उत्तराखंड: आग से कई हेक्टेयर वन भूमि नष्ट हुई, वन विभाग ने कहा- अधिकतर घटनाएं मानवजनित

भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, 21 अप्रैल से अब तक उत्तराखंड में जंगल में आग लगने की कम से कम 202 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो ओडिशा के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या है, जहां ऐसी 221 घटनाएं दर्ज की गईं.

टेहरी गढ़वाल में जंगल की आग को बुझाते कर्मचारी. (फोटो साभार: X/@ukfd_official)

नई दिल्ली: राज्य वन विभाग ने रविवार को कहा कि उत्तराखंड में नैनीताल और पौड़ी गढ़वाल के जंगलों में लगी आग ज्यादातर मानव निर्मित है. भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर की मदद से आग बुझाने का अभियान दूसरे दिन भी जारी रहा.

अधिकारियों ने बताया कि कई इलाकों में आग पर काबू पा लिया गया है.

अधिकारियों ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि रुद्रप्रयाग के वन अधिकारियों की टीमों ने आग लगाने के लिए जिम्मेदार कम से कम तीन उपद्रवियों की पहचान की है और उन्हें गिरफ्तार किया है. कुछ लोगों पर लापरवाही से अपने खेत में आग लगाने का आरोप लगाया गया, जो बाद में आसपास के वन क्षेत्रों में फैल गई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गढ़वाल जिला वन अधिकारी अनिरुद्ध स्वप्निल ने कहा, ‘शरारती तत्वों की वजह से आग लगी है, हम लोगों को जागरूक कर रहे हैं और उनसे कुछ भी न जलाने की अपील कर रहे हैं.’

स्वप्निल ने कहा, ‘हमने लोगों से कहा है कि जब भी वे किसी को जंगलों में आग जलाते हुए देखें तो (वन) विभाग को सूचित करें. वन क्षेत्रों में आग जलाने वाले लोगों के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत कार्रवाई की जाएगी.’

शनिवार को राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की और स्थिति का जायजा लिया. इसके अलावा आग बुझाने के लिए वायुसेना की सेवाएं ली गईं.

आईएएफ के मुताबिक, आग की लपटों को बुझाने के लिए एक एमआई-17 V5 हेलीकॉप्टर को नैनीताल और आसपास के इलाकों में तैनात किया गया है. इसने शनिवार को प्रभावित क्षेत्रों के साथ-साथ ‘बांबी बकेट’ (ऊपर से एक विशेष क्षेत्र में पानी छोड़ना) ऑपरेशन चलाया.

कुमाऊं के आयुक्त दीपक रावत ने कहा कि भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर और सेना के जवानों के अलावा, प्रांतीय रक्षक दल के वालंटियर्स और होमगार्ड के जवानों को भी अग्निशमन अभियान में मदद के लिए लगाया गया है.

भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के अनुसार, 21 अप्रैल से अब तक उत्तराखंड में जंगल में आग लगने की कम से कम 202 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो ओडिशा के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या है, जहां 221 घटनाएं दर्ज की गईं.

उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल नवंबर से राज्य भर में जंगल की आग की कम से कम 606 घटनाएं सामने आई हैं, जिससे 735.815 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है. इनमें से कम से कम आठ घटनाएं पिछले 24 घंटों में दर्ज की गईं, जिससे 11.75 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई.

अकेले रविवार को उत्तराखंड से 42 बड़े जंगलों में आग की सूचना मिली, जबकि ओडिशा में 26, झारखंड  में 12 और छत्तीसगढ़  में सात घटनाएं सामने आईं. कुल मिलाकर, रविवार को मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर और तमिलनाडु में जंगल में आग लगने की 108 बड़ी घटनाएं दर्ज की गईं.

एफएसआई देश के 10 प्रतिशत जंगलों को आग के प्रति अत्यधिक संवेदनशील श्रेणी में रखता है. लगभग 36 प्रतिशत क्षेत्र में जंगल की आग का खतरा है. इस गर्मी में उत्तराखंड की तरह भारत में लगभग 95 प्रतिशत जंगल की आग मानवजनित गतिविधियों के कारण लगी है, यानी सिगरेट पीने, बिजली की स्पार्किंग, जानबूझकर आग जलाने के कारण. इसके अलावा, बिजली गिरने, उच्च तापमान और शुष्कता जैसे प्राकृतिक कारणों के कारण भी जंगलों में आग लग जाती है.

भारत में मार्च-मई की अवधि में जंगल की आग लगने की अत्यधिक संभावना होती है, क्योंकि सर्दियों के मौसम के बाद बायोमास की प्रचुर उपलब्धता होती है. प्री-मानसून वर्षा के अभाव में सूखे जंगल आग की संभावना अधिक होती है.

रविवार के ताजा एफएसआई आंकड़ों के अनुसार, नैनीताल जिले में लगी आग पड़ोसी जिलों- अल्मोड़ा, टिहरी गढ़वाल, बागेश्वर, चंपावत और दक्षिणी पिथौरागढ़, में फैल गई है, जिससे 30 एकड़ से अधिक जंगलों को नुकसान पहुंचा है.

देश के अन्य हिस्सों में भीषण गर्मी जंगल की आग को अनुकूल बना रही है. ओडिशा में कोरापुट, कंधमाल, संबलपुर और राउरकेला के जंगलों में आग की घटनाओं में मामूली वृद्धि हुई है, जो 15 अप्रैल से भीषण गर्मी की चपेट में है. पिछले एक पखवाड़े में ओडिशा में दिन का तापमान 40 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा है.

वहीं, मार्च में तमिलनाडु में नीलगिरी के कई हेक्टेयर जंगलों में आग लग गई क्योंकि राज्य में फरवरी के बाद से अधिकतम तापमान में वृद्धि देखी गई थी.