छिंदवाड़ा की कांग्रेस बगावत: कमल नाथ का बुझा हुआ तीर, जिसने अपना शिकार कहीं और खोज लिया

ज़मीनी ख़बर: पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलों ने मध्य प्रदेश कांग्रेस के एकमात्र गढ़ को कमज़ोर कर दिया.

कमल नाथ. (फोटो: फेसबुक/दीपक गोस्वामी)

छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश): मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में छिंदवाड़ा प्रमुख है. यहां पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होना है, लेकिन इस सीट की चर्चा चुनाव की घोषणा से बहुत पहले शुरू हो गई थी. चर्चा होना लाजिमी है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य की 29 में से 28 सीट पर प्रचंड जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एकमात्र छिंदवाड़ा में ही मुंह की खानी पड़ी थी.

छिंदवाड़ा दिग्गज कांग्रेसी नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का वह अभेद किला है, जिसे लाख प्रयासों के बावजूद भाजपा फतह नहीं कर पाई है. 1980 के लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा कमल नाथ को छिंदवाड़ा की जनता से रूबरू कराए जाने के बाद पिछले 44 सालों में वह 10 बार यहां से लोकसभा सांसद रहे हैं, एक बार (1996 में) उनकी पत्नी अलका नाथ और एक बार बेटे (2019 में) नकुल नाथ को यहां की जनता ने संसद भेजा है.

केवल एक मर्तबा यानी 1997 में कमल नाथ को हार का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने पत्नी अलका नाथ से इस्तीफ़ा दिलवाया और हवाला कांड से बाहर निकलने के बाद फिर से स्वयं सांसद बनने के लिए छिंदवाड़ा को उपचुनाव में धकेल दिया.

इस अपवाद को छोड़ दें तो स्थिति यह है कि बीते दो विधानसभा चुनावों में छिंदवाड़ा ज़िले की सभी 7 विधानसभा सीटें कांग्रेस की झोली में गई थीं. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य के हर कोने से रिकॉर्ड बहुमत हासिल किया था, छिंदवाड़ा में उसका सूपड़ा साफ हो गया था. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए 2023 विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा होते ही दिसंबर माह से ही भाजपा नेता लोकसभा चुनाव के लिए ‘मिशन 29’ का नारा देकर एक्शन मोड में आ गए थे.

पार्टी किसी भी तरह कांग्रेस से यह एकमात्र सीट छीन लेना चाहती है. इसी कड़ी में सबसे उल्लेखनीय घटनाक्रम बीते फरवरी माह में देखा गया, जब कमल नाथ के भाजपा में शामिल होने की चर्चाओं को बल मिला.

दल बदल की होड़!

छिंदवाड़ा के स्थानीय सूत्र बताते हैं कि कमल नाथ के कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं केवल कयास नहीं थीं. वह ऐसा करने का मन बना चुके थे, लेकिन दिल्ली में भाजपा नेतृत्व के साथ किसी मोर्चे पर उनकी बात अटक गई. बहरहाल, कमल नाथ तो भाजपा में नहीं गए लेकिन छिंदवाड़ा के कांग्रेसियों का भाजपा में जाने का तांता लग गया.

फरवरी से लेकर अप्रैल में चुनाव करीब आते तक क्षेत्र के कई बड़े नेता कमल नाथ और कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. दलबदल की पहली बड़ी ख़बर 14 फरवरी को मिली जब क्षेत्र के 50 सरपंच समेत कुछ कांग्रेस पदाधिकारियों के भाजपा में शामिल होने की बात सामने आई. कमल नाथ द्वारा भाजपा में जाने की संभावना पर विराम लगाने के बाद 21 फरवरी को छिंदवाड़ा के 1500 कांग्रेसियों के भाजपा में शामिल होने का दावा प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया. इन कांग्रेसियों में प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव अज्जू ठाकुर, पांढुर्ना के नगर पालिका अध्यक्ष संदीप घाटगे और 16 सरपंच प्रमुख रहे. कुछ दिनों बाद छिंदवाड़ा नगर निगम के 7 कांग्रेसी पार्षदों ने भाजपा की सदस्यता ले ली. हफ्ते भर के भीतर चौरई विधानसभा के पूर्व कांग्रेसी विधायक चौधरी गंभीर सिंह भी भाजपा में चले गए.

