पॉलिसी के नियमों व शर्तों से जुड़ी सभी जानकारियां ग्राहकों को दें बीमा कंपनियां: सुप्रीम कोर्ट

जीवन बीमा से जुड़े एक मामले का निपटारा करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जिस तरह बीमाधारक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने बारे में सभी तथ्यों का खुलासा करे, उसी तरह बीमाकर्ता को भी ग्राहक को पॉलिसी के नियमों और शर्तों के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए, साथ प्रॉस्पेक्टस में दी गई जानकारी या उसके एजेंटों की ओर से कही गई बातों का सख़्ती से पालन करना चाहिए.

(फोटो साभार: विकिपीडिया/Subhashish Panigrahi)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि जिस तरह बीमाधारक का का दायित्व है कि वो सभी प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करे, उसी तरह बीमा कंपनी का भी वैधानिक दायित्व है कि वह किसी भी विवरण को छिपाए बिना बीमाधारक को पॉलिसी के नियमों और शर्तों के बारे में पूरी जानकारी दे.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘जिस तरह बीमाधारक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने बारे में सभी तथ्यों का खुलासा करे, उसी तरह बीमाकर्ता को भी ग्राहक को पॉलिसी के नियमों और शर्तों के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए. उन्हें प्रस्ताव फॉर्म या प्रॉस्पेक्टस में दी गई जानकारी या उसके एजेंटों की ओर से कही गई बातों का सख्ती से पालन करना चाहिए.’

सुप्रीम कोर्ट ने फ्यूचर जनरल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को शिकायतकर्ता महाकाली सुजाता के जीवन बीमा दावे का भुगतान करने का निर्देश दिया. सुजाता मूल रूप से बीमाधारक व्यक्ति एस. वेंकटेश्वरलु की एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी हैं, जिनका निधन फरवरी 2011 में हुआ था.

हालांकि फैसले में यह स्पष्ट नहीं है कि कंपनी ने वास्तव में क्या छिपाया था, लेकिन फर्म ने यह तर्क दिया था कि वेंकटेश्वरलु ने यह सूचित नहीं किया था कि उन्होंने विभिन्न कंपनियों से अलग-अलग पॉलिसी ले रखी थी.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा पारित दिनांक 22.07.2019 के आदेश को रद्द कर दिया गया है. इसके अलावा प्रतिवादी कंपनी को अपीलकर्ता को दी गई दोनों पॉलिसियों के बीमा के दावे की राशि 7,50,000 रुपये और 9,60,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है. उन्हें शिकायत दर्ज करने की तारीख से 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ (वास्तविक प्राप्ति की तिथि तक) भुगतान किया जाए.’

उल्लेखनीय है कि इससे पहले एनसीडीआरसी ने शिकायतकर्ता के दावे को खारिज कर दिया था और कंपनी के रुख को स्वीकार कर लिया था कि पॉलिसी के तहत दावे का भुगतान नहीं किया जा सकता. कंपनी ने कहा था कि मृतक ने विभिन्न फर्मों से 15 जीवन बीमा पॉलिसी ले रखी थी और भौतिक तथ्यों को छिपाते हुए बीमा कंपनी फ्यूचर जनरल इंडिया को इसकी जानकारी भी नहीं दी गई थी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि बीमा कंपनी ने जिला फोरम के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेजी प्रमाण पेश नहीं किया जिससे यह साबित हो सके कि बीमा करवाने वाले व्यक्ति ने विभिन्न कंपनियों से कई बीमा पॉलिसी ले रखी थीं और इस तथ्य को छिपाया था.

राज्य आयोग के समक्ष, कंपनी ने वेंकटेश्वरलु द्वारा ली गई 15 अलग-अलग पॉलिसियों की एक लिस्ट दी थी, जिसकी राशि 71,27,702 रुपये थी. हालांकि इसके साथ कोई अन्य दस्तावेजी साक्ष्य नहीं दिए गए थे.

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