ईवीएम पर उठते सवाल के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर की वापसी की मांग ख़ारिज की

शीर्ष अदालत में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों ने कहा कि वे अभी तक नहीं भूले हैं कि जब मतपत्रों के माध्यम से वोट डाले जाते थे, तो क्या होता था.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 अप्रैल) को बैलट पेपर के दौर में वापसी के विचार पर असहमति जताते हुए उन याचिकाकर्ताओं से सवाल किया, जिन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के माध्यम से मतदान पर सवाल उठाया था.

मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों ने कहा कि वे अभी तक नहीं भूले हैं कि जब मतपत्रों के माध्यम से वोट डाले जाते थे, तो क्या होता था.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, शीर्ष अदालत में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है.

जस्टिस खन्ना ने एडीआर का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण से कहा, ‘ये सौभाग्य से अब हम साठ के दशक में हैं. हमने देखा है कि पहले क्या होता था. क्या आप यह भूल गए? यदि आप यह भूल गए हैं, तो मुझे खेद है, मैं नहीं भूला हूं.’

अदालत ने प्रशांत भूषण से पूछा कि अब आप क्या चाहते हैं? प्रशांत भूषण ने कहा कि वो दो बातों को लेकर अदालत पहुंचे हैं. पहली, चुनाव के लिए बैलेट पेपर पर वापस जाएं और दूसरा ईवीएम वोटों का 100 फीसदी वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पेपर पर्चियों से मिलान हो. फिलहाल प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अव्यवस्थित ढंग से चयनित केवल पांच ईवीएम के वोटों का मिलान वीवीपैट पर्चियों से किया जाता है.

प्रशांत भूषण ने जस्टिस खन्ना की बात पर आश्चर्य जताते बुए कहा कि क्या आप  बूथ कैप्चरिंग का जिक्र कर रहे थे. इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘बूथ कैप्चरिंग के बारे में भूल जाइए. क्या होता है जब मतपत्र होते हैं… वैसे भी. आइए बहस में न पड़ें.’

मालूम हो कि प्रशांत भूषण ने मतपत्रों की बात तब उठाई, जब पीठ के अन्य जस्टिस दीपांकर दत्ता ने उनसे पूछा कि उनके मन में ईवीएम के अलावा क्या विकल्प है.

भूषण ने अपनी दलील में कहा, ‘पहले बैलेट पेपर हुआ करते थे, मतपत्र हो सकते हैं. अधिकांश यूरोपीय देश मतपत्रों पर वापस चले गए हैं. उन्होंने जर्मन संवैधानिक अदालत के फैसले का भी जिक्र किया कि ईवीएम पर भरोसा क्यों नहीं किया जा सकता है और इसलिए कागजी मतपत्र का सहारा लिया जाना चाहिए.’

इस सुझाव को खारिज करते हुए जस्टिस दत्ता ने कहा कि भारत में चुनाव कराना एक बहुत बड़ा काम है. किसी भी यूरोपीय देश के लिए इसका संचालन करना संभव नहीं है. जर्मनी और अन्य देशों से इसकी तुलना न करें.

जस्टिस दत्ता ने कहा, ‘मेरे गृह राज्य पश्चिम बंगाल की जनसंख्या जर्मनी से भी अधिक है. हमें किसी पर भरोसा जताना होगा. इस तरह से व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की कोशिश मत करिए. इस तरह के उदाहरण मत दीजिए… यह एक बहुत बड़ा काम है… और यूरोपीय उदाहरण यहां काम नहीं आते.

पीठ ने ईवीएम की कार्यप्रणाली और उन्हें संग्रहीत करने और वोटों की गिनती की प्रक्रिया पर कई जांच से जुड़े प्रश्न भी पूछे. अदालत ने एडीआर की इस बात पर भी सवाल उठाया कि ‘अधिकांश मतदाता ईवीएम पर भरोसा नहीं करते? आपको यह डेटा कैसे मिला?’

इस पर भूषण ने जवाब दिया कि यह सीएसडीएस-लोकनीति का सर्वेक्षण था. इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा कि हम निजी सर्वेक्षणों पर विश्वास नहीं करते.

जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘इस प्रकार का तर्क स्वीकार्य नहीं हो सकता है क्योंकि इसके संबंध में कोई डेटा नहीं है. एक निजी सर्वेक्षण ऐसा नहीं कर पाएगा… यह संभव है कि कोई और इसके विपरीत कोई सर्वेक्षण कराएगा. उस सब में न जाएं.’

एक याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ईवीएम का निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा किया जाता है और वहां का तकनीकी व्यक्ति जवाबदेह नहीं है.

इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘आप निजी क्षेत्र द्वारा मशीनों का निर्माण करने से खुश होंगे?… यदि निजी क्षेत्र मैन्युफैक्चरिंग कर रहा होता, तो आप खुश होते.’ तब आप यहां आते और कहते कि इसका निर्माण निजी क्षेत्र द्वारा नहीं किया जाना चाहिए.’