इस बीच, कमल नाथ को बड़ा झटका 17 मार्च को लगा जब उनके विश्वासपात्र माने जाने वाले प्रदेश महामंत्री, मीडिया उपाध्यक्ष और प्रदेश प्रवक्ता रहे सैयद जफर ने भाजपा का दामन थाम लिया. कुछ दिनों के भीतर ही अमरवाड़ा से तीन बार के कांग्रेसी विधायक कमलेश शाह और उनकी पत्नी पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष माधवी शाह, छिंदवाड़ा के कांग्रेस महापौर विक्रम अहाके, कमलनाथ के दाहिने हाथ माने जाने वाले दीपक सक्सेना के बेटे अजय सक्सेना भी भाजपा में शामिल हो गए. ताबूत में अंतिम कील ठोकने का काम दीपक सक्सेना ने किया, जो कमल नाथ के चार दशक पुराने साथी थे.

इनके अलावा, छिंदवाड़ा के और भी कांग्रेसी नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी भाजपा में गए हैं, और दलबदल का यह सिलसिला यह रिपोर्ट लिखे जाने तक जारी है.

द वायर से बातचीत में स्थानीय लोग कहते हैं कि जितने भी लोग पार्टी छोड़कर गए हैं, लगभग सभी को फर्श से उठाकर अर्श तक ले जाने वाले कमल नाथ ही थे. वह जिस पर हाथ रख दें, जनता उसे अपना नेता मान लेती है.

लोग कहते हैं, ‘यहां के लोग कमल नाथ के प्रति इतने ऋणी हैं कि पंचायत चुनाव हो, निगम चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, संबंधित उम्मीदवार को नहीं बल्कि कमल नाथ को वोट देते हैं.’

स्वयं भाजपा के एक पदाधिकारी द वायर से बातचीत में महापौर विक्रम अहाके के बारे में कहते हैं, ‘अहाके के पास साइकिल भी नहीं थी, कमल नाथ ने हाथ रखा तो महापौर बन गए.’ स्थानीय पत्रकारों, कांग्रेसियों और आम जनता ने भी इसकी पुष्टि की.

छिंदवाड़ा के शिकारपुर स्थित कमलनाथ का बंगला. (फोटो: दीपक गोस्वामी/द वायर)

क्या है पार्टी बदलने की वजह

आखिर क्या कारण रहे जिनके चलते कमल नाथ के सहारे राजनीतिक सफलता चखने वाले आज उनके खिलाफ भाजपा के पाले में खड़े हैं?

अहाके ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘चूंकि मैं महापौर हूं तो सरकार की सहायता के बिना छिंदवाड़ा के विकास कार्यों को करने में समस्या खड़ी हो रही थी, इसलिए हमने सरकार के साथ जाने का निर्णय लिया.’

दीपक सक्सेना और उनके बेटे अजय सक्सेना ने नकुल नाथ द्वारा उपेक्षा किए जाने को अपने फैसले के पीछे का कारण बताया. बता दें कि दीपक सक्सेना वही हैं, जिन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार में कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर उनके लिए अपनी छिंदवाड़ा विधानसभा सीट खाली कर दी थी.

कमलेश शाह ने प्रधानमंत्री मोदी और सैयद जाफर ने भाजपा की नीतियों से प्रभावित होने को अपने पलायन का कारण बताया था.

क्या कमल नाथ द्वारा बेटे को आगे बढ़ाना स्थानीय नेतृत्व को रास नहीं आया?

द वायर से बातचीत में जिला कांग्रेस महासचिव आशीष त्रिपाठी बताते हैं, ‘कमलेश शाह की पत्नी माधवी शाह जब नगर पंचायत अध्यक्ष थीं, तब एक घोटाला हुआ था, उसमें शाह की पत्नी को हाईकोर्ट से जमानत लेनी पड़ी थी. उसका दबाव उन पर रहा.’

त्रिपाठी दावा करते हैं कि इसी तरह अन्य नेताओं को भी भाजपा ने दबाव बनाकर कांग्रेस से तोड़ा है.

वहीं, स्थानीय पत्रकार नितिन रघुवंशी एक रोचक बात बताते हैं कि दीपक सक्सेना के एक बेटे (अजय) भाजपा में शामिल हुए हैं, जबकि दूसरे बेटे (जय) अभी भी नकुल नाथ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार करते देखे जा सकते हैं.

