लोकसभा चुनाव: भाजपा ने बलिया में वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ का टिकट काटकर नीरज शेखर को क्यों उतारा?

नीरज शेखर की राजनीति समाजवादी पार्टी से शुरू हुई थी, वो दो बार सपा की टिकट पर सांसद भी रहे हैं, लेकिन 2019 में भाजपा उन्हें अपने पाले में ले आई और इस बार उन्हें टिकट देकर पार्टी ने परिवारवाद को खुद ही आत्मसात कर लिया.

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नीरज शेखर. (फोटो साभार: फेसबुक/@MPNeerajShekhar)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अक्सर ‘परिवारवाद’ का आरोप अपने विपक्षी दलों पर लगाती नजर आती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कहते हैं कि परिवारवाद ने हमारे देश को बर्बाद कर दिया है. हालांकि जब बात चुनाव में टिकट देने की आती है, तो भाजपा खुद ही परिवारवाद को आगे बढ़ाती दिखाई देती है.

बलिया लोकसभा सीट से पार्टी ने वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ का टिकट काटकर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को मैदान में उतारा है. नीरज शेखर की राजनीति समाजवादी पार्टी (सपा) से शुरू हुई थी, वो दो बार सपा की टिकट पर सांसद भी रहे हैं, लेकिन 2019 में भाजपा उन्हें अपने पाले में ले आई और इस बार उन्हें टिकट देकर पार्टी ने परिवारवाद को खुद ही आत्मसात कर लिया.

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में बिहार बॉर्डर पर स्थित बलिया लोकसभा सीट इस समय राष्ट्रीय सुर्खियों में है. इसकी एक बड़ी वजह है नीरज शेखर का इस बार भाजपा की ओर से चुनावी मैदान में उतरना और अपनी ही पुरानी पार्टी सपा को चुनौती देना. इस सीट पर इस बार असल मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही माना जा रहा है. हालांकि, अभी आधिकारिक तौर पर सपा ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन यहां से सनातन पांडेय के चुनाव लड़ने की खबरें ज़ोरों पर हैं.

राजनीतिक शुरुआत

नीरज शेखर के राजनीतिक सफर की शुरुआत सपा से हुई थी. साल 2007 में पूर्व पीएम चंद्रशेखर के निधन के बाद खाली हुई बलिया सीट के उपचुनाव में नीरज शेखर समाजवादी पार्टी की टिकट पर लड़े और जीत कर पहली बार सांसद बने थे. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में नीरज शेखर फिर से सपा की ओर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे.

सपा ने साल 2014 के चुनाव में नीरज शेखर पर फिर से भरोसा किया, लेकिन इस बार उन्हें भाजपा के प्रत्याशी भरत सिंह से हार का सामना करना पड़ा. हालांकि हार के बाद भी नीरज शेखर संसद तो पहुंचे लेकिन लोकसभा नहीं राज्यसभा सांसद बनकर.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने नीरज शेखर को प्रत्याशी नहीं बनाया तो उन्होंने नाराज होकर राज्यसभा से इस्तीफा दिया और भाजपा का दामन थाम लिया. हालांकि भाजपा ने भी उन्हें राज्यसभा सांसद ही बनाया. वो अभी भी राज्यसभा सांसद ही हैं. लेकिन अब 2024 में भाजपा ने उन पर दांव लगाया है और बलिया लोकसभा से प्रत्याशी घोषित किया है.

अपने क्षेत्र में कार्यकर्ताओं के साथ नीरज शेखर. (फोटो साभार: फेसबुक/@MPNeerajShekhar)

चंद्रशेखर के नाम का फायदा?

बलिया के लोगों के बारे में कहा जाता है कि उन्हें हमेशा इस बात पर नाज़ रहा है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री उनके इलाके से आते थे. हालांकि लोगों को इस बात का मलाल भी रहा है कि इतने बड़े राष्ट्रीय नेता होने के बावजूद उन्होंने इस इलाके के विकास के लिए कुछ ख़ास काम नहीं किया. बावजूद इसके लोग पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के नाम पर सहानुभूति रखते हैं, जिसका फायदा भाजपा लेने की कोशिश में नज़र आ रही है.

वैसे बलिया के स्थानीय लोगों ने इस सहानुभूति वाले फैक्टर को 2014 के आम चुनावों में नकार दिया था, लेकिन इस बार वीरेंद्र सिंह का विवादों से नाता और उनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के चलते भाजपा इस कदम को उठाने के लिए मजबूर भी थी.

स्थानीय पत्रकार नरेंद्र नाथ के मुताबिक, वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ पिछले 2019 आम चुनाव में लगभग हारते हुए आखिर में जीते थे. उनके और सपा के प्रत्याशी सनातन पांडेय के बीच वोटों में महज़ 15 हज़ार का फासला था. इसे लेकर काफी विवाद भी देखने को मिला था. इसके अलावा वीरेंद्र सिंह पर उन्हीं की पार्टी के सुरेंद्र सिंह ने विधायक रहते हुए जमीन को हड़पने की कोशिश का आरोप भी लगाया था, जो आलाकमान को रास नहीं आया था. बाद में इस मामले में कुछ खास सामने नहीं आया, लेकिन पार्टी की छवि पर असर जरूर पड़ा.

