नई दिल्ली: देश के पवित्र शहरों में से एक वृंदावन में हिंदू राष्ट्रवादी विचारक साध्वी ऋतंभरा लड़कियों के लिए संविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल नामक एक विद्यालय चलाती हैं. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी की संस्थापक ऋतंभरा की राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका थी.
पिछले साल जून में स्कूल में आयोजित एक व्यक्तित्व विकास शिविर के दौरान 60 वर्षीय साध्वी ने छात्राओं को ‘सम्मान’, परंपराओं और रीति-रिवाजों के बारे में संबोधित किया. स्कूल के फेसबुक पेज पर साझा किए गए एक वीडियो में ऋतंभरा को कहते हुए देखा जा सकता है कि कॉलेजों में और सोशल मीडिया पर लड़कियां कैसे ‘निरंकुश’ हो रही हैं.
ऋतंभरा ने कहा, ‘जब हम कॉलेजों में देखते हैं… आधी रात को लड़कियां सिगरेट के धुएं उड़ाती हुईं, जहां आजकल एजुकेशन के हब हो गए हैं, शराब की बोतलें फोड़ती हुईं… मोटरसाइकिलों पर अपने बॉयफ्रेंड के साथ… गंदा वातावरण बनाती हुईं … भारत की भूमि के लिए तो ऐसी कल्पना कभी की ही नहीं थी, कि भारत की पुत्रियां इतनी निरंकुश हो जाएंगी. सोशल मीडिया पर मां- बहनों की गालियां कह-कह कर अपनी रील डाल रही हैं, नंगी होकर फोटो खिंचा रही हैं, कच्छे-बनियान में अपने अंगों का प्रदर्शन कर रही हैं, तो लगता है यह मानसिक रोगी लड़कियां हैं… इनको मानसिक रोग हो गया है… क्योंकि संस्कार नहीं हैं.’
हाल ही में उनका वृंदावन का गर्ल्स स्कूल और सोलन, हिमाचल प्रदेश स्थित राज लक्ष्मी संविद गुरुकुलम, कम से कम 40 ऐसे स्कूलों की सूची में शामिल हो गए हैं जिन्होंने सैनिक स्कूल सोसाइटी (एसएसएस) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.
एसएसएस रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है जो पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत सैनिक स्कूलों का संचालन करता है.
केंद्र सरकार ने 2021 में देश में निजी संस्थाओं को सैनिक स्कूल चलाने की अनुमति दे दी. उस साल वार्षिक बजट में सरकार ने पूरे भारत में 100 नए सैनिक स्कूल स्थापित करने की योजना की घोषणा की.
जिस भी स्कूल के पास एसएसएस में निर्दिष्ट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे जमीन, भौतिक और आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय संसाधन, कर्मचारी इत्यादि हों, उन्हें नए सैनिक स्कूलों में से एक के रूप में अनुमोदित किया जा सकता है. अनुमोदन नीति के अनुसार, इंफ्रास्ट्रक्चर ही एकमात्र निर्दिष्ट मानदंड है जिसके आधार पर किसी स्कूल का अनुमोदन किया जा सकता है. इस कारण से संघ परिवार से जुड़े स्कूल और समान विचारधारा वाले संगठन आवेदन करने में सक्षम हो गए.
केंद्र सरकार की प्रेस विज्ञप्तियों और सूचना के अधिकार (आरटीआई) से एकत्रित जानकारी में एक चिंताजनक ट्रेंड सामने आई है. हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि अब तक हुए 40 सैनिक स्कूल समझौतों में से कम से कम 62% स्कूल ऐसे थे जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके सहयोगी संगठनों, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं, उसके राजनीतिक सहयोगियों और दोस्तों, हिंदुत्व संगठनों, व्यक्ति और अन्य हिंदू धार्मिक संगठनों से जुड़े थे.
