दरभंगा: ‘मिथिलांचल का दिल’ कहे जाने वाले दरभंगा लोकसभा क्षेत्र और निकटवर्ती लोकसभा सीटों- झंझारपुर, मधुबनी और समस्तीपुर- में राजनीतिक पंडित क़यास नहीं लगा पा रहे हैं कि ऊंट किस करवट बैठेगा.
अलबत्ता, कई विश्लेषक मुस्लिम मतदाताओं के कथित रुख़ और यादवों के बीच वोट के बड़े विभाजन को इंगित करते हुए मानते हैं कि एम-वाई समीकरण कई जगहों पर उतना प्रभावी नहीं रह गया है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सवर्णों को अपने साथ लाने की क़वायद की है और यादव समाज में इसकी पैठ पहले से ज़्यादा मानी जा रही है. बिहार में भाजपा ने अपने हिस्से की 17 सीटों में से 11 पर सवर्ण उम्मीदवार दिए हैं. अगर मधुबनी से अशोक यादव हैं, तो दरभंगा से गोपालजी ठाकुर (सवर्ण) हैं. जबकि झंझारपुर से भाजपा के सहयोगी दल जनता दल (यू) ने रामप्रीत मंडल और समस्तीपुर से इसके दूसरे सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी की पुत्री शांभवी चौधरी को उम्मीदवार बनाया है.
पूरे बिहार में भाजपा और उसके सहयोगी दल सोची-समझी रणनीति के तहत सवर्ण एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ पिछड़े और वंचित समाज के मतों को साधने की कोशिश में हैं.
मिथिलांचल में 55 पिछड़ी एवं अत्यंत पिछड़ी जातियों के मतदाता जिन्हें ‘पचपनिया’ कहा जाता है, की भूमिका निर्णायक मानी जाती है. पिछले चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की जीत में भी यहां इनका महत्वपूर्ण योगदान बताया जाता है.
राजनीतिक विशेषज्ञ मुस्लिम, सवर्ण और कुछ हद तक यादवों के बीच बड़े पैमाने पर मत विभाजन से वाक़िफ़ हैं, इसके बावजूद ‘पचपनिया’ की ख़ामोशी को ठीक-ठीक नहीं पढ़ पाने के चलते मानते हैं कि नतीजे इन्हीं पर निर्भर होंगे. हालांकि, इस बार मतदाताओं में पहले जैसा उत्साह और जोश नहीं है. ऐसे में लोगों की ख़ामोशी के सियासी मायने क्या हो सकते हैं?
झंझारपुर
झंझारपुर में मौजूदा सांसद और एनडीए प्रत्याशी रामप्रीत मंडल के प्रति लोगों में भारी नाराज़गी नज़र आई. लोगों ने कहा कि उन्होंने कभी अपना चेहरा नहीं दिखाया और अब उल्टा बयान देते फिर रहे हैं कि ‘जब वो क्षेत्र में आते हैं तो लोग नहीं मिलते, सब भैंस चराने गए होते हैं.’
कुछ लोगों ने दावा किया कि इनके कार्यकाल में कहीं कोई विकास नहीं हुआ. पमरिया समाज से आने वाले ऐसे ही एक मतदाता राजा रहमानी ने बताया, ‘हम बदलाव चाहते हैं, लेकिन मामला त्रिकोणीय और पेचीदा है. यहां ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ़ से विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के सुमन कुमार महासेठ को भाजपा और जदयू का कैडर वोट भी मिलेगा.’
वजह पूछने पर वह कहते हैं कि चूंकि महासेठ आरएसएस-भाजपा से आए हैं, तो भाजपा और जदयू का परंपरागत वोट भी इनके पक्ष में जाता दिख रहा है.
वहीं, मुक़ाबले को त्रिकोणीय बनाने वाले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रत्याशी गुलाब यादव को लेकर वे मानते हैं कि अगर वे ‘इंडिया’ गठबंधन के उम्मीदवार होते तो अच्छा होता.
शुरू में ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से गुलाब यादव के नाम की ही चर्चा थी.
वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत कुमार मिश्र कहते हैं कि झंझारपुर में रामप्रीत मंडल से लोग ख़ुश नहीं हैं और उनकी स्थिति कमज़ोर है. मंडल भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी हैं, इसलिए उन्हें जो भी वोट मिलेगा केंद्र और मोदी के चेहरे पर ही मिलेगा.
वह यह भी जोड़ते हैं कि यहां गुलाब यादव को हल्के में नहीं लिया जा सकता.
वरिष्ठ पत्रकार आक़िल हुसैन भी झंझारपुर में ‘इंडिया’ गठबंधन से भाजपा के बाग़ी महासेठ की उम्मीदवारी और 2019 में एनडीए से जदयू के रामप्रीत मंडल की राजद के ख़िलाफ़ शानदार जीत की बात को रेखांकित करते हुए कहते हैं, ‘मुक़ाबला तो जदयू के मंडल और वीआईपी के महासेठ के बीच ही नज़र आ रहा है, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन का खेल राजद के बाग़ी गुलाब यादव बिगाड़ सकते हैं.’
स्थानीय मुद्दों के सवाल पर प्रशांत कुमार मिश्र कहते हैं, ‘झंझारपुर में बड़ा मुद्दा है- इसे अलग ज़िले का दर्जा दिए जाने की मांग, लेकिन अन्य जगह ऐसा कोई स्थानीय मुद्दा नज़र नहीं आ रहा जो मत पैटर्न को प्रभावित करे.’
झंझारपुर के खजौली विधानसभा से विधायकी का चुनाव लड़ चुके सैयद हस्सानुल हक़ भी ऐसा ही मानते हैं, ‘मुद्दों और विकास की बातें यहां कभी नहीं हुईं. सड़क, अस्पताल, शिक्षा हर मामले में ये इलाक़ा पिछड़ा है. अल्पसंख्यक समाज के बच्चों को कई जगहों पर अपनी भाषा के बजाय संस्कृत और मैथिली तक पढ़ने मजबूर होना पड़ता है. जहां तक मुसलमानों की बात है तो वो चाहते हैं कि किसी तरह मुल्क और संविधान को बचाया जाए, जिसके लिए ज़हर भी पीना पड़े तो पिएंगे.’
उनके मुताबिक इसीलिए लोग ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ़ उम्मीद से देख रहे हैं, लेकिन यहां बसपा के उम्मीदवार भी हैं. अब ये दोनों अल्पसंख्यक समाज से किस तरह जुड़ते हैं, उससे बहुत कुछ तय होगा.
इस बीच, महादलित महिलाएं प्रधानमंत्री द्वारा राशन वितरण की बात करती नज़र आईं, हालांकि वहीं मौजूद पमरिया समाज के एक युवा को बेरोज़गारी पर बात करते हुए उन्होंने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘वोट सोच समझकर देंगे.’
झंझारपुर लोकसभा के लिए मतदान तीसरे चरण में 7 मई को है.
दरभंगा
दरभंगा लोकसभा में मौजूदा सांसद और एनडीए उम्मीदवार गोपाल जी ठाकुर के प्रति भारी रोष की ख़बरों के बीच मौजूदा विधायक और ‘इंडिया’ गठबंधन के उम्मीदवार ललित कुमार यादव से भी लोग कई जगहों पर ज़्यादा ख़ुश नज़र नहीं आए. मनीगाछी प्रखंड में मुसहर समाज की शीला देवी ने बताया, ‘नेता सबको इधर आने में भी लाज लगता है, लेकिन वोट चाहिए, अपना आदमी भेजकर हमारी ख़ुशामद करता है, जीतने के बाद झांकी मारने भी नहीं आता.’
इस समाज में कई लोग ‘मोदी’ और राजद सुप्रीम ‘लालू प्रसाद यादव’ के लिए अपशब्द तक कहते नज़र आए, वहीं मुस्लिम समाज के लोग बहुत हद तक ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में गोलबंद हैं. हालांकि, कहीं-कहीं युवाओं में मुस्लिम नेतृत्व का सवाल भी उठता दिखता है.