पीठ ने कहा, ‘जहां तक ​​हमें इसकी जांच करनी है कि ईवीएम ठीक से काम कर रही हैं या नहीं, हमें आंकड़ों के आधार पर जाना होगा. इस संबंध में कि किसी विशेष साल-दर-साल डाले गए वोटों की कुल संख्या क्या है, और क्या उन्होंने बाद में गिने गए वोटों की कुल संख्या के साथ इसका मिलान किया है, कितने मामलों में विसंगतियां थीं. आखिर कितने मामलों में अभ्यर्थियों ने पर्चियों की गिनती का अनुरोध किया, उसमें कितनी विसंगतियां पाई गईं. इससे हमें सही तस्वीर मिल जाएगी कि ईवीएम में हेरफेर किया जा रहा है या हेरफेर की संभावना है या नहीं. वह डेटा वे उपलब्ध कराएंगे. हम उनसे वह डेटा मांगेंगे.’

भूषण ने कहा, ”हम यह नहीं कह रहे हैं कि ईवीएम में हेरफेर किया जा रहा है या किया गया है. हम जो कह रहे हैं वह यह है कि ईवीएम में हेरफेर किया जा सकता है क्योंकि ईवीएम और वीवीपैट दोनों में एक प्रोग्रामेबल चिप होती है.

उन्होंने कहा कि अन्य सुझाव ये थे कि मतदाताओं को वीवीपैट पर्ची भौतिक रूप से लेने और इसे मतपेटी में जमा करने की अनुमति दी जाए ताकि वे सुनिश्चित हो सकें कि उनका वोट सही ढंग से दर्ज किया गया है और ईवीएम पर अपारदर्शी दर्पण वाले कांच को पारदर्शी कांच से बदल दिया जाए, ताकि कोई भी देख सके कि अंदर क्या हो रहा है.

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, भारत के चुनाव आयोग ने कहा था कि सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती करने में 12 दिन लगेंगे.

भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ने कहा था कि वह निर्माता के बौद्धिक संपदा अधिकारों का हवाला देते हुए ईवीएम चिप्स के स्रोत कोड को साझा नहीं कर सकता है और इससे मशीनों के बारे में अधिक संदेह पैदा होता है. उन्होंने कहा कि ईवीएम को दो सार्वजनिक उपक्रमों- इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा इकट्ठा किया जाता है, जिनके निदेशक के रूप में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई पदाधिकारी हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान ईवीएम पर डाले गए वोटों की संख्या और कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में गिने गए वोटों की संख्या में बेमेल पर ईसीआई डेटा के बारे में एक समाचार रिपोर्ट का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि चुनाव के पहले चरण में जिन 373 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ, वहां ‘गंभीर विसंगतियां थीं…’

लेकिन पीठ ने कहा कि कभी-कभी कुछ विसंगति हो सकती है क्योंकि बटन तुरंत नहीं दबाया गया होगा लेकिन ऐसे मामलों में उम्मीदवारों के पास डेटा होगा और वे वीवीपैट पर्चियों की गिनती के लिए कहेंगे.

जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘अगर ऐसी कोई विसंगति है… प्रत्येक उम्मीदवार को वह डेटा दिया जाएगा… उम्मीदवारों ने इसे तुरंत चुनौती दी होगी.’

शंकरनारायणन ने कहा कि डेटा बाद में आया, लेकिन पीठ सहमत नहीं हुई.

सरकारी आश्वासनों पर समिति की जुलाई 2023 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए शंकरनारायणन ने यह भी कहा कि जुलाई 2023 में ‘एक संसदीय पैनल ने कहा था कि केंद्र सरकार ने संसद से वादा किया था कि वह 2019 के चुनावों के दौरान ईवीएम और वीवीपीएटी रैली के बीच संभावित विसंगतियों के बारे में चुनाव आयोग से जानकारी प्राप्त करेगी, लेकिन पिछले चार वर्षों से उसने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है.’

पीठ ने कहा कि वह इस बारे में चुनाव आयोग से पूछेगी.

शंकरनारायणन ने इस नियम के बारे में भी आशंका जताई कि वीवीपैट पर्ची मांगने वाले मतदाता को एक घोषणा पत्र देना होगा कि यदि उसका दावा झूठा पाया जाता है तो उसे परिणाम के बारे में पता होगा, जिसमें 6 महीने तक की कैद और 1,000 रुपये तक का जुर्माना शामिल है. उन्होंने कहा कि ये इस प्रक्रिया में बचाव का कार्य करता है.

जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘इसके पीछे एक कारण है. इस चरण में मतदाता को कागज़ की पर्ची नहीं दी जाती है. यदि वह कागज की पर्ची मांगता है तो वह इसका हकदार होगा. लेकिन फिर चुनावी प्रक्रिया रोकनी होगी. किसी को मशीन खोलकर निकालनी होगी, उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों को बुलाना होगा.’

जस्टिस खन्ना ने आगे कहा कि इसका व्यावहारिक पक्ष देखें. मान लीजिए कि 10 प्रतिशत लोग पर्चियां मांगते हैं, तो पूरी चुनावी प्रक्रिया रुक सकती है.

इस मामले में अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी.