नई दिल्ली: 2024 के लोकसभा चुनाव का पहला चरण 19 अप्रैल और दूसरा 26 अप्रैल को संपन्न हो चुका है, लेकिन भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने अभी तक किसी भी चरण के लिए मतदान के अंतिम आंकड़े जारी नहीं किए हैं.
जो उपलब्ध आंकड़े हैं वह केवल ‘अनुमानित रुझान’ हैं जो ईसीआई ने दोनों चरणों के बाद शाम 7 बजे के आसपास जारी किए थे. 19 अप्रैल के लिए अनुमानित रुझान 60% है और 26 अप्रैल के लिए 60.96% है.
ईसीआई के एक शीर्ष अधिकारी ने बिजनेसलाइन को बताया कि पहले चरण में अंतिम मतदान प्रतिशत 66.14% और दूसरे चरण में 66.7% रहा था. उन्होंने अखबार को बताया, ‘जैसे ही हम अंतिम आंकड़े एकत्र कर लेंगे, अपनी वेबसाइट पर डाल देंगे.’
यह आंकड़े अभी तक वेबसाइट पर नहीं हैं.
हालांकि, बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक वेबसाइट से केवल मतदान संबंधी डेटा ही गायब नहीं है. एक और अन्य आंकड़ा जो गायब है, वो प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अखबार में कहा गया है, ‘जब बिजनेसलाइन ने प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या जानने की कोशिश की, तो हमें उत्तर प्रदेश जैसे कुछ चुनिंदा राज्यों की बूथ-वार मतदान सूचियां मिलीं. यह डेटा ओडिशा, बिहार या यहां तक कि दिल्ली के लिए भी उपलब्ध नहीं है. यदि कोई बिहार या ओडिशा के मतदाताओं की संख्या जानने का प्रयास करता है, तो अंतिम पेज पर एक एरर मैसेज दिखाई देता है, जबकि इस पेज पर जानकारी होनी चाहिए थी.’
उल्लेकनिय है कि इससे पहले द वायर ने बताया था कि अब तक अनुमानित मतदान प्रतिशत 2019 के लोकसभा चुनावों की तुलना में कम रहा है.
द वायर के पॉलिटिकल एडिटर अजॉय आशीर्वाद महाप्रशस्त ने लिखा था, ‘एक व्यक्ति को मतदान प्रतिशत में गिरावट को किस तरह समझना चाहिए? राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव जैसे मोदी सरकार के आलोचक इस प्रवृत्ति को केंद्र के प्रति स्पष्ट उदासीनता के रूप में देखते हैं, और दावा करते हैं कि गैर-एनडीए दलों की तुलना में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की सीटों पर मतदान प्रतिशत में गिरावट अधिक है. लेकिन भाजपा समर्थकों का मानना है कि भीषण गर्मी इसका कारण हो सकती है, और उन्हें लगता है कि मोदी सरकार का विरोध करने वाले शायद इस बात से खीज कर मतदान के लिए नहीं आए होंगे कि प्रधानमंत्री का दोबारा चुना जाना पूर्व निर्धारित है.’
उन्होंने लिखा, ‘… लोकसभा चुनाव सामान्य कामकाज की तरह आयोजित किए जा रहे हैं. स्वयं प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भाजपा नेताओं ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभूतपूर्व घृणास्पद टिप्पणियां की हैं, जिन पर ईसीआई ने वास्तव में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है. कुछ क्षेत्रीय नेताओं को छोड़कर विपक्षी दलों ने अपने कैडर को संगठित करने और संसाधन जुटाने में संघर्ष किया है, जिससे यह धारणा बनती है कि मोदी शासन द्वारा की गई ज्यादतियों को चुनौती देने वाला कोई विश्वसनीय व्यक्ति नहीं है.’
वह आगे लिखते हैं, ‘सभी देख सकते हैं कि चुनाव में समान अवसर का अभाव है. यह अब रहस्य नहीं रह गया है. 18वीं लोकसभा चुनने के लिए हो रहे चुनावों में स्थानीय चिंताएं हावी हैं, चुनाव प्रचार में दोहराव से थकान स्पष्ट दिखाई देती है. और यही असली कारण हो सकता है कि मोदी सरकार के समर्थकों और उसके आलोचकों दोनों के बीच मतदान प्रतिशत कम हो रहा है.’