मुसलमानों के बीच सामाजिक जागरूकता पर काम करने वाली संस्था तंज़ीम ऑल इंडिया मुस्लिम बेदारी कारवां के अध्यक्ष नज़रे आलम कहते हैं, ‘बिहार में जिस अल्पसंख्यक समाज के बूते भाजपा को रोकने का दावा किया जाता है, उसको नुमाइंदगी नहीं दी गई, इसलिए लोग दिल से नहीं चाह रहे कि ‘इंडिया’ गठबंधन को वोट करें, ख़ास तौर पर राजद से लोग ख़फ़ा हैं. जहां भी विकल्प होगा, मुसलमान अपना गुस्सा उतारेंगे लेकिन ज़्यादातर जगहों पर मजबूरी में इन्हें वोट करेंगे.’
वे जोड़ते हैं, ‘दरभंगा को ही देख लीजिए, अभी जो राजद से उम्मीदवार हैं ललित कुमार यादव, वह यहां से अली अशरफ़ फ़ातमी और अब्दुल बारी सिद्दीकी को पार्टी के ख़िलाफ़ जाकर हराने का काम कर चुके हैं. सिर्फ़ इसलिए कि यहां से मुस्लिम उम्मीदवारी खत्म हो जाए, जबकि ये ख़ुद मुस्लिम वोट के सहारे राजनीति कर रहे हैं. इसलिए हो सकता है कि मुसलमान पूरी तरह से इनके साथ न जाएं.’
पत्रकार प्रशांत कुमार कहते हैं, ‘ठाकुर अच्छे उम्मीदवार हैं, लेकिन उनकी अपनी एक राजनीतिक सीमा है. यहां अब तक एम्स का मुद्दा हल नहीं हुआ. ऐसे मुद्दों को लेकर उनका और उनके कार्यकताओं का जैसा उत्साह होना चाहिए था, वो नज़र नहीं आया. वहीं, ललित यादव अभी विधायक हैं तो राजद का कैडर वोट पूरी तरह से उनके साथ है, इसलिए वो कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. मधुबनी की अपेक्षा राजद दरभंगा में बहुत मज़बूत है और कांटे का मुकाबला देखने मिलेगा.’
वरिष्ठ पत्रकार एमए सारिम कहते हैं, ‘अलीनगर विधानसभा और आसपास एम-वाई समीकरण तो बरक़रार है ही, साथ ही पिछड़ा, दलित तथा फारवर्ड मतदाताओं की गोलबंदी के कारण एंटी-इनकम्बेंसी तथा अन्य मुद्दों को लेकर माहौल ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में दिख रहा है.’
वह कहते हैं, ‘मौजूदा सांसद के विरोध के कारण ब्राह्मण वोट का प्रतिशत यहां बढ़ भी सकता है.अधिकांश पिछड़े एवं दलित मतदाताओं की चुप्पी के कारण कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी.’
दरभंगा लोकसभा के लिए मतदान चौथे चरण में 13 मई को है.
समस्तीपुर
यहां नीतीश सरकार के मंत्री महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी ‘इंडिया’ गठबंधन से मैदान में हैं, जबकि बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी लोजपा (रामविलास) से चुनाव लड़ रही हैं.
समस्तीपुर में एनडीए के लिए लड़ाई आसान है. प्रशांत कुमार कहते हैं, ‘यहां नीतीश कुमार के लिए धर्मसंकट है. दोनों उम्मीदवार उनके दो मंत्रियों के पुत्र और पुत्री हैं. लेकिन भाजपा गठबंधन में जोश है, महिला और युवा उत्साहित हैं, इसलिए यहां एनडीए की स्थिति बेहतर लग रही है. वहीं, चिराग़ पासवान का अपना वोट बैंक भी एक फैक्टर है.’
सन्नी हजारी को लेकर कहा जा रहा है कि वह पहले से यहां सक्रिय हैं और लोगों के बीच पहचान रखते हैं, वहीं शांभवी चौधरी को बाहरी उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है.
द वायर से बात करते हुए बुज़ुर्ग मतदाता सीता राम ने कहा, ‘हम मानते हैं कि मोदी फिर आएंगे, उनको रोकने वाला कोई नहीं है, उनको संतों का आशीर्वाद मिला हुआ है. कोई गठबंधन कुछ भी कर ले उनको हराने वाला कोई नहीं है.’
