नई दिल्ली: वर्तमान लोकसभा चुनाव में भाजपा इस मुद्दे पर भी वोट मांग रही है कि मोदी सरकार में अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है. पिछले दिनों दिल्ली में एक चुनाव प्रचार के दौरान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था, ‘पहले भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कुछ बोलता था तो उसकी बातों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता था जितना लिया जाना चाहिए, लेकिन आज भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कुछ बोलता है तो दुनिया कान खोलकर सुनती है. अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की प्रतिष्ठा तेजी से बढ़ी है.’
हालांकि, दो प्रमुख शिक्षाविदों की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले एक दशक में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा में कोई सुधार नहीं हुआ है. कई सर्वेक्षणों के आधार पर तैयार रिपोर्ट का नाम ‘द मोदी मिराज : इल्यूजंस एंड रियलिटी ऑफ इंडियाज ग्लोबल स्टैंडिंग एंड रेप्युटेशन’ है. रिपोर्ट को जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इरफान नूरुद्दीन और नीदरलैंड की ग्रोनिंगन यूनिवर्सिटी की डॉ. रितुंबरा मनुवी ने लिखा है. रिपोर्ट में बतौर प्रमुख सलाहकार लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज के डॉ. सुबीर सिन्हा ने योगदान दिया है.
लेखक इस बात को रेखांकित करते हैं कि सत्तारूढ़ दल ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत किया है. इस बात को अक्सर भारतीय मीडिया द्वारा प्रचारित भी किया जाता है. रिपोर्ट में लिखा है, ‘भारत के लोग अपने देश की वैश्विक प्रतिष्ठा को लेकर बहुत चिंतित हैं. ऐसे में आम चुनाव के दौरान यह पता लगाना महत्वपूर्ण हो जाता है कि मोदी भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा बढ़ाने में सफल हुए हैं या नहीं.’
पहले से खराब हुई है स्थिति
रिपोर्ट में 2023 की प्यू ग्लोबल एटिट्यूड सर्वे रिपोर्ट के आंकड़ों का हवाला दिया गया है, जिनसे पता चलता है कि 23 देशों के 46% नौजवानों ने भारत के बारे में ‘अच्छे’ विचार रखे. वहीं, 34% नौजवानों की राय भारत को लेकर अच्छी नहीं थी. सर्वे में शामिल 12 देशों के नागरिकों के एक समूह में से केवल 37% वयस्कों ने मोदी पर भरोसा होने की बात कही, जबकि 40% की राय इसके विपरीत थी.
2008 के प्यू सर्वे में भारत को लेकर आम तौर पर लोगों की राय ‘अच्छी’ थी. तब यूरोपीय लोगों ने भारत के बारे में सबसे सकारात्मक राय व्यक्त की थी. सर्वेक्षण के पिछले आंकड़ों से तुलना करें तो 15 साल बाद सभी यूरोपीय देशों में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आई है. सबसे ज्यादा कमी फ्रांस में देखी गई है, जहां 2008 के सर्वेक्षण में शामिल 70% वयस्कों का भारत के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण था, 2023 में घटकर यह मात्र 39% रह गया.
2008 में अमेरिका में 63% लोगों का भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण था, जो 2023 में घटकर 51% रह गया. पिछले साल के सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 23% अमेरिकियों का मानना था कि भारत का प्रभाव बढ़ा है, जबकि 64% का मानना था कि हाल के वर्षों में इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.
इसके अलावा, 2023 में लगभग 40% अमेरिकियों ने कहा कि उन्होंने मोदी के बारे में कभी नहीं सुना. जो लोग उनसे परिचित थे, उनमें से 21% ने उनके नेतृत्व पर भरोसा जताया, जबकि 37% अमेरिकियों को सही निर्णय लेने की उनकी क्षमता पर बहुत कम या बिल्कुल भी विश्वास नहीं था.
अमेरिकियों के बीच सबसे लोकप्रिय विदेशी राजनेता की पहचान करने के लिए मार्च 2024 में एक सर्वे किया गया था. सर्वे में नरेंद्र मोदी 26वें स्थान पर थे. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, दोनों मोदी से ऊपर थे. उस सर्वे के मुताबिक, 51% अमेरिकियों ने मोदी के बारे में सुना था. लेकिन उनमें से केवल 22% का उनके बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण था. सर्वे में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की नंबर एक पर थे.
सर्वेक्षणों के आधार पर तैयार अपनी रिपोर्ट में लेखकों (इरफान नूरुद्दीन और डॉ. रितुंबरा मनुवी) ने कहा है कि दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने का मोदी का दावा एक भ्रम है. लेखकों ने सुझाव दिया है कि भारत का प्रभाव बढ़ सकता है, अगर वह मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मानदंडों का सम्मान करते हुए अपना रुख बदलता है.