तरह के निषेधात्मक आदेश को प्रभावित पक्ष को तामील कराना बहुत महत्वपूर्ण है.’

धारा 7 (4) निषेधात्मक आदेश के खिलाफ क्षेत्राधिकार वाली जिला अदालत में जाने के लिए 15 दिनों की समयसीमा का प्रावधान करती है.

इस संबंध में न्यायाधीशों ने कहा, ‘जब प्रभावित पक्ष को आदेश ही नहीं दिया जाता है, तो हम यह समझने में असमर्थ हैं कि कैसे ट्रस्ट वैकल्पिक उपाय का लाभ उठा सकता है.’

हालांकि, पीठ ने बैंक खाते को फ्रीज करने का आदेश जारी करने के ग्रेटर चेन्नई पुलिस के अधिकार पर सवाल उठाने वाले याचिकाकर्ता के तीसरे आधार को खारिज कर दिया. पीठ ने कहा कि यूएपीए केंद्र को अपने अधिकार राज्य सरकार को सौंपने का अधिकार देता है. राज्य सरकार इसे पुलिस को सौंप सकती है.

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