गौरतलब है कि 21 मार्च को कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए लिखे पत्र में दीपक सक्सेना ने व्यक्तिगत परेशानियों का हवाला दिया था. पत्रकारों और आम जनता के बीच ऐसी भी चर्चा है कि दीपक सक्सेना के मामले में विवाद उनके बेटे अजय की बिस्किट फैक्ट्री को लेकर था, जो सरकार के निशाने पर थी.

बहरहाल, स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अवनीत गंगवाल कहते हैं, दीपक सक्सेना के दलबदल का कारण आज भी रहस्य बना हुआ है. क्या उनकी नाराजगी इस बात से है कि उन्होंने अपनी विधायक की सीट कमल नाथ को दी थी, और फिर जब डेढ़ साल कमलनाथ सत्ता में रहे तो उन्हें कहीं स्थापित नहीं किया?

वहीं, कमलेश शाह को लेकर यह विचार भी व्याप्त है कि वह मंत्री पद के लालच में भाजपा में गए हैं.

स्थानीय पत्रकार देहरिया कहते हैं, ‘कमल नाथ ने पुत्र मोह में बेटे नकुल को सांसद तो बना दिया, लेकिन वह कमल नाथ वाली व्यवस्था को आगे नहीं बढ़ा सके, जिससे पार्टी नेता नाराज होने लगे. नकुल का स्टाफ स्थानीय नेताओं की शिकायतों को कमल नाथ तक पहुंचा नहीं पा रहा था.’

गंगवाल भी कहते हैं, ‘कमल नाथ द्वारा नकुल नाथ को आगे बढ़ाया जाना कुछ को चुभ रहा था. वरिष्ठ नेता नकुल के लिए वो जुड़ाव महसूस नहीं कर पाते हैं, जो कमल नाथ के लिए करते थे.’

यानी आज छिंदवाड़ा में मुकाबला कांटे का है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि मैदान में नकुल हैं, अगर कमल नाथ होते तो लोगों को अधिक सोचना नहीं पड़ता.

असंतोष, लोभ और भय के बीच स्वयं कमल नाथ बने कांग्रेसियों के दल बदल की प्रेरणा

ऐसा कहा जा रहा है कि कमल नाथ के प्रभुत्व की वजह से छिंदवाड़ा के कांग्रेसियों ने फरवरी से पहले कभी दलबदल का सोचा तक नहीं था, लेकिन फिर जो हुआ उसके लिए स्वयं कमल नाथ जिम्मेदार हैं.

देहरिया कहते हैं, ‘फरवरी में कमल नाथ ने बयान दिया था कि ‘हर व्यक्ति स्वतंत्र है, कहीं भी जा सकता है, कोई किसी को रोक नहीं सकता’, फिर अचानक वह दिल्ली पहुंच गए और उनके भाजपा में जाने की ख़बरें आने लगीं जिन्हें उन्होंने ख़ारिज भी नहीं किया. इनके विश्वासपात्रों तक ने इनके भाजपा में जाने की लगभग पुष्टि कर दी थी… इसने दलबदल का एक माहौल जरूर बना दिया और कांग्रेसियों को लगा कि जब वह जा सकते हैं तो हम क्यों नहीं?’

एक भाजपा पदाधिकारी बताते हैं, ‘कमल नाथ ने उस दौरान छिंदवाड़ा में सैकड़ों की संख्या में अपने सभी समर्थकों को बुलाकर भाजपा में आने के लिए रायशुमारी की थी. जो लोग पार्टी बदलने के पक्ष में नहीं थे, उन्हें इसके लिए मनाया गया. इस तरह सारी तैयारी करके वह दिल्ली पहुंचे थे, लेकिन सौदेबाजी अटक गई.’

वह आगे कहते हैं, ‘इस तरह कमल नाथ की विश्वसनीयता अपने ही समर्थकों के बीच सवालों के घेरे में आ गई और दूसरा उनके समर्थकों में यह विचार बुलंद हो गया कि आज नहीं तो कल कमल नाथ भाजपा में जाएंगे ही, इसलिए अगर हमें भाजपा से ऑफर मिल रहा है तो हम क्यों रुकें.’

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