नई दिल्ली: पारदर्शिता कार्यकर्ता सेवानिवृत्त कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा दायर सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जवाब में सामने आए आंकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा चुनावी बॉन्ड की छपाई और प्रबंधन पर करदाताओं के पैसे से भुगतान करने के लिए लगभग 14 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, कुल 30 चरणों में हुई चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर कमीशन के रूप में 12,04,59,043 रुपये खर्च हुए, जबकि बॉन्ड की छपाई की लागत 1,93,73,604 रुपये है. कमीशन राशि का मतलब भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा चुनावी बॉन्ड बेचने और प्रबंधित करने के लिए शुल्क लिए जाने से है. आर्थिक मामलों के विभाग के आरटीआई जवाब में कहा गया है कि ‘मास्क-ए प्रिंट सुरक्षा को सत्यापित करने के लिए उपकरण’ पर अतिरिक्त 6,720 रुपये का खर्च आया है.
नासिक स्थित इंडिया सिक्योरिटी प्रेस, जिसे इन बॉन्ड की छपाई का काम सौंपा गया था, ने 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये मूल्यवर्ग के छापे गए बॉन्ड की संख्याओं का भी खुलासा किया है.
1,000 रुपये मूल्यवर्ग के 2,65,000; 10,000 रुपये वाले 2,65,000; 1 लाख रुपये वाले 93,000; 10 लाख रुपये वाले 26,000; और 1 करोड़ रुपये वाले 33,000 बॉन्ड छापे गए..
दिलचस्प बात यह है कि इन बॉन्ड की छपाई और प्रबंधन की लागत दाताओं या प्राप्तकर्ताओं द्वारा वहन नहीं की जाती है, बल्कि सरकार और करदाताओं द्वारा वहन की जाती है.
बत्रा ने कहा, ‘चुनावी बॉन्ड योजना की विडंबना यह है कि बॉन्ड खरीदने वाले चंदादाताओं को एसबीआई को कोई सेवा शुल्क (कमीशन) और यहां तक कि चुनावी बॉन्ड की छपाई लागत का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होती है, सरकार या करदाता इस लागत को वहन करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, करदाताओं के धन से राजनीतिक दलों के कर-मुक्त लाभों के लिए चुनावी बॉन्ड योजना के प्रबंधन और संचालन के लिए सरकारी मशीनरी और श्रम बल के उपयोग पर भारी राशि खर्च की जा रही थी.’
बत्रा द्वारा इससे पहले दायर की गई एक अन्य आरटीआई से यह भी पता चला था कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अकेले 2024 में 1 करोड़ रुपये के 8,350 चुनावी बॉन्ड छापे थे, जबकि सुप्रीम कोर्ट नवंबर 2023 में योजना की संवैधानिकता पर अपना फैसला पहले ही सुरक्षित रख चुका था.
द वायर ने बताया था कि एक चुनावी बॉन्ड को छापने की लागत 25 रुपये आती है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा 6% अतिरिक्त जीएसटी लगाया जाता है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था. इसे असंवैधानिक और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए अदालत ने एसबीआई को बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था.