हालांकि, सरकार को उम्मीद है कि इस नए पीपीपी मॉडल से सशस्त्र बलों में भर्ती होने के लिए संभावित उम्मीदवारों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन इस पहल से राजनीतिक खिलाड़ियों और दक्षिणपंथी संस्थानों के मिलिट्री इकोसिस्टम में दाखिल होने से चिंताएं भी बढ़ी हैं.
पहली बार सैनिक स्कूल शिक्षा प्रणाली के इतिहास में सरकार ने निजी संस्थानों को एसएसएस से संबद्ध होने, ‘आंशिक वित्तीय सहायता’ प्राप्त करने और अपनी शाखाएं चलाने की अनुमति दी. 12 अक्टूबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक कैबिनेट बैठक ने प्रस्ताव को मंजूरी दी जिसमें स्कूलों को ‘रक्षा मंत्रालय के मौजूदा सैनिक स्कूलों से पृथक और स्पष्ट रूप से अलग एक विशेष वर्टिकल के रूप में संचालित करने की बात की गई थी.’
नीति दस्तावेज़ के अनुसार, एसएसएस के माध्यम से सरकार ‘मेरिट और आर्थिक स्थिति (मेरिट-कम-मीन्स) के आधार पर कक्षा 6 से लेकर 12 तक हर कक्षा के 50% छात्रों (50 छात्रों की ऊपरी सीमा तक) के लिए वार्षिक शुल्क की 50% राशि (प्रति वर्ष 40000/- रुपए की ऊपरी सीमा तक) ‘वार्षिक शुल्क समर्थन’ के रूप में प्रदान करती है. जिसका मतलब है कि ऐसे स्कूलों के लिए जहां 12वीं तक कक्षाएं हैं, एसएसएस प्रति वर्ष अधिकतम 1.2 करोड़ रुपए का समर्थन प्रदान करता है. यह राशि छात्रों को आंशिक वित्तीय सहायता के रूप में दी जाती है.
स्कूलों को दूसरे इंसेंटिव भी दिए जाते हैं, जैसे 12वीं के छात्रों को शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर सालाना प्रशिक्षण अनुदान के रूप में 10 लाख रुपए की राशि दी जाती है.
सरकारी समर्थन और प्रोत्साहन के बावजूद द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पाया कि वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा के लिए वार्षिक शुल्क 13,800 रुपए प्रति वर्ष से लेकर 2,47,900 रुपए प्रति वर्ष तक है, जो दर्शाता है कि नए सैनिक स्कूलों के फी-स्ट्रक्चर्स में कितनी असमानता है.
नए सैनिक स्कूल कौन चलाएगा?
नई नीति आने तक देश में एसएसएस के अंतर्गत 33 सैनिक स्कूल मौजूद थे, जिसमें 16,000 कैडेट थे. एसएसएस रक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संगठन है. कई सरकारी रिपोर्टों में बताया गया है कि रक्षा संस्थानों में कैडेटों को भेजने में सैनिक स्कूलों का क्या महत्व है. रक्षा संबंधी स्थायी समितियों ने अक्सर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और भारतीय नौसेना अकादमी के लिए कैडेटों को तैयार करने में सैनिक स्कूलों की भूमिका पर जोर दिया है.
2013-14 की स्थायी समिति के अनुसार, सैनिक स्कूल के लगभग 20% छात्र हर साल एनडीए की सैन्य प्रवेश परीक्षा में सफल होते हैं. इस साल की शुरुआत में राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह वर्षों में सैनिक स्कूल के 11 प्रतिशत से अधिक कैडेट सशस्त्र बलों में शामिल हुए. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सशस्त्र बलों में 7,000 से अधिक ऑफिसर्स भेजने का श्रेय सैनिक स्कूलों को देते हैं.
रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज और रॉयल इंडियन मिलिट्री स्कूलों के साथ सैनिक स्कूल 25-30 प्रतिशत से अधिक कैडेटों को भारतीय सशस्त्र बलों की विभिन्न प्रशिक्षण अकादमियों में भेजते हैं.
