सरकार में आने पर चुनावी बॉन्ड योजना को फिर वापस लाएंगे: वित्त मंत्री सीतारमण

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक साक्षात्कार में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज की गई चुनावी बॉन्ड योजना चुनावी चंदे में पारदर्शिता लेकर आई थी, इसमें कुछ सुधार की ज़रूरत है, सभी हितधारकों से परामर्श के बाद इसे किसी और रूप में वापस लाया जा सकता है.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार (19 अप्रैल) को कहा कि यदि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 2024 के आम चुनावों में फिर से सत्ता में वापसी करती है, तो सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद चुनावी बॉन्ड योजना को किसी न किसी रूप में वापस लाया जाएगा.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, निर्मला सीतारमण ने इस विवादास्पद राजनीतिक फंडिंग योजना में अपना विश्वास जताया, जिसे फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. हालांकि, उन्होंने यह स्वीकार किया कि इस योजना में कुछ बदलाव जरूरी थे.

खबर के मुताबिक, एक साक्षात्कार में सीतारमण ने कहा कि अर्थव्यवस्था की स्थिति 2024 के चुनावों के लिए बहुत उपयुक्त है, उन्होंने महंगाई को नियंत्रण में रखने का श्रेय लिया,  भ्रष्टाचार और उत्तर-दक्षिण विभाजन को बढ़ावा देने के लिए विपक्ष पर हमला बोला और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए एक सुझाव भी पेश किया. उन्होंने इस बारे में भी बात की कि कैसे इन चुनावों में 370 सीट जीतना भाजपा का वास्तविक लक्ष्य है और वह क्यों मानती हैं कि द्रविड़ राजनीतिक दलों ने दक्षिण भारत के लोगों को गुमराह किया है.

उन्होंने कहा, ‘हमें अभी भी हितधारकों के साथ बहुत विचार-विमर्श करना है और देखना है कि ऐसा ढांचा बनाने या लाने के लिए हमें क्या करना है जो सभी के लिए स्वीकार्य होगा, मुख्य रूप से ऐसा ढांचा जो पारदर्शिता के स्तर को बनाए रखना वाला और इसमें काले धन के प्रवेश की संभावना को पूरी तरह से खत्म करने वाला हो. उन्होंने साथ ही कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की समीक्षा की मांग की जाए या नहीं.

उन्होंने आगे कहा, ‘जिस वर्तमान योजना को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, वह पारदर्शिता लेकर आई थी. पहले सबको खुली छूट थी.’

मालूम हो कि 2018 में लाई गई इस योजना के तहत चुनावी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी शाखा से खरीदे जा सकते थे. इस योजना के तहत कॉरपोरेट और यहां तक ​​कि विदेशी संस्थाओं द्वारा भारतीय सहायक कंपनियों के माध्यम से दिए गए चंदे पर 100 प्रतिशत कर छूट भी मिलती थी, जबकि चंदादाताओं की पहचान बैंक और बॉन्ड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों द्वारा गोपनीय रखी जाती थी.

15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस योजना को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए खारिज कर दिया था, क्योंकि इसमें राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे को पूरी तरह से गुप्त रखा गया था.

सीतारमण ने स्वीकार किया कि इस योजना के कुछ पहलुओं में सुधार की आवश्यकता है – उदाहरण के लिए, भारतीय चुनाव आयोग और भारतीय स्टेट बैंक द्वारा सार्वजनिक किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों ने राजनीतक दलों को चंदा दिया – लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ‘अच्छे परामर्श’ के बाद इस योजना को किसी और रूप में वापस लाया जा सकता है.

अपने साक्षात्कार में  उन्होंने यह आरोप लगाने के लिए विपक्ष को आड़े हाथों लिया कि भाजपा ने उन नेताओं पर आपराधिक आरोपों को नजरअंदाज कर दिया है, जो अन्य दलों से सत्तारूढ़ दल में शामिल हो रहे हैं.

निर्मला सीतारमण ने कहा, ‘भाजपा यहां बैठकर यह नहीं कह सकती कि आप आज मेरी पार्टी में आएं और कल मामला बंद हो जाएगा. मामले को अदालतों से गुजरना होता है और अदालत को निर्णय लेना होता है; अदालतें यह नहीं कहेंगी,   ‘ओह, वह आपकी पार्टी में आ गए हैं, मामला बंद करो.’  इस तरह नहीं होता है. इसलिए क्या वे यह वॉशिंग मशीन शब्द अदालतों के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं?’