बलिया के कई स्थानीय निवासियों ने द वायर को बताया कि वीरेंद्र सिंह को लेकर इस क्षेत्र में कोई खास हवा नहीं है. उन्होंने कहा कि बलिया संसदीय क्षेत्र में विकास के कुछ काम जरूर करवाए हैं, लेकिन लोगों के बीच उनकी कोई लोकप्रियता नज़र नहीं आती और शायद यही कारण है कि नीरज शेखर को भाजपा ने यहां से मैदान में उतारा है.

कुछ लोगों का ये भी कहना है कि भाजपा को आने वाले दिनों में वीरेंद्र सिंह की बगावत भी झेलनी पड़ सकती है, क्योंकि उनके समर्थकों की पार्टी में अच्छी संख्या है.

गौरतलब है कि बलिया लोकसभा सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और उनके परिवार का ही दबदबा देखने को मिलता है. चंद्रशेखर खुद आठ बार इस सीट से सांसद चुने गए थे. जबकि उनके बेटे नीरज शेखर दो बार सांसद रह चुके हैं. इस सीट पर भाजपा को पहली सफलता मोदी लहर के बीच साल 2014 में मिली थी. उसके बाद से लगातार भाजपा इस सीट पर कायम है.

बलिया सीट का इतिहास

बलिया की सीट पर पहली बार साल 1952 में लोकसभा चुनाव में वोट डाले गए थे. तब सोशलिस्ट पार्टी के राम नगीना सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी. इसके बाद साल 1957 आम चुनाव में कांग्रेस के राधा मोहन सिंह और साल 1962 में कांग्रेस के ही मुरली मनोहर ने संसद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

इसके बाद साल 1967 और साल 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस के चंद्रिका प्रसाद ने जीत हासिल की. साल 1977 में चंद्रशेखर पहली बार यहां से जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े और साल 2004 आम चुनाव तक इस क्षेत्र के सांसद रहे. इस बीच सिर्फ एक बार साल 1984 आम चुनाव में कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी ने जीत हासिल की थी.

हालांकि, चंद्रशेखर साल 2004 चुनाव का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और बीच में ही उनका निधन हो गया. उसके बाद हुए साल 2008 उपचुनाव में उनके बेटे नीरज समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए. इसके बाद साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भी नीरज शेखर सांसद बने.

साल 2014 में भाजपा को पहली बार बलिया लोकसभा सीट पर जीत का मौका मिला. भाजपा के उम्मीदवार भरत सिंह सांसद चुने गए.

साल 2019 आम चुनाव में भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त और सपा के सनातन पांडे के बीच कांटे की टक्कर थी. वीरेंद्र सिंह मस्त और सनातन पांडे के बीच महज़ 15 हजार 519 वोटों का फासला था. वीरेंद्र सिंह को 4 लाख 69 हजार 114 वोट मिले थे, जबकि सनातन पांडे को 4 लाख 53 हजार 595 वोट हासिल हुए थे. जबकि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के उम्मीदवार विनोद को 35 हजार 900 वोट मिले थे.

जाति का प्रभाव

बलिया लोकसभा सीट का जातीय समीकरण भी दिलचस्प है. यह क्षेत्र ब्राह्मण, राजपूत, यादव बहुल है. इस सीट पर सबसे ज्यादा तीन लाख ब्राह्मण वोटरों की संख्या है. जबकि राजपूत, दलित और यादव मतदाताओं की संख्या ढाई-ढाई लाख से ज्यादा है. इस क्षेत्र में मुस्लिम वोटर भी एक लाख के करीब हैं. इस लोकसभा सीट पर भूमिहार मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है.

इस लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती है, गाजीपुर और बलिया जिले में है. इस लोकसभा सीट के तहत गाजीपुर की दो विधानसभाएं- मोहम्मदाबाद और जहूराबाद के साथ बलिया की तीन विधानसभाएं- फेफना, बलिया नगर और बैरिया आती हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव को देखें तो, भाजपा को यहां सिर्फ एक सीट बलिया नगर में जीत मिली थी. यहां दयाशंकर सिंह ने सपा के नारद राय को 23,239 मतों के अंतर से हराया था. इस सीट के अलावा भाजपा बाकी चार सीटों पर पस्त नज़र आई.

फेफना से संग्राम सिंह यादव की ओबीसी वोट बैंक पर अच्छी पकड़ है उन्हें शानदार जीत मिली थी. बैरिया से जयप्रकाश अंचल भी यादव समुदाय से आते हैं, उन्होंने योगी कैबिनेट में मंत्री रहे आनंद स्वरूप शुक्ला को हराया था. वहीं मोहम्मदाबाद से मुन्नू अंसारी सपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे.

ज्ञात हो कि मुन्नू अंसारी गैंगस्टर से नेता बने और पांच बार विधायक रहे दिवंगत मुख्तार अंसारी के भतीज़े हैं और मुस्लिम वोटों पर उनकी जोरदार पकड़ है. इस बार मुख्तार अंसारी की मौत भी यहां एक अहम फैक्टर साबित हो सकती है.

आखिरी, जहूराबाद सीट एसबीएसपी से ओम प्रकाश राजभर ने जीत हासिल की थी, जो पिछड़ी जाति से आते हैं. कुल मिलाकर देखें, तो भाजपा के लिए बलिया की सीट पर जीत आसान नहीं होने जा रही.

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