एक सेवानिवृत्त मेजर जनरल, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने कहा, ‘पीपीपी मॉडल सैद्धांतिक रूप से अच्छा है. लेकिन जिस तरह के संगठनों को यह अनुबंध मिलेंगे, उसको लेकर मैं आशंकित हूं. यदि अधिकांश स्कूलों का स्वामित्व भाजपा से संबंधित व्यक्तियों/संगठनों के हाथों में जाता है, तो उनका पूर्वाग्रह वहां दी जाने वाली शिक्षा को भी प्रभावित करेगा. मौजूदा सैनिक स्कूलों की तरह यदि इन छात्रों ने भी सशस्त्र बलों में प्रवेश के लिए एनडीए और अन्य परीक्षाओं के लिए आवेदन किया, तो जिस तरह की शिक्षा उन्होंने प्राप्त की है वह निश्चित रूप से सशस्त्र बलों के दृष्टिकोण को प्रभावित करेगी.’
आरटीआई जवाबों के अनुसार, कम से कम 40 स्कूलों ने 05 मई, 2022 और 27 दिसंबर, 2023 के बीच सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ एमओए पर हस्ताक्षर किए हैं.
द कलेक्टिव द्वारा एक करीबी समीक्षा से पता चलता है कि इन 40 में से 11 स्कूल या तो सीधे तौर पर भाजपा राजनेताओं के स्वामित्व मे हैं या उनकी अध्यक्षता वाले ट्रस्टों द्वारा प्रबंधित हैं, या भाजपा के मित्रों और राजनीतिक सहयोगियों से संबंधित हैं. आठ स्कूलों का प्रबंधन सीधे तौर पर आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा किया जाता है. इसके अतिरिक्त, छह स्कूलों का हिंदुत्व संगठनों या कट्टर दक्षिणपंथी नेताओं और अन्य हिंदू धार्मिक संगठनों से घनिष्ठ संबंध है. कोई भी स्वीकृत स्कूल ईसाई या मुस्लिम संगठनों या भारत के किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक द्वारा नहीं चलाया जाता है.
पार्टी के सदस्यों और करीबियों को मिली स्वीकृति
गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक बड़ी संख्या में इन नए सैनिक स्कूलों में या तो भाजपा नेताओं की प्रत्यक्ष भागीदारी है या इन पर ऐसे ट्रस्टों का स्वामित्व है जिनके प्रमुख भाजपा नेता हैं.
अरुणाचल के सीमावर्ती शहर तवांग में स्थित तवांग पब्लिक स्कूल राज्य में स्वीकृत एकमात्र सैनिक स्कूल है. इस स्कूल के मालिक राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू हैं. स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत स्कूल प्रबंध समिति के पदेन सचिव हितेंद्र त्रिपाठी ने पुष्टि की कि खांडू स्कूल समिति के अध्यक्ष हैं. तवांग के भाजपा विधायक और खांडू के भाई त्सेरिंग ताशी स्कूल के प्रबंध निदेशक हैं.
जब हमने त्रिपाठी से पूछा कि क्या भाजपा से संबंधों के कारण सरकार ने उनके स्कूल का चयन किया है, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे इस दावे में कोई सच्चाई नहीं दिखती क्योंकि संबंधित अधिकारियों द्वारा तीन बार गहनता से निरीक्षण किया गया था.’ हालांकि, ताशी और खांडू ने द कलेक्टिव के सवालों का जवाब नहीं दिया है.
गुजरात के मेहसाणा में श्री मोतीभाई आर. चौधरी सागर सैनिक स्कूल दूधसागर डेयरी से संबद्ध है, जिसके अध्यक्ष मेहसाणा के पूर्व भाजपा महासचिव अशोककुमार भावसंगभाई चौधरी हैं. पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह ने इस स्कूल का ऑनलाइन शिलान्यास किया था. गुजरात में एक और स्कूल, बनासकांठा स्थित बनास सैनिक स्कूल, बनास डेयरी से संबंधित गल्बाभाई नानजीभाई पटेल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित किया जाता है. इस संगठन का नेतृत्व थराद से भाजपा विधायक और गुजरात विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष शंकर चौधरी कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के इटावा में स्थित शकुंतलम इंटरनेशनल स्कूल मुन्ना स्मृति संस्थान द्वारा चलाया जाता है. यह एक गैर-लाभकारी संस्था है जिसकी अध्यक्ष भाजपा विधायक सरिता भदौरिया हैं. स्कूल का कामकाज उनके बेटे आशीष भदौरिया देखते हैं.
