भ्रामक विज्ञापनों पर कोर्ट के फिर रामदेव और बालकृष्ण की माफ़ी स्वीकार न करने समेत अन्य ख़बरें

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(फोटो: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने से जुड़े अवमानना मामले में पतंजलि आयुर्वेद के सह-संस्थापक रामदेव और एमडी बालकृष्ण की दूसरी बिना शर्त माफी भी खारिज कर दी. लाइव लॉ के अनुसार, अदालत ने कहा कि वे दोनों सिर्फ इसलिए माफी मांग रहे हैं क्योंकि वे पकड़े गए हैं. सुनवाई के दौरान जस्टिस हिमा कोहली ने कहा, ‘पूरे इतिहास को ध्यान में रखते हुए ताज़ा हलफनामे को स्वीकार करने पर हमारी आपत्ति है. हमने यह भी बताया है कि कारण बताओ नोटिस के बाद भी प्रस्तावित अवमाननाकर्ताओं ने कोर्ट में पेश होने से बचने का प्रयास किया. यह बेहद अस्वीकार्य है.’ उन्होंने आगे जोड़ा कि पतंजलि का कहना है कि उनके विज्ञापन लोगों को आयुर्वेदिक दवाओं से जोड़े रखने के लिए थे, जैसे कि वे दुनिया में आयुर्वेदिक दवाएं लाने वाले पहले व्यक्ति हों! कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण पर कोर्ट से पहले अपना हलफनामा मीडिया को भेजने का भी आरोप लगाया. इसने कहा, ‘जब तक मामला अदालत में नहीं पहुंचा, उन्होंने हमें हलफनामा भेजना उचित नहीं समझा. उन्होंने इसे पहले मीडिया को भेजा, कल शाम 7.30 बजे तक यह हमारे लिए अपलोड नहीं किया गया था. साफ़ है कि उनका यक़ीन पब्लिसिटी में है.’ अदालत पतंजलि द्वारा जारी एलोपैथी को निशाना बनाने वाले विज्ञापनों के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही है. इससे पहले इसी अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण की पहली माफी को स्वीकार करने से इनकार करते हुए इसे ‘महज दिखावा’ करार दिया था.

दिल्ली सरकार के मंत्री राज कुमार आनंद ने अपने पद और आम आदमी पार्टी (आप) दोनों से इस्तीफा दे दिया है. एनडीटीवी के अनुसार, मंगलवार को इस्तीफ़ा देते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी एक भ्रष्टाचार विरोधी समूह से ‘भ्रष्टाचार में शामिल’ पार्टी बन गई है. आनंद की घोषणा के तुरंत बाद एक अन्य मंत्री और पार्टी नेता सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया कि आनंद को भाजपा द्वारा दबाव में पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. पटेल नगर से विधायक आनंद दिल्ली सरकार के पहले मंत्री हैं, जिन्होंने सीएम अरविंद केजरीवाल की आबकारी नीति मामले में गिरफ्तारी के बाद अपने पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. गौरतलब है कि नवंबर 2023 में सीमा शुल्क से जुड़े एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी आनंद के घर की तलाशी के लिए पहुंची थी. राजस्व खुफिया निदेशालय ने एक स्थानीय अदालत में एक शिकायत में 7 करोड़ रुपये से अधिक की सीमा शुल्क चोरी के लिए आयात में झूठी घोषणाओं का आरोप लगाया था, जिसके बाद ईडी ने आनंद के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी.

कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह संदेशखली मामले की जांच अपने हाथ में ले. रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के संदेशखाली नेता शेख शाहजहां के खिलाफ यौन उत्पीड़न, बलात्कार और जमीन हड़पने के आरोपों की जांच सीबीआई करेगी. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब इसी अदालत ने ईडी के अधिकारियों पर शाहजहां के समर्थकों द्वारा किए गए हमले की जांच भी सीबीआई को ट्रांसफर की है. अदालत ने आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच के लिए सीबीआई को एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है. इसने यह भी कहा कि सीबीआई एक समर्पित पोर्टल या ईमेल आईडी बनाएगी जहां शिकायतें दर्ज की जा सकें. इसमें कहा गया है कि उत्तर 24 परगना के डीएम इलाके में इस बात का पर्याप्त प्रचार करेंगे और क्षेत्रों में व्यापक प्रसार वाले अख़बारों में एक सार्वजनिक सूचना भी जारी करेंगे. यह भी कहा गया कि प्रकाशन स्थानीय भाषा में किया जाए. इसके साथ ही सीबीआई को इलाके में संवेदनशील स्थानों पर स्ट्रीट लाइट और एलईडी लाइट के साथ सीसीटीवी कैमरे भी लगाने को कहा गया है और एजेंसी को गवाह संरक्षण योजना के तहत आवश्यक दिशानिर्देश भी जारी करने होंगे.

चुनावी बॉन्ड को लेकर जारी डेटा में सामने आया है कि चंदा देने से प्रतिबंधित नई कंपनियों ने चुनावी बॉन्ड खरीदे थे. द हिंदू की रिपोर्ट बताती है कि  कम से कम 20 ऐसी नई कंपनियों ने बॉन्ड के माध्यम से लगभग 103 करोड़ रुपये का चंदा दिया है, जिनका अस्तित्व तीन साल से भी कम समय का रहा है. क़ानूनन इस तरह की कंपनियां राजनीतिक चंदा नहीं दे सकतीं. जिस समय इन कंपनियों ने अपना पहला चुनावी बॉन्ड खरीदा, इनमें से पांच कंपनियां एक साल से भी कम समय से अस्तित्व में थीं. वहीं, इनमें से सात एक साल पुरानी थीं और आठ अन्य ने केवल दो साल पूरे किए थे. गौर करने वाली बात है कि इन में से कई कंपनियां 2019 में तब शुरू हुईं, जब भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही थी या महामारी के बीच में थी. इन कंपनियों ने अपने बनने के कुछ ही महीनों बाद करोड़ों रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे. साल 1985 से तीन साल से कम पुरानी कंपनियों के राजनीतिक चंदा देने पर प्रतिबंध है. यह नियम इस बात को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था कि शेल कंपनियां केवल राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए स्थापित न की जाएं और ये एक तरह से मनी लॉन्ड्रिंग का जरिया न बन जाएं.

महाराष्ट्र में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का नया नियम कहता है कि मराठी में साइनबोर्ड न लगाने वाले व्यापारियों को दोगुना प्रॉपर्टी टैक्स भरना होगा. एनडीटीवी के मुताबिक, शिवसेना (शिंदे गुट) द्वारा संभाले जा रहे नगरीय निकाय ने यह भी कहा कि ग्लोशाइन बोर्ड पर मराठी या देवनागरी न लिखे होने पर ऐसे बोर्ड को मिला लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा और उनकी जमा राशि भी जब्त कर ली जाएगी. इसके बाद नया लाइसेंस पाने के लिए 25,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक का खर्च आएगा. बताया गया है कि नया नियम 1 मई से लागू होगा. मार्च के अंत तक बीएमसी ने शहर की 87,047 दुकानों और प्रतिष्ठानों का निरीक्षण किया गथा, जिनमें से 84,007 (96.5%) पर मराठी साइनबोर्ड पाए गए थे. बीएमसी ने 3,040 दुकानों और प्रतिष्ठानों को कानूनी नोटिस जारी किए हैं. अब कुछ दुकानदारों का यह भी कहना है कि हालिया आदेश लोकसभा चुनाव को देखते हुए जारी किया गया है.