नई दिल्ली: केरल की 20 लोकसभा सीटों पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है. राज्य में वाम दलों के गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार है, जिसका नेतृत्व भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [माकपा] के पिनाराई विजयन कर रहे हैं. मुख्यमंत्री के तौर पर 2016 से भले ही वह राज्य में सरकार चला रहे हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में एलडीएफ को मुंह की खानी पड़ी थी. तब कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने चुनावी नतीजों में बाजी मारी थी.
2019 में 19 सीट यूडीएफ के खाते में गई थीं. इसके घटक दल कांग्रेस को 15, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) को 2, केरल कांग्रेस और रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी को 1-1 सीट मिली थीं. एलडीएफ के लिए सत्तारूढ़ सीपीआईएम के खाते में केवल एक सीट आई. बाद में केरल कांग्रेस का विभाजन हुआ और केरल कांग्रेस (एम) [केसीईएम] बना, जो एलडीएफ में शामिल हो गया.
इस बार के चुनाव से पहले केंद्रीय स्तर पर बने विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लुसिव अलायंस (इंडिया) के तहत चर्चाएं थीं कि यूडीएफ और एलडीएफ के घटक दल चुनाव में साथ मिलकर केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ख़िलाफ़ ताल ठोकेंगे, लेकिन बीते फरवरी माह में वाम दलों ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर एकजुट विपक्ष की अवधारणा खारिज कर दी.
इस तरह केरल में इस बार भी मुख्य मुकाबला तो कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और वाम दलों के एलडीएफ के बीच ही है, लेकिन भाजपा भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए पूरा जोर लगा रही है. भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने भी राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. कुछ सीटें ऐसी हैं जहां उसके उम्मीदवारोंं की भी चर्चा हो रही है, जैसे कि तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस के दिग्गज नेता और निवर्तमान सांसद शशि थरूर के सामने पार्टी ने राज्यसभा सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर को उतारा है.
वाम-कांग्रेस का गठबंधन केरल में नाकाम
केंद्र में भाजपा की विभाजनकारी राजनीति को ‘इंडिया’ गठबंधन के बैनर तले चुनौती देने की बात करने वाले विपक्षी दल केरल में एलडीएफ और यूडीएफ में बंटकर एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाते देखे जा सकते हैं, जो चुनाव में मुख्य सुर्खियां बना हुआ है.
मुख्यमंत्री विजयन भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी ‘केरल विरोधी‘ बताते देखे जा सकते हैं. वह पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और वायनाड सांसद राहुल गांधी पर भी हमला करने से नहीं चूक रहे हैं. यहां तक कि एक सत्तारूढ़ विधायक ने तो राहुल गांधी के डीएनए तक की जांच कराने की बात कह दी. विजयन भी अपने विधायक के समर्थन में खड़े नज़र आए. इससे पहले, राहुल गांधी भी विजयन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते देखे गए थे और सवाल उठाया था कि केंद्र ने विजयन के ख़िलाफ़ नर्म रुख़ अपना रखा है और भ्रष्टाचार के कई आरोपों के बाद भी जांच नहीं कराता है.
वहीं, भाजपा केरल में भी जोड़-तोड़ की राजनीति के भरोसे है और पूरे देश की तरह ही इस दक्षिण भारतीय राज्य में भी इसने कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर पार्टी में शामिल किया है और उन्हें चुनाव में उम्मीदवार बनाया है. गौरतलब है कि भाजपा ने राज्य में अब तक कभी कोई लोकसभा सीट नहीं जीती है. हालांकि, पिछले चुनाव में वह कई सीटों पर मुकाबले में जरूर रही थी.
यूडीएफ में कांग्रेस ने केवल एक सांसद का टिकट काटा. त्रिस्सूर से टीएन प्रतापन की जगह वडकरा सीट से सांसद के. मुरलीधरन को मैदान में उतारा है, जबकि मुरलीधरन की वडकरा सीट से शफी परम्बिल को उतारा है. शफी पलक्कड़ से मौजूदा विधायक हैं और विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ‘मेट्रो मैन’ ई. श्रीधरण को हराकर सुर्खियों में आए थे.
वहीं, पोन्नानी सीट से मुस्लिम लीग के सांसद ईटी मोहम्मद बशीर इस बार मलप्पुरम सीट से लड़ रहे हैं और मलप्पुरम से मुस्लिम लीग के सांसद अब्दुस्समद समदानी पोन्नानी सीट से लड़ रहे हैं.