आशीष ने कहा, ‘हमें सैनिक स्कूल चलाने का कोई अनुभव नहीं है. हम इसे आगामी सत्र से शुरू करेंगे.’ उन्होंने दावा किया कि ‘चयन प्रक्रिया बहुत विस्तृत थी’. जब उनसे पूछा गया कि क्या पार्टी से जुड़े होने के कारण उनके आवेदन को मंजूरी दी गई है, तो उन्होंने कहा, ‘आपको यह सरकार से पूछना चाहिए.’
हमने अपनी जांच में पाया कि इस नए पीपीपी मॉडल से लाभान्वित होने वाले लोगों में कई भाजपा नेता भी शामिल हैं. इस लंबी सूची में अलग-अलग राज्यों के भाजपा नेता हैं.
हरियाणा के रोहतक में स्थित श्री बाबा मस्तनाथ आवासीय पब्लिक स्कूल अब एक सैनिक स्कूल है. पूर्व भाजपा सांसद महंत चांदनाथ ने इसकी स्थापना की थी और वर्तमान में इसका संचालन उनके उत्तराधिकारी महंत बालकनाथ योगी द्वारा किया जाता है, जो राजस्थान के तिजारा से भाजपा विधायक हैं.
सैनिक स्कूलों का भगवाकरण
इस सूची में सिर्फ भाजपा नेता ही शामिल नहीं हैं. निजी सैनिक स्कूलों को चलाने का अधिकार आरएसएस संस्थानों और उससे जुड़े कई हिंदू दक्षिणपंथी समूहों को भी दिया गया है. विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान (विद्या भारती) आरएसएस की शैक्षिक शाखा है. भारत भर में पहले से मौजूद सात विद्या भारती स्कूलों को संबद्धताएं दी गईं – उनमें से तीन बिहार में स्थित हैं, और एक-एक मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल और दादरा और नगर हवेली में स्थित हैं.
आरएसएस की जनसेवा शाखा राष्ट्रीय सेवा भारती से संबद्ध भाऊसाहब भुस्कुटे स्मृति लोक न्यास भी स्कूलों को चलाने वाले समूह का हिस्सा है. मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में स्थित उनके सरस्वती ग्रामोदय हायर सेकेंडरी स्कूल को मंजूरी मिली है.
विद्या भारती पर अक्सर इतिहास के पुनर्लेखन, मतारोपण करने और मुस्लिम विरोधी पाठ्यक्रम का आरोप लगाया जाता है. वह अपने मिशन की परिभाषा के बारे में स्पष्ट हैं.
आरएसएस ने अपने अंतर्गत आने वाले स्कूलों की बढ़ती संख्या को संचालित करने के लिए 1978 में विद्या भारती की स्थापना की थी. वर्तमान में इसके अंतर्गत 12,065 औपचारिक स्कूल हैं, जिनमें 3,158,658 छात्र हैं, जिसके कारण यह संभवतः भारत में निजी स्कूलों के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक है. जैसा कि उनकी वेबसाइट पर उल्लेख किया गया है, वे ‘एक ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण करना चाहते हैं जो हिंदुत्व के लिए प्रतिबद्ध हो और देशभक्ति के उत्साह से ओत-प्रोत हो.’
