ऑस्ट्रेलिया ने ‘गोपनीय जानकारी’ चुराने का प्रयास करने वाले भारतीय जासूसों को देश से निकाला था

ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2020 में ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा ख़ुफ़िया संगठन द्वारा विफल किया गया तथाकथित 'जासूसों का नेटवर्क' देश में रहने वाले भारतीयों की क़रीबी निगरानी और वर्तमान व पूर्व राजनेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में भी संलिप्त था.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (एबीसी) ने मंगलवार (30 अप्रैल) को बताया कि ऑस्ट्रेलिया ने कुछ भारतीय जासूसों को देश से निकाला है, जो संवेदनशील रक्षा परियोजनाओं और एयरपोर्ट सुरक्षा, और व्यापार संबंधों पर गोपनीय जानकारी के बारे में ‘गुप्त सूचनाएं चुराने’ का प्रयास करते पकड़े गए थे.

ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय प्रसारक ने बताया कि 2020 में ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा खुफिया संगठन (एएसआईओ) द्वारा नाकाम किया गया तथाकथित ‘जासूसों का नेटवर्क’ ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीयों की करीबी निगरानी करने और वर्तमान तथा पूर्व राजनेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने का भी आरोपी था.

यह खुलासा द वाशिंगटन पोस्ट की उस रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में हुआ है जिसमें बताया गया है कि भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी के एक सदस्य को अमेरिकी जमीन पर सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) के नेता गुरपतवंत पन्नू की हत्या की साजिश में कथित संलिप्तता के कारण उनके पद से हटा दिया गया था.

बता दें कि सोमवार को प्रकाशित वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया था कि ऑस्ट्रेलिया में 2020 में दो रॉ अधिकारियों को जासूसी के आरोप में देश से निकाला गया था.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, एबीसी की रिपोर्ट पर भारत की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

बहरहाल, यह खुलासा पूरी तरह से नया नहीं है क्योंकि एएसआईओ के महानिदेशक माइक बर्गेस ने 2021 में वार्षिक खतरे के आकलन में एक जासूसी गिरोह की ओर इशारा किया था, हालांकि उन्होंने इसके पीछे काम कर रहे देश का नाम नहीं बताया था.

बर्गेस ने मार्च 2021 में कैनबरा स्थित एएसआईओ के मुख्यालय में एक भाषण में कहा था, ‘जासूसों ने वर्तमान और पूर्व राजनेताओं, एक विदेशी दूतावास और एक राज्य पुलिस सेवा के साथ संबंध विकसित किए थे. उन्होंने अपने देश के प्रवासी समुदाय की निगरानी की. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के व्यापारिक संबंधों के बारे में गोपनीय जानकारी जुटाने का प्रयास किया. उन्होंने एक सरकारी कर्मचारी से एक प्रमुख हवाई अड्डे के सुरक्षा प्रोटोकॉल पर जानकारी प्रदान करने के लिए कहा.’

बर्गेस ने इस बारे में भी बताया था कि कैसे ‘जासूसों के नेटवर्क’ ने सफलतापूर्वक ‘रक्षा प्रौद्योगिकी के संवेदनशील विवरण’ तक पहुंच रखने वाले एक ऑस्ट्रेलियाई सरकारी सिक्योरिटी क्लीयरेंस रखने वाले व्यक्ति को भर्ती किया गया था.

एबीसी ने कहा है कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा और सरकारी लोगों’ ने पुष्टि की है कि भारत की विदेशी खुफिया सेवा ‘जासूसों के नेटवर्क’ के पीछे थी और सरकार ने ‘कई’ भारतीय अधिकारियों को ऑस्ट्रेलिया से हटा दिया था.

पिछले नवंबर में अमेरिका की यात्रा के दौरान एबीसी के साथ एक साक्षात्कार में बर्गेस ने यह कहने से इनकार कर दिया था कि क्या भारत सरकार के अभियानों ने एएसआईओ के लिए कोई चिंता खड़ी की थी. उन्होंने केवल इतना कहा था कि ऑस्ट्रेलिया ‘विदेशी हस्तक्षेप या उसके लिए साजिश रचने के सभी कृत्यों’ से निपट लेगा.

2022 में अपने अगले वार्षिक खतरा आकलन को जारी करते समय बर्गेस ने कहा था कि जासूसी ‘उन देशों द्वारा कराई जाती है जिन्हें हम मित्र मानते हैं.’

वहीं, एबीसी ने लिखा है कि सरकारी सूत्रों ने उसे बताया है कि ऐसे मित्र देश जो ऑस्ट्रेलिया में जासूसी अभियानों में विशेष रूप से सक्रिय माने जाते हैं, उनमें सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, इजरायल और भारत शामिल हैं.

गौरतलब है कि बीते कुछ समय से भारत सरकार पर विदेश में लोगों की जासूसी करने और उन पर हमले की साजिश रचने के आरोप लगते रहे हैं. इन आरोपों में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के वह आरोप भी शामिल हैं जिनमें उन्होंने अपने देश की जमीन पर भारतीय अधिकारियों द्वारा खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप लगाया था.

वहीं, अमेरिका ने भी भारतीय अधिकारियों पर खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया था, जिसे नाकाम कर दिया गया था.