गठबंधनों के बीच सीट विभाजन की बात करें, तो यूडीएफ में कांग्रेस 16, मुस्लिम लीग 2, केरल कांग्रेस (केईसी) और आरएसपी 1-1 सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. एलडीएफ में माकपा 15, भाकपा 4 और केरल कांग्रेस एम (केसीईएम) 1 सीट पर लड़ रहे हैं. वहीं, एनडीए में भाजपा 16 सीटों पर और भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) चार सीटों पर लड़ रहे हैं.
महत्वपूर्ण सीटें
वायनाड – कांग्रेस के राहुल गांधी यहां से सांसद हैं. इसे कांग्रेस की परंपरागत सीट माना जाता है. 2019 में गांधी ने यहां से पहला चुनाव लड़ा था और 4 लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज की थी. भाजपा ने उनके सामने कड़ी चुनौती पेश करने की कवायद में अपनी केरल इकाई के अध्यक्ष के. सुरेंद्रन को उम्मीदवार बनाया है. वैसे, सुरेंद्रन पिछला लोकसभा चुनाव पतनमतिट्टा से लड़कर तीसरे पायदान पर रहे थे. एलडीएफ ने भी राहुल को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और महिला उम्मीदवार के तौर पर एनी राजा को टिकट दिया है. एनी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव डी. राजा की पत्नी हैं और भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी हैं.
तिरुवनंतपुरम – कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर 2009 से लगातार तीन बार यहां से सांसद निर्वाचित होते आ रहे हैं. उन्हें घेरने के लिए भाजपा ने अपने केंद्रीय राज्य मंत्री और राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर को मैदान में उतारा है. मुकाबले को रोचक बनाने में एलडीएफ ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है और 2005-09 तक इस सीट पर भाकपा सांसद रहे पन्नियन रवींद्रन को उतारा है. गौर करने वाली बात है कि 2021 के राज्य विधानसभा चुनाव में एलडीएफ ने तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले 7 विधानसभा क्षेत्रों में से 6 में जीत दर्ज की थी. इस तरह, इस तिरुवनंतपुरम में मुकाबला काफी रोचक हो जाता है. 2019 में थरूर को यहां करीब एक लाख मतों से जीत मिली थी, जबकि भाजपा दूसरे पायदान पर रही थी.
कन्नूर- कांग्रेस से के. सुधाकरण यहां से सांसद हैं जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. 2019 में उन्हें करीब 95 हजार मतों से जीत मिली थी. 2014 में यह सीट माकपा ने जीती थी, जबकि 2009 में भी सुधाकरण ही जीते थे. पिछले चुनाव में भाजपा की यहां जमानत तक जब्त हो गई थी, लेकिन इस बार पार्टी ने कुछ समय पहले ही कांग्रेस छोड़कर आए सी. रघुनाथ को उम्मीदवार बनाया है. रघुनाथ सुधाकरण के ही करीबी माने जाते थे, और पार्टी उन्हें विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री विजयन के खिलाफ उम्मीदवार भी बना चुकी थी. वहीं, माकपा ने भी मजबूत चुनौती पेश करते हुए दो बार के पूर्व विधायक और मुख्यमंत्री विजयन के निजी सचिव रहे एमवी जयराजन को अपना उम्मीदवार बनाया है.
पतनमतिट्टा – 2009 में अस्तित्व में आए इस लोकसभा क्षेत्र से तब से ही लगातार तीन बार से कांग्रेस के एंटो एंटनी सांसद हैं. इस बार यह सीट इसलिए रोचक हो गई है क्योंकि भाजपा ने दिग्गज कांग्रेसी और केंद्र की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी को अपनी उम्मीदवार बनाया है. अनिल कुछ ही समय पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे. रोचक पहलू यह है कि पिता एके एंटनी अभी भी कांग्रेस में हैं और बेटे के खिलाफ प्रचार करते देखे जा सकते हैं. वैसे, माकपा ने भी एक चर्चित चेहरे थॉमस इसाक को टिकट दिया है, जो लंबे समय तक राज्य के वित्त मंत्री भी रह चुके हैं.