नए नीतिगत बदलावों से यह चिंता बढ़ी है कि सैनिक स्कूलों को एक खास विचारधारा वाली निजी संस्थाएं ही चलाएंगी. पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन ने कहा, ‘स्पष्ट है कि इसके पीछे यही विचार है, जिसे (अंग्रेजी में) ‘कैच देम यंग’ कहते हैं, (यानि बचपन से ही बच्चों को एक विशेष विचारधारा की तरफ मोड़ा जाए). सशस्त्र बलों के लिए यह अच्छा नहीं है.’
मेनन ने इस बात पर सहमति जताई कि ऐसे संगठनों के साथ अनुबंध करने से सशस्त्र बलों के चरित्र और स्वभाव पर असर पड़ेगा. मेनन वर्तमान में तक्षशिला संस्थान में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं.
एक लेख में मेनन ने केंद्र और निजी पार्टियों के बीच पनप रही सांठगांठ के संभावित खतरे पर प्रकाश डाला, जिससे शिक्षा के ऐसे वैचारिक झुकाव को बढ़ावा मिल रहा है जो संविधान में निहित मूल्यों से बहुत दूर है.
आरएसएस, स्कूल टेक्स्ट्स एंड द मर्डर ऑफ महात्मा गांधी: द हिंदू कम्युनल प्रोजेक्ट पुस्तक के सह-लेखक आदित्य मुखर्जी को हैरानी हुई कि ऐसे स्कूलों को रक्षा मंत्रालय से प्रायोजन और आधिकारिक समर्थन प्राप्त हुआ है.
मुखर्जी ने द कलेक्टिव को बताया, ‘लोकतंत्र में विद्या भारती जैसे स्कूलों का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए क्योंकि वे अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं. लेकिन कम से कम अब तक वे केवल आरएसएस के स्कूल थे. उन्हें राष्ट्रीय संस्थानों, विशेषकर रक्षा संस्थानों से संबद्ध करके सरकार देश को अकथनीय खतरे में डाल रही है। इससे रक्षा बलों का बहुसंख्यकवादी, सांप्रदायिक दृष्टिकोण से संक्रमित होना तय है.’
विद्या भारती केंद्रीय कार्यकारी समिति के महासचिव अवनीश भटनागर ने द कलेक्टिव के साथ बातचीत में कहा, ‘हम इन आवेदनों को केंद्रीय रूप से प्रबंधित नहीं करते हैं. प्रत्येक स्कूल व्यक्तिगत स्तर पर आवेदन करता है. स्कूल समिति को पता होगा कि क्या उनका पक्ष लिया गया था. मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता.’
हालांकि, विद्या भारती केंद्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष डी. रामकृष्ण राव ने बताया कि वह इस तरह की और अधिक संबद्धताओं के लिए आवेदन करने की योजना बना रहे हैं, राव ने कहा, ‘अभी के लिए केवल कुछ स्कूलों ने प्रयास किया है, लेकिन हम और अधिक विद्या भारती स्कूलों को आवेदन करने और एसएसएस से संबद्ध करने की योजना बना रहे हैं.’
सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित नागपुर के भोंसाला मिलिट्री स्कूल को भी सैनिक स्कूल के रूप में चलाने की मंजूरी दी गई है. स्कूल की स्थापना 1937 में हिंदू दक्षिणपंथी विचारक बी.एस. मूंजे ने की थी. 2006 के नांदेड़ बम विस्फोट और 2008 के मालेगांव विस्फोटों की जांच के दौरान महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते ने भोंसाला मिलिट्री स्कूल की जांच की थी, जहां कथित तौर पर विस्फोट के आरोपियों को प्रशिक्षित किया गया था.
बीएमएस की तरह ही कई अन्य हिंदू धार्मिक ट्रस्टों को अपने मौजूदा ढांचे में सैनिक स्कूल चलाने की मंजूरी मिल गई है. इनमें से कुछ भावनाएं भड़काने वाले हिंदुत्ववादियों द्वारा स्थापित हैं. इसमें हिंदुत्ववादी नेता साध्वी ऋतंभरा के ऊपर उल्लिखित दो स्कूल भी शामिल हैं.
