नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के मामले में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद और छह अन्य को बरी कर दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने मामले की जांच की निंदा करते हुए कहा कि जांच यह सुनिश्चित करने के लिए की गई थी कि ‘सच्चाई हमेशा के लिए दफन हो जाए.’
मालूम हो कि अहमदाबाद में साल 2010 में अमित जेठवा की गुजरात हाईकोर्ट परिसर के पास दो लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. उन्होंने आरटीआई आवेदनों के माध्यम से गिर वन क्षेत्र में अवैध खनन गतिविधियों को उजागर करने की कोशिश की थी, जिसमें कथित तौर पर भाजपा सांसद दीनू सोलंकी शामिल थे.
शुरुआत में अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जांच की थी. 2019 में सोलंकी और छह अन्य को एक सीबीआई की विशेष अदालत ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई. मामले में दोषी पाए गए पांच अन्य आरोपियों में शैलेष पंड्या, बहादुर सिंह वढेर, पंचेन जी देसाई, संजय चौहान और उदयजी ठाकोर शामिल थे.
सोमवार (6 मई) को हाईकोर्ट के जस्टिस एएस सुपेहिया और जस्टिस विमल के. व्यास की पीठ ने कहा कि पूरी जांच एक दिखावा थी और सच्चाई को हमेशा के लिए दफनाने के सभी प्रयास किए गए थे. अदालत ने कहा, ‘अपराधी ऐसा करने में सफल भी हो गए हैं.’
इसमें कहा गया है कि मामले को ‘सत्यमेव जयते’ के विरोधी के रूप में याद किया जाएगा. यह बात जितनी भयावह है, उतनी ही आश्चर्यजनक भी है कि हमलावरों को पकड़ा नहीं गया और वे हत्या के बाद अहमदाबाद शहर की सीमा से भाग गए.
अदालत ने विशेष रूप से सीबीआई की जांच को लापरवाही करार दिया. पीठ ने यह कहते हुए कि हाईकोर्ट ने जांच सौंपते समय सीबीआई पर भरोसा जताया था और कहा, ‘सीबीआई ने भी ढिलाई और लापरवाही से जांच की है. जांच अधिकारी सही मानकों का पालन करने और लोक अभियोजक अपने कर्तव्य में विफल रहे.’
अदालत ने कहा, ‘विरोधी गवाहों से जिरह एक खोखली औपचारिकता जैसी थी. प्रासंगिक साक्ष्य निकालने का कोई प्रयास नहीं किया गया. सभी गवाह पुलिस सुरक्षा का मज़ा ले रहे थे, लेकिन वे फिर सभी मुकर गए और अभियोजन से बच गए.’
अदालत ने कहा कि उसे यह भी अजीब लगा कि सीबीआई अधिकारी मुकेश शर्मा ने उस स्थान, जहां कथित साजिश रची गई थी, हरमदिया फार्म को नजरअंदाज कर दिया या वहां जाना भूल गए और इसे भाजपा के दीनू सोलंकी से जोड़ने का कोई प्रयास नहीं किया.
इसमें कहा गया, ‘सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि मृतक के मोबाइल फोन से कोई डेटा एकत्र नहीं किया गया है, हालांकि कॉल रिकॉर्ड उपलब्ध थे.’
अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि जांच को जानबूझकर खराब किया गया है ताकि अपराध में आरोपी की संलिप्तता के नतीजे को बदला जा सके.