सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर में ईसाई प्रार्थना सभा को अनुमति देते हुए प्रशासन के आदेश पर रोक लगाई

इंदौर प्रशासन ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए बुधवार को होने वाली ईसाई समुदाय की प्रार्थना सभा की अनुमति रद्द कर दी थी क्योंकि इंदौर लोकसभा क्षेत्र के एक सहायक चुनाव अधिकारी ने कहा था कि हिंदू लोग सभा का विरोध कर रहे हैं. शीर्ष अदालत ने अनुमति रद्द करने को अनुचित बताया है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो साभार: सुभाशीष पाणिग्रही/Wikimedia Commons. CC by SA 4.0)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इंदौर प्रशासन द्वारा कानून-व्यवस्था की स्थिति के आधार पर वहां निर्धारित ईसाई समुदाय की प्रार्थना सभा की अनुमति रद्द करने के फैसले को ‘अनुचित’ करार देते हुए रोक लगा दी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, ‘प्रथमदृष्टया, हम पाते हैं कि प्रार्थना सभा आयोजित करने के लिए याचिकाकर्ता के पक्ष में दी गई अनुमति को रद्द करना उचित नहीं है.’

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा, ‘22 मार्च, 2024 के आदेश के तहत जो अनुमति दी गई थी और 05 अप्रैल, 2024 को संशोधित की गई थी, उसमें विभिन्न शर्तों को निर्दिष्ट किया गया था ताकि सभी हितधारकों के हितों की रक्षा की जा सके और यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि कोई कानून और व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न न हो. हमारे विचार में इन परिस्थितियों में अनुमति रद्द करना उचित नहीं था.’

पीठ ने एक व्यक्ति सुरेश कार्लटन्स की याचिका पर मध्य प्रदेश सरकार और इंदौर प्रशासन को नोटिस भी जारी किया, जिन्होंने प्रार्थना सभा आयोजित करने की मंजूरी को रद्द करने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी.

पीठ ने कहा, ‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि याचिकाकर्ता आज यानी 10 अप्रैल, 2024 को शाम 5:00 बजे प्रार्थना सभा आयोजित करने का हकदार होगा, हालांकि, यह निर्णय याचिकाकर्ता द्वारा निर्देशों/शर्तों के सख्ती से पालन पर निर्भर करेगा.’

पीठ ने अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह आदेश को ‘तुरंत रजिस्ट्रार (न्यायालय), मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर की खंडपीठ को सूचित करें, जो इसे कलेक्टर, इंदौर को सूचित करेगा.’

इससे पहले इंदौर प्रशासन ने कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए बुधवार को होने वाली ईसाई समुदाय की प्रार्थना सभा की अनुमति रद्द कर दी थी. चेन्नई स्थित ईसाई उपदेशक पॉल दिनाकरन बैठक में मुख्य वक्ता के रूप में लगभग 8,000 लोगों को संबोधित करने वाले थे.

मध्य प्रदेश में इंदौर लोकसभा क्षेत्र के एक सहायक चुनाव अधिकारी ने रविवार को जारी एक आदेश में प्रार्थना सभा की अनुमति रद्द कर दी, जिसके लिए 5 अप्रैल को मंजूरी दी गई थी. आदेश में कहा गया है कि हिंदू लोग सभा का विरोध कर रहे हैं. संगठनों और अन्य सामाजिक संगठनों ने इस संबंध में चुनाव अधिकारी के पास शिकायत दर्ज कराई है.

शिकायत के बाद तुकोगंज थाना प्रभारी ने कानून व्यवस्था की स्थिति पर रिपोर्ट पेश की, जिसके आधार पर पहले दी गई अनुमति रद्द कर दी गई. विभिन्न हिंदू संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा 5 अप्रैल को सहायक चुनाव अधिकारी को दी गई शिकायत में आरोप लगाया गया था कि हिंदू समुदाय के लोगों को गुमराह करने और उन्हें धर्मांतरण के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे से प्रार्थना सभा का आयोजन किया जा रहा है.

शिकायत में कहा गया है, ‘इस बात की प्रबल संभावना है कि कार्यक्रम से शांति भंग हो सकती है. इसलिए इसकी अनुमति रद्द की जानी चाहिए.’

प्रार्थना सभा की आयोजन समिति के अध्यक्ष कार्लटन ने हिंदू संगठनों के आरोपों को खारिज कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘हमारी प्रार्थना सभा में ईसाई समुदाय के केवल उन 8,000 लोगों को आमंत्रित किया गया था जो मध्य प्रदेश में रहते हैं. बैठक में हम देश की खुशी, शांति और सद्भाव के लिए सामूहिक रूप से प्रार्थना करने जा रहे थे.’

उन्होंने कहा था कि प्रार्थना सभा ‘नेशनल प्रेयर एंड मिनिस्ट्री अलायंस’ के बैनर तले होनी थी, जो ईसाई उपदेशक डॉ. पॉल दिनाकरन के नेतृत्व वाला संगठन है, जो मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम में भाग लेने वाले थे.

कार्लटन ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ में याचिका दायर कर अंतिम समय में प्रार्थना सभा की अनुमति रद्द करने के प्रशासन के आदेश को चुनौती दी थी. दोनों पक्षों को सुनने के बाद सोमवार को हाईकोर्ट के जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की बेंच ने याचिका खारिज कर दी थी.