ऋतंभरा दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान अपने भड़काऊ भाषणों के लिए जानी जाती हैं. इतिहासकार तनिका सरकार ने ऋतंभरा और उनके भाषणों को ‘मुस्लिम विरोधी हिंसा भड़काने का सबसे शक्तिशाली साधन’ बताया है.
अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच करने वाले लिब्रहान आयोग ने ऋतंभरा सहित 68 लोगों पर देश को ‘सांप्रदायिक कलह के कगार पर ले जाने’ का आरोप लगाया था. संघ परिवार में उनका महत्वपूर्ण ओहदा है और वह कई भाजपा नेताओं की करीबी हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दिसंबर 2023 में उन्हें जन्मदिन की बधाई देने वृंदावन गए थे. जनवरी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लड़कियों के लिए संविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल का उद्घाटन किया था. इस समारोह में उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए ऋतंभरा की सराहना की थी. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सिंह ने कहा था, ‘दीदी मां (ऋतंभरा) ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने समाज को अपना परिवार माना है.’
हरियाणा के कुरूक्षेत्र में श्रीमती केसरी देवी लोहिया जयराम पब्लिक स्कूल, हिंदू संन्यासियों की सोसाइटी भारत साधु समाज (बीएसएस) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष द्वारा संचालित है. गुजरात के जूनागढ़ में श्री ब्रह्मानंद विद्या मंदिर को भी सैनिक स्कूल की मान्यता मिली है. यह भगवतीनंदजी एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है, जिसके प्रबंध ट्रस्टी मुक्तानंद ‘बापू’ 2019 से भारत साधु समाज (बीएसएस) के अध्यक्ष भी रहे हैं.
एर्नाकुलम, केरल का श्री शारदा विद्यालय हिंदू धार्मिक संगठन आदि शंकर ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है, जो श्रृंगेरी शारदा पीठम की एक इकाई है. श्रृंगेरी शारदा पीठम एक सनातन हिंदू मठ है और माना जाता है कि इसे 8वीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक और विद्वान आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था.
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गुरुवार को द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के बाद रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रतिक्रिया देने की खबर है. कलेक्टिव के अनुसार, मंत्रालय ने कोई सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया है, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर एक प्रेस नोट जारी किया गया है, जिसके आधार पर मीडिया में इस बारे में खबरें देखने को मिली हैं.
एनडीटीवी द्वारा भी ऐसी ही खबर प्रकाशित की गई है, जिसके मुताबिक रक्षा मंत्रालय ने कहा है, ‘प्रेस के कुछ हिस्सों में ऐसे लेख छपे हैं जिनमें कहा गया है कि नए सैनिक स्कूलों को उनके राजनीतिक या वैचारिक जुड़ाव के आधार पर संस्थानों को आवंटित किया जा रहा है. इस तरह के आरोप निराधार हैं.’
इसमें कहा गया है कि नए सैनिक स्कूलों को चलाने के लिए संस्थानों को अंतिम रूप देने के लिए एक कठोर चयन प्रक्रिया का पालन किया गया था. मंत्रालय ने कहा, ‘नए सैनिक स्कूलों की योजना अच्छी तरह से सोच-समझ कर की गई है. चयन प्रक्रिया कठोर है, उद्देश्यों का निरंतर पालन सुनिश्चित करने के लिए जांच और संतुलन बनाया गया है और योग्य छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए मजबूत प्रोत्साहन दिए गए हैं.’
इसमें कहा गया है, ‘आवेदक संस्थान की राजनीतिक या वैचारिक संबद्धता या अन्यथा चयन प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करती है.’
कलेक्टिव का कहना है कि रक्षा मंत्रालय का प्रेस नोट उनकी रिपोर्ट में उल्लिखित किसी भी तथ्य का खंडन नहीं करता और केवल वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन के बारे में उन्हीं बिंदुओं को दोहराता है, जो सैनिक स्कूल सोसाइटी की पॉलिसी में दर्ज हैं, जिनका ज़िक्र खुद रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने किया है.