त्रिस्सूर – इस सीट पर कांग्रेस ने अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर वडकरा सीट से तीन बार सांसद रहे के. मुरलीधरन को उतारा है. 1998 से ही इस सीट का स्वभाव ऐसा रहा है कि एक बार कांग्रेस जीतती है तो एक बार माकपा. हालांकि, यह सीट इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि भाजपा ने यहां से अभिनेता और दक्षिण की फिल्म इंडस्ट्री में जाने-माने नाम सुरेश गोपी को उम्मीदवार बनाया है. गोपी पिछली बार भी उम्मीदवार थे और तीसरे पायदान पर रहे थे, हालांकि उन्हें मत काफी (28 प्रतिशत से अधिक) था. एलडीएफ उम्मीदवार भाकपा के सुनील कुमार हैं, जो केरल सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
वडकरा – कांग्रेस ने मौजूदा सांसद के. मुरलीधरन की जगह शफी परम्बिल को उतारा है, तो वहीं माकपा ने केके शैलजा को टिकट दिया है. दोनों ही चर्चित नाम हैं. परम्बिल पलक्कड़ विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार के विधायक हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार ‘मेट्रो मैन’ ई. श्रीधरन को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं. वहीं, शैलजा माकपा की केंद्रीय समिति की सदस्य हैं और केरल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुकी हैं. कोरोना महामारी से निपटने में उनके प्रयासों के लिए संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें सम्मानित भी किया था. वह अलग-अलग सीट से चार बार विधायक रही हैं. वर्तमान में मत्तनूर से विधायक हैं. 2021 के विधानसभा चुनावों में वह केरल विधानसभा चुनावों के इतिहास में सबसे बड़े अंतर से जीतने वाली उम्मीदवार रही थीं. 2009 से इस सीट पर लगातार कांग्रेस जीतती आ रही है.
मलप्पुरम – यह सीट इसलिए चर्चा में है क्योंकि लोकसभा चुनाव में भाजपा का एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार यहीं से चुनाव लड़ रहा है. भाजपा ने कालीकट विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. अब्दुल सलाम को अपना उम्मीदवार बनाया है. मुस्लिम लीग के इस गढ़ में उनके सामने लीग के ईटी मोहम्मद बशीर की चुनौती है, जो पोन्नानी सीट से लगातार तीन बार के लोकसभा सांसद हैं और इस बार मलप्पुरम से किस्मत आजमा रहे हैं. इस सीट पर 2009 से पांच बार हुए चुनाव में मुस्लिम लीग ही लगातार जीतती आई है. भाजपा की पिछले चुनाव में यहां जमानत जब्त हो गई थी. वहीं, माकपा ने वी. वासिफ को उम्मीदवार बनाया है.
अलप्पुझा – केरल में माकपा के एकमात्र सांसद एएम आरिफ यहीं से हैं. कांग्रेस ने भी राज्यसभा सांसद और पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल पर दांव खेला है, जो दो बार (2009 और 2014 में) यहां से सांसद रह चुके हैं. भाजपा ने भी अपने प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन की पत्नी शोभा सुरेंद्रन को उम्मीदवार बनाया है. भाजपा पिछले चुनाव में यहां तीसरे पायदान पर रही थी.
अन्य सीटें और उम्मीदवार
1. कासरगोड : राजमोहन उन्नीथन (कांग्रेस), एमएल अश्विनी (भाजपा), एमवी बालाकृष्णन ( माकपा)
2. कोझिकोड : एमके राघवन (कांग्रेस), एमटी रमेश (भाजपा), एलामराम करीम (माकपा)
3. पोन्नानी: अब्दुस्समद समदानी (मुस्लिम लीग), निवेदिता सुब्रमण्यन (भाजपा), के. हमसा (माकपा)
4. पलक्कड़: वीके श्रीकंदन (कांग्रेस), सी. कृष्णकुमार (भाजपा), ए. विजय राघवन (माकपा)
5. अलथूर: राम्या हरीदास (कांग्रेस), टीएन सरासु (भाजपा), राधाकृष्णन (माकपा)
6. चालाकुडी: बेनी बेहनन (कांग्रेस), केए उन्नीकृष्णन (बीडीजेएस-एनडीए), सी. रविंद्रनाथ (माकपा)
7. एर्नाकुलम: हिबी ईडेन (कांग्रेस), केएस राधाकृष्णन (भाजपा), केजे शाइन (माकपा)
8. इडुक्की: डीन कुरियाकोसे (कांग्रेस), संगीता विश्वनाथ (बीडीजेएस-एनडीए), जॉय जॉर्ज (माकपा)
9. कोट्टायम: थॉमस चाज़िकादान (केसीईएम), तुषार वेलापल्ली (बीडीजेएस-एनडीए), के. फ्रांसिस जॉर्ज (केईसी)
10. मवेलीकारा: कोडिकुन्नील सुरेश (कांग्रेस), बेजू कलशाला (बीडीजेएस-एनडीए), सीए अरुण कुमार (भाकपा)
11. कोल्लम: एनके प्रेमचंद्रन (आरएसपी), जी. कृष्णकुमार (भाजपा), मुकेश माधवन (माकपा)
12. आटिंगल: अदूर प्रकाश (कांग्रेस), वी. मुरलीधरन (भाजपा), वी. जॉय (माकपा)