नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव में उतरने वाले उम्मीदवारों के निजता के अधिकार को लेकर एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि मतदाताओं या उनकी सार्वजनिक भूमिका से अप्रासंगिक मामलों में चुनावी उम्मीदवार की निजता का अधिकार बरकरार रहेगा.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि उम्मीदवार को केवल अपने उन महत्वपूर्ण संपत्तियों का खुलासा करने की जरूरत है जिससे मतदाताओं को उनके वित्तीय हालात और जीवनशैली की समझ हो सके. उम्मीदवारों को उनके या उनके आश्रितों के स्वामित्व वाली प्रत्येक संपत्ति का खुलासा करना जरूरी नहीं है.
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, ‘हम इस व्यापक प्रस्ताव को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं कि किसी उम्मीदवार को मतदाताओं की जांच के लिए अपनी जान जोखिम में डालने की आवश्यकता है. उनकी निजता का अधिकार अभी भी उन मामलों में बरकरार रहेगा, जो मतदाता के लिए चिंता का विषय नहीं हैं या सार्वजनिक पद के लिए उनकी उम्मीदवारी के लिए अप्रासंगिक हैं. इस संबंध में किसी उम्मीदवार के स्वामित्व वाली प्रत्येक संपत्ति का खुलासा न करना कोई अपराध नहीं है.
इस फैसले ने उम्मीदवारों के निजता के अधिकार बनाम जनता के सूचना के अधिकार पर एक महत्वपूर्ण रुख को साफ किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव सुधारों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
हालांकि, अदालत ने ये माना कि मतदाताओं को एक उम्मीदवार के बारे में सभी विवरण जानने का पूर्ण अधिकार है, लेकिन ये भी स्पष्ट किया कि यह आवश्यक नहीं है कि एक उम्मीदवार चल संपत्ति के प्रत्येक आइटम, जैसे कि कपड़े, जूते, क्रॉकरी, स्टेशनरी और फ़र्नीचर इत्यादि की घोषणा करे जो उसके या उसके आश्रित परिवार के सदस्यों के पास है, जब तक कि वे इतने मूल्यवान न हों कि उससे एक बड़ी संपत्ति बन जाएं या उनकी जीवनशैली के संदर्भ में उनकी उम्मीदवारी को प्रतिबिंबित करें और उनका खुलासा करने की आवश्यकता न हो.
उम्मीदवारों की निजता और मतदाताओं के जानने के अधिकार के बीच संतुलन पर जोर देते हुए अदालत ने साफ किया कि मतदाताओं को उनकी जीवनशैली के बारे में जानकारी देने के लिए उम्मीदवार को अपने स्वामित्व वाली उच्च-मूल्य वाली संपत्तियों का खुलासा करना होगा. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस संबंध में कोई ‘कठोर’ नियम नहीं है. प्रत्येक मामले का निर्णय उसके अपने तथ्यों के आधार पर किया जाएगा.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण के जरिये अरुणाचल प्रदेश में तेजू विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक कारिखो क्रि के 2019 चुनाव को बरकरार रखा है. पिछले साल गौहाटी हाईकोर्ट ने नामांकन पत्र में कुछ संपत्तियों का खुलासा न करने पर क्रि के चुनाव को अमान्य कर दिया था. ज्ञात हो कि पूर्वोत्तर राज्य में इस महीने विधानसभा चुनाव होने हैं.
गौरतलब है कि मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संविधान की एक बुनियादी विशेषता है. 2002 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और 2003 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के मामलों में शीर्ष अदालत ने मतदाताओं के सूचित विकल्प चुनने के अधिकार को बढ़ावा देने के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि, शैक्षिक योग्यता और वित्तीय संपत्तियों का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में चुनाव आयोग को मतपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर ‘इनमें से कोई नहीं’ (नोटा) का विकल्प रखने का निर्देश दिया था. चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने वाले फरवरी 2024 के फैसले ने मतदाताओं के जानने के अधिकार को भी सशक्त किया है.
मंगलवार को अपने सर्वोच्च अदालत ने फैसले में अदालत ने गौहाटी उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया, जिसमें क्रि द्वारा अपनी पत्नी के पास एक स्कूटी और बेटे के स्वामित्व वाले मारुति ओमनी वैन का खुलासा नहीं करने के लिए उनके चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था.
उच्च न्यायालय का फैसला कांग्रेस उम्मीदवार नुनी तायांग द्वारा क्रि के खिलाफ दायर एक चुनाव याचिका पर आया था, जिसमें नामांकन पत्रों में गैर-प्रकटीकरण और गलत जानकारी के आधार पर बाद की चुनावी जीत को चुनौती दी गई थी. याचिका में बताया गया था कि तीन वाहन अभी भी क्रि के परिवार के सदस्यों के नाम पर पंजीकृत थे.
क्रि के चुनाव की पुष्टि करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि चूंकि इन वाहनों को या तो उपहार में दिया गया था या नामांकन से पहले बेच दिया गया था, इसलिए उनका खुलासा न करना उल्लंघन नहीं है.
अदालत ने कहा, ‘इस तरह के गैर-प्रकटीकरण को किसी भी हद तक मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करने के उनके प्रयास के रूप में नहीं माना जा सकता है, जिससे 1951 के अधिनियम की धारा 123 (2) के तहत कार्रवाई की जा सके.
पीठ ने महंगी घड़ियों के उदाहरण का देते हुए कहा कि यदि किसी उम्मीदवार या उसके परिवार के पास कई बड़ी कीमत वाली घड़ियां हैं तो उनका खुलासा करना होगा, क्योंकि वे उच्च मूल्य की संपत्ति हैं और उनके स्वामित्व वाली सामान्य घड़ियों के बजाय उनकी भव्य जीवन शैली को दर्शाती हैं. इसके उलट उम्मीदवारों को रोज़मर्रा की चीज़ों का खुलासा करने की जरूरत नहीं है.