उत्तराखंड: अल्मोड़ा के जंगलों में आग की चपेट में आने से तीन श्रमिकों की मौत

उत्तराखंड के अल्मोड़ा में एक पाइन रेजिन फैक्ट्री में तीन मज़दूरों की जंगल की आग को बुझाने के दौरान झुलसने से मौत हो गई, जबकि एक अन्य घायल है. पिछले साल 1 नवंबर से अब तक उत्तराखंड में जंगल में आग लगने की 868 घटनाएं हुई हैं, जिसमें 1,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि नष्ट हो गई है. 

उत्तराखंड के जंगल में लगे आग को बुझाने की कोशिश करते लोग. (फोटो साभार: X/@kaidensharmaa)

नई दिल्ली: बीते कई हफ्तों से उत्तराखंड जंगल में आग लगने की घटनाओं से जूझ रहा है. एक अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि अल्मोड़ा में एक पाइन रेजिन फैक्ट्री में तीन मजदूरों की जंगल की आग को बुझाने के दौरान जलने से मौत हो गई, जो उनकी फैक्ट्री के करीब पहुंच गई थी.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, घटना में घायल एक अन्य मजदूर का अभी भी इलाज चल रहा है, वन विभाग द्वारा जारी दैनिक बुलेटिन में पिछले 24 घंटों में राज्य में जंगल की आग से हुए नुकसान का डेटा दिया गया है.

अल्मोड़ा के एक वन अधिकारी ने कहा कि सभी मजदूर नेपाल से थे और नामित अग्निशमन टीमों का हिस्सा नहीं थे.

अधिकारी ने कहा कि गुरुवार को अपने कारखाने के पास अल्मोड़ा वन प्रभाग के गणनाथ रेंज में लगी आग को बुझाने के लिए संघर्ष करते समय वे झुलस गए और बेस अस्पताल, अल्मोड़ा में उनका इलाज चल रहा था.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अल्मोड़ा प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) दीपक कुमार ने कहा कि यह घटना गुरुवार शाम को सोमेश्वर तहसील में हुई, जब अत्यधिक ज्वलनशील पाइन रेज़िन (Resin) निकालने के लिए एक निजी व्यक्ति द्वारा नियुक्त चार मजदूर – दो पुरुष और दो महिलाएं – आग बुझाने की कोशिश करते समय जंगल की आग में फंस गए.  क्षेत्र में तेज हवा चलने के कारण गुरुवार शाम को आग तेजी से फैल गई.

रेज़िन, जिसे स्थानीय रूप से ‘लीसा’ के नाम से जाना जाता है, चीड़ पाइन या हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले लंबी पत्ती वाले भारतीय पाइन (पाइन्स रॉक्सबर्गी) के पेड़ों से निकाला जाता है और डिस्टलेशन (distillation) के बाद तारपीन का तेल बनाने के लिए इस्तेमाल होता है.

कुमार ने कहा, ‘जो चार लोग लीसा निकालने के लिए एक निजी व्यक्ति द्वारा नियुक्त किए गए थे, वन पंचायत क्षेत्र में जंगल की आग में फंस गए थे. एक की मौके पर ही मौत हो गई, दूसरे की गुरुवार रात को अल्मोड़ा बेस अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई, जबकि तीसरी पीड़िता, एक महिला, की शुक्रवार को नैनीताल जिले के हलद्वानी में सुशीला तिवारी सरकारी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई.’

वन अधिकारियों ने कहा कि इस साल पहाड़ी राज्य में जंगल की आग से होने वाली यह मौतों की यह पहली घटना है.

कुमार ने कहा कि उन्हें मजदूरों के पास कोई पहचान पत्र नहीं मिला, जो सभी नेपाल के पड़ोसी गांव के निवासी हैं. नियोक्ता द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर मृतकों में से दो की पहचान दीपक पुजारा और ज्ञानेश्वर बहादुर के रूप में की गई है. डीएफओ ने कहा, ‘वे दो महिलाओं की पहचान का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनमें से एक हल्द्वानी अस्पताल में भर्ती है.’

उन्होंने बताया कि जंगल में आग लगाने के आरोप में अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस मामला दर्ज किया गया है.

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘घटना में मामला दर्ज कर लिया गया है और हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि जंगल में आग कैसे लगी. हमने जंगल में आग लगाने के लिए अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस को शिकायत दी है, जिसके आधार पर उन्होंने एफआईआर दर्ज की है.’

एनडीटीवी ने नैनीताल से आई एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि जंगलों में लगी भीषण आग के कारण पर्यटन नगरी में धुंध छा गई है. वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है जिससे निवासियों के बीच स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

डॉक्टरों का कहना है कि इससे पहले से ही अस्थमा और ब्रोंकाइटिस से पीड़ित मरीजों की समस्या बढ़ सकती है.

एक सरकारी अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एमएस दुग्ताल ने कहा कि वायु प्रदूषण बच्चों के साथ-साथ बुजुर्गों में अस्थमा और फेफड़ों की समस्याएं भी बढ़ा सकता है.

उन्होंने कहा कि नैनीताल से लेकर हलद्वानी तक हर जगह दिखाई देने वाली धुंध जोखिम भरी हो सकती है और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी सांस की समस्याओं से पीड़ित लोगों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी दवाएं नियमित रूप से लें और जब तक जरूरी न हो, बाहर जाने से बचें.

डॉ. दुग्ताल ने लोगों को अपने घरों में एयर प्यूरीफायर का उपयोग करने और बाहर निकलते समय चेहरे पर मास्क लगाने की भी सलाह दी.

आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटों में राज्य के विभिन्न हिस्सों से जंगल में आग की 64 नई घटनाएं सामने आईं, जिसमें 74.67 हेक्टेयर वन भूमि नष्ट हो गई.

पिछले साल 1 नवंबर से अब तक उत्तराखंड में जंगल में आग लगने की 868 घटनाएं हुई हैं, जिसमें 1,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि नष्ट हो गई है. इनमें से कुमाऊं क्षेत्र में 616.02 हेक्टेयर, गढ़वाल क्षेत्र में 390.1 हेक्टेयर और प्रशासनिक वन्यजीव क्षेत्रों में 79.9 हेक्टेयर क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है.

जंगल की आग बुलेटिन में कहा गया है कि कुल आग की घटनाओं में से कुमाऊं में 456 और गढ़वाल में 344 घटनाएं दर्ज की गईं.

भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के आंकड़ों के मुताबिक, 25 अप्रैल से 2 मई के बीच उत्तराखंड में देश में सबसे ज्यादा जंगल की आग की घटनाएं दर्ज की गईं. उस अवधि में हिमालयी राज्य में सबसे अधिक 241 बड़ी जंगल आग की घटनाएं दर्ज की गईं, इसके बाद ओडिशा (231), छत्तीसगढ़ (36), आंध्र प्रदेश (83), और झारखंड (79) थे.

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