उत्तराखंड: ग्रामीणों ने किया लोकसभा चुनाव का बहिष्कार, बोले- जब तक सड़कें नहीं, वोट नहीं

उत्तराखंड के चमोली ज़िले के कई गांवों के लोगों ने क्षेत्र में सड़कों की कमी के कारण चिकित्सा सुविधाएं मिलने में देरी को लेकर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए आगामी लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया है. उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है.

(प्रतीकात्मक फोटो: सुमित महार)

नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली जिले के कई गांवों के लोगों ने क्षेत्र में सड़कों की कमी के कारण चिकित्सा सुविधाएं मिलने में देरी को लेकर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए आगामी लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गनाई गांव के प्रदीप फर्शवाण ने कहा कि संसदीय चुनावों के बहिष्कार का यह फैसला गांव वालों ने पिछले साल दिसंबर में किया था.

फर्शवाण ने कहा, ‘पिछले दो वर्षों में दो महिलाओं ने अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही बच्चों को जन्म दिया. हमने दिसंबर में लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला किया. जब तक हमारे गांव तक सड़क नहीं आती, हम वोट नहीं देंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने 11 दिसंबर को समस्या के बारे में मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था. फरवरी में महिलाओं के साथ गांव के प्रतिनिधियों ने इसके बारे में जिला मजिस्ट्रेट को एक पत्र लिखा था. कुछ अधिकारी 30 मार्च को क्षेत्र में आए और कहा कि वे 10 दिनों में एक रिपोर्ट सौंपेंगे, लेकिन यह अभी तक जमा नहीं की गई है.’

प्रदीप ने कहा, ‘2017 में एक रिपोर्ट आई थी कि क्षेत्र में पांच किलोमीटर की सड़क बनाई जा सकती है. ग्रामीणों ने कहा है कि जब तक काम शुरू नहीं हो जाता, वे चुनाव में भाग नहीं लेंगे. जब लोग बीमार पड़ते हैं, तो उन्हें एम्बुलेंस के लिए कंधों पर उठाकर पातालगंगा बाजार ले जाना पड़ता है.’

गनाई में 550 से अधिक मतदाता हैं.

एक अन्य ग्रामीण दीपक फर्शवाण ने कहा कि चुनाव अधिकारी वोटिंग मशीन लेकर गांव आए थे ताकि बुजुर्ग लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें. 85 वर्षीय एक महिला ने यह कहते हुए वोट डालने से इनकार कर दिया कि उसने अपने जीवन में यहां कभी पक्की सड़क नहीं देखी है, लेकिन वह नहीं चाहती कि आने वाली पीढ़ियां उसकी दुर्दशा का अनुभव करें.

दीपक ने कहा कि ग्रामीणों को गांव में खाना और जरूरी सामान आदि लाने के लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने के लिए भी मजबूर होना पड़ता है.

तपोवन क्षेत्र के भंगुल गारह गांव के जितेंद्र सिंह कन्याल ने कहा कि 2021 की बाढ़ में एक पुल ख़त्म हो गया था और अब तपोवन बाजार तक पहुंचने के लिए लगभग तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. कन्याल ने कहा, ‘इलाके में सड़क बनाने के लिए 2011 और 2018 में अनुमति दी गई थी, लेकिन तब से कुछ नहीं हुआ. पिछले सप्ताह तहसीलदार दो बार हमसे मिलने आए, लेकिन बैठक सफल नहीं रही. हम सब अब भी चुनाव बहिष्कार के अपने फैसले पर कायम है.’

कपिरी क्षेत्र के कनखल मल्ला गांव के निवासियों ने भी चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया था, लेकिन स्थानीय विधायक के आश्वासन के बाद इसे वापस ले लिया गया.

कनखल मल्ला निवासी राजेंद्र खत्यारी कहते हैं, ‘हमारे गांव तक कोई सड़क संपर्क नहीं है. हमें सार्वजनिक परिवहन के लिए चार से पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. हमने मार्च में चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया था. हालांकि, हमारे विधायक अनिल नौटियाल के आश्वासन के बाद हमने मतदान करने का फैसला किया है.’

एक अन्य ग्रामीण खिलदेव रावत ने कहा कि बुजुर्गों के लिए स्थिति बहुत खराब है क्योंकि मेडिकल इमरजेंसी के मामले में उन्हें कंधों पर ढोकर अस्पताल ले जाना पड़ता है.

रावत ने कहा, ‘विधायक ने हमें आश्वासन दिया है कि चुनाव के बाद सड़क बनाने का काम शुरू हो जाएगा. हम आशावान हैं. मतदान के दिन मेरी बेटी की शादी है. हम पहले अपना वोट डालेंगे और फिर मेहमानों का स्वागत करेंगे.’

उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है और वोटों की गिनती 4 जून को होगी.

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