‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के ख़िलाफ़ अधिकार’ जीवन व समानता के अधिकारों का हिस्सा: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक पक्षी के निवास स्थान को खोने से बचाए जाने की याचिका सुनते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होता है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार’ को अनुच्छेद 14 और 21 में शामिल करने के लिए इनके दायरे का विस्तार किया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा है, ‘संविधान के अनुच्छेद 48(ए) में प्रावधान है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार करने और देश के जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा. अनुच्छेद 51ए के खंड (जी) में कहा गया है कि जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा. हालांकि, ये संविधान के न्यायसंगत प्रावधान नहीं हैं, लेकिन ये संकेत हैं कि संविधान प्राकृतिक दुनिया के महत्व को पहचानता है.’

अदालत ने कहा, ‘पर्यावरण का महत्व, जैसा कि इन प्रावधानों द्वारा दर्शाया गया है, संविधान के अन्य भागों में एक अधिकार बन जाता है. अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है, जबकि अनुच्छेद 14 इंगित करता है कि सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों का समान संरक्षण प्राप्त होगा. ये अनुच्छेद स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं.’

पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल थे. फैसला 21 मार्च को सुनाया गया था, जबकि विस्तृत आदेश शनिवार(6 अप्रैल) शाम को अपलोड किया गया.

अदालत ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को पहचानने और इससे निपटने की कोशिश करने वाली सरकारी नीति और नियमों और विनियमों के बावजूद, भारत में जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़ी चिंताओं से संबंधित कोई एकल या व्यापक कानून नहीं है.’ इसने आगे कहा, ‘हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि भारत के लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार नहीं है.’

स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार पर अदालत ने कहा, ‘स्वच्छ पर्यावरण के बिना, जो स्थिर हो और जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से अप्रभावित हो, जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होता है. स्वास्थ्य का अधिकार (जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है) वायु प्रदूषण, वायरस जनित बीमारियों में बदलाव, बढ़ते तापमान, सूखा, फसल की विफलता के कारण खाद्य आपूर्ति में कमी, तूफान और बाढ़ जैसे कारकों के कारण प्रभावित होता है. जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने या इसके प्रभावों से निपटने में वंचित समुदायों की अक्षमता जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) के साथ-साथ समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करती है.’

पीठ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) – जो एक पक्षी है – को बिजली की ट्रांसमिशन लाइनों के कारण अपना निवास स्थान खोने से बचाने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.