दूसरी तरफ, समस्तीपुर के ही जितवारपुर में कुछ युवा और बुज़ुर्ग मतदाताओं ने दावा किया, ‘यहां ‘इंडिया’ गठबंधन बहुत मज़बूत है, इस बार किसी की दाल नहीं गलेगी. पांचे किलो अनाज पर समझ रहा है कि जनता बेवक़ूफ़ है. इस बार सब चुल्ही के भाड़ में चल जाएगा.’
एक बुज़ुर्ग ने कहा, ‘देख रहे हैं मंदिर मस्जिद भी नहीं चल रहा इस बार. वोटर सब मन बना लिया है कि क्या करना है.’ इस दौरान युवा मुकेश कुमार यादव ने कहा, ‘दो बार यहां से प्रिंस राज और उससे पहले रामचंद्र पासवान को हम देख चुके हैं, कोई विकास नहीं हुआ. इस बार कांग्रेस से सन्नी हजारी स्थानीय हैं, हमारे लिए इससे अच्छा क्या होगा.’
मुकेश कहते हैं, ‘यहां किसी की गारंटी नहीं चलेगी. मोदी जी ‘पकोड़ा रोज़गार’ दिए और तेजस्वी ने ‘रोज़गार’ दिया तो युवा किधर जाएगा आप ख़ुद ही सोच सकते हैं.’
पत्रकार आक़िल हुसैन के अनुसार इस सीट पर अल्पसंख्यकों का वोट काफी मायने रखता है और वही जीत-हार का फैसला करेगा.
समस्तीपुर लोकसभा के लिए मतदान चौथे चरण में 13 मई को है.
मधुबनी
मधुबनी में मौजूदा सांसद और भाजपा उम्मीदवार अशोक कुमार यादव के ख़िलाफ़ लोगों में काफ़ी गुस्सा है. लोगों का कहना है कि वह सिर्फ़ चुनाव के समय ही नज़र आते हैं, लेकिन उनके लिए जीतना ज़्यादा कठिन नहीं है.
प्रशांत कुमार कहते हैं, ‘मधुबनी में राजद उम्मीदवार अली अशरफ़ फ़ातमी यहां के नहीं हैं, दरभंगा के हैं. इसलिए राजद के अंदर भी उनको लेकर ज़्यादा उत्साह नहीं है. हालांकि, समस्याएं भाजपा उम्मीदवार अशोक यादव के लिए भी हैं. वह अपने पिता (पूर्व मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव) की विरासत संभाल रहे हैं, और एक स्थानीय तौर पर ज़्यादा लोकप्रिय नहीं है. मगर इन्हें पीएम मोदी के नाम पर वोट मिलेगा.’
पत्रकार आक़िल हुसैन के मुताबिक, ‘मधुबनी कांग्रेस और भाकपा का गढ़ रहा है. अब लंबे समय से यहां भाजपा का प्रभुत्व है. राजद कभी यहां जीत दर्ज नहीं कर सकी. ऐसे में फ़ातमी के लिए चुनाव बहुत कठिन है. इसकी वजह है कि यादव राजद का वोट बैंक माना जाता है, लेकिन भाजपा प्रत्याशी भी इसी समुदाय से हैं. इसलिए अधिकांश यादव वोट भाजपा को ही जाएगा, जैसा पिछले चुनाव में भी हुआ था. लोग मानते हैं कि अगर ‘इंडिया’ गठबंधन से कांग्रेस लड़ती तो नजारा कुछ और होता.’
नज़रे आलम कहते हैं कि दरभंगा की तरह मधुबनी और झंझारपुर में भी लोगों ने अपने सांसद का चेहरा नहीं देखा, तो एक झुकाव अशरफ़ फ़ातमी की तरफ़ है, लेकिन वह फिलहाल इसका बहुत फ़ायदा उठाते नज़र नहीं आ रहे.
मधुबनी में लोकसभा चुनाव पांचवें चरण में 20 मई को है.