सीजेआई को लिखा वकीलों का पत्र लोगों को गुमराह करने की कोशिश है: ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन

बीते सप्ताह देशभर के 600 से अधिक वकीलों ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर ‘न्यायपालिका की अखंडता’ पर ख़तरे के बारे में चिंता जताई थी. अब ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन का कहना है कि यह पत्र न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लगातार लड़ रहे ज़िम्मेदार वकीलों और वकील मंचों के ख़िलाफ़ बेबुनियाद बात है.

(फोटो साभार: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और आदीश अग्रवाल सहित अन्य वकीलों के एक समूह द्वारा हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को एक पत्र लिखकर एक खास समूह पर ‘निहित स्वार्थ से न्यायपालिका पर दबाव बनाने’ की कोशिश करने का आरोप लगाने के बाद ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (एआईएलयू) ने भी एक बयान जारी किया है.  कि

द हिंदू की खबर के मुताबिक, एआईएलयू का कहना है कि यह पत्र चुनावी बॉन्ड योजना पर शीर्ष अदालत के फैसले द्वारा भ्रष्टाचार के उजागर होने का सीधा नतीजा है.

ज्ञात हो कि बीते सप्ताह देशभर के 600 से अधिक वकीलों ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर ‘न्यायपालिका की अखंडता’ पर खतरे के बारे में चिंता जताई थी. पत्र पर दस्तखत करने वालों में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा समेत देशभर के 600 से अधिक वकीलों ने ‘न्यायिक प्रक्रियाओं में हेरफेर करने, अदालती फैसलों को प्रभावित करने और निराधार आरोपों और राजनीतिक एजेंडा के साथ न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास’ करने वाले ‘निहित स्वार्थ वाले समूह’ की निंदा की थी.

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोशल मीडिया पर इस पत्र को साझा करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा था और ट्विटर (अब एक्स) पर लिखा था कि ‘दूसरों को डराना-धमकाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है.

अब ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के नेता, वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य और वरिष्ठ वकील पीवी सुरेंद्रनाथ ने कहा कि यह पत्र जिम्मेदार वकीलों और वकीलों के मंचों, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा और भारतीय संविधान की बुनियादी संरचना की रक्षा के लिए लगातार लड़ रहे हैं, के खिलाफ केवल निराधार बातें करना है.

एआईएलयू ने कहा कि पत्र लिखने वाले वकीलों का यह समूह अतीत में चुप रहा, जब केंद्र की वर्तमान सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता सहित संविधान की बुनियादी संरचना के खिलाफ हमले कर रही थी. जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों ने संसद की सर्वोच्चता के नाम पर ‘न्यायिक समीक्षा’ और ‘बुनियादी ढांचे’ पर हमला किया और न्यायाधीशों के चयन में कार्यपालिका की भूमिका निर्धारित करने की मांग की.

एआईएलयू ने दावा किया कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के तबादले के मामले में मौजूदा सरकार द्वारा सीधा हस्तक्षेप किया गया.

यूनियन ने आगे कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने और उसमें हस्तक्षेप करने के लिए’ न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों में लगी हुई है. इसके साथ ही कई मौकों पर न्यायाधीशों की नियुक्तियों और तबादलों पर कॉलेजियम के फैसलों का अनादर भी किया गया है.

वकीलों ने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को सेवानिवृत्ति पर मोदी शासन द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया था. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में जस्टिस अब्दुल नज़ीर की सेवानिवृत्ति के छह सप्ताह के भीतर उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया.

एआईएलयू के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड और प्रेस सूचना ब्यूरो की ‘अलोकतांत्रिक फैक्ट चैक यूनिट’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने वकीलों के इस ‘समूह’ को परेशान कर दिया है. ‘पत्र में लगाए गए निराधार आरोप, अफवाहें देश भर के वकीलों और कानूनी बिरादरी की आम राय नहीं हैं. ‘वकीलों का यह समूह’ भारत में अधिवक्ताओं और कानूनी बिरादरी का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.

उन्होंंने कहा कि न्यायपालिका की सुरक्षा के नाम पर इस समूह की कोशिश न्यायपालिका के खिलाफ केवल एक छलावा और परोक्ष धमकी है क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जवाबदेही के लिए न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग करता है. यह खुद को न्यायपालिका के रक्षक के रूप में पेश करने वाली झूठी कहानी के साथ लोगों को गुमराह करने का भी एक प्रयास है.

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