नई दिल्ली: हरियाणा की भाजपा सरकार को अल्पमत में बताते हुए कांग्रेस ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है. 7 मई को तीन निर्दलीय विधायकों (चरखी दादरी से सोमबीर सांगवान, नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और पुंडली से रणधीर गोलन) ने भाजपा से समर्थन वापस लेने और कांग्रेस के साथ जाने का ऐलान किया था. दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) पहले ही भाजपा का साथ छोड़ चुकी है और अब कांग्रेस का समर्थन करने की बात कह रही है.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा, ‘यह सरकार अल्पमत में है और मुख्यमंत्री को नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए… अगर विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा सरकार गिराने के लिए कदम उठाएंगे तो मैं बाहर से कांग्रेस का समर्थन करूंगा. वह विपक्ष के नेता हैं और कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. उन्हें आगे बढ़कर राज्यपाल के पास जाना होगा. हम राज्यपाल को भी लिखेंगे. लेकिन इसकी शुरुआत भूपेंद्र हुड्डा को करनी होगी. हम सामूहिक विपक्ष का हिस्सा बनेंगे और वर्तमान सरकार के खिलाफ वोट करेंगे.’
हालांकि, मार्च 2024 के अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जेजेपी ने व्हिप जारी कर अपने विधायकों को मतदान करने से रोका था, जिससे भाजपा को आसान जीत मिल गई थी.
जब हुडा से जेजेपी के समर्थन वाले प्रस्ताव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में साढ़े चार साल रहने के बाद वह ये बातें कह रहे हैं. यदि वह भाजपा की बी-टीम नहीं हैं तो उन्हें राज्यपाल से मिलना चाहिए और अपने 10 विधायकों की परेड करानी चाहिए, और फिर मैं विधायक भारत भूषण बत्रा के नेतृत्व में अपने 30 विधायकों को राजभवन भेजूंगा.’
आंकड़े क्या कहते हैं?
हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं. बहुमत के लिए 46 विधायकों का समर्थन चाहिए होता है. इस साल की शुरुआत में मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे के बाद भाजपा ने 48 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी. भाजपा को अपने 41 विधायक, सात में से छह निर्दलीय विधायक और एक हरियाणा लोकहित पार्टी के विधायक का समर्थन मिला था. बाद में एक निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला भाजपा में शामिल हो गए, जिससे पार्टी की आधिकारिक संख्या 42 हो गई और निर्दलीय विधायकों की संख्या पांच हो गई.
लेकिन अब स्थिति अलग है. हरियाणा विधानसभा की वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में भाजपा के 40, कांग्रेस के 30, जेजेपी के 10, निर्दलीय 6, इंडियन नेशनल लोकदल और एचएलपी के एक-एक विधायक हैं. करनाल और रानियां सीट खाली हैं, क्योंकि लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के दो विधायकों- पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और रणजीत चौटाला- ने अपनी विधानसभा सीटों से इस्तीफा दे दिया है.
अब बहुमत का आंकड़ा 45 हो गया है. तीन निर्दलीय विधायकों के साथ छोड़ने के बाद भाजपा के पास 43 विधायकों (भाजपा 40 + निर्दलीय 2 + लोकहित पार्टी 1) का समर्थन रह गया है. यह आंकड़ा बहुमत से दो कम है. हालांकि, खट्टर ने संकेत दिया है कि भाजपा प्रतिद्वंद्वी खेमे के कई विधायकों के संपर्क में है.
क्या भाजपा को ख़तरा है?
बहुमत का आंकड़ा कम होने के बावजूद फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा है कि भाजपा की सरकार को कोई खतरा है. भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने हाल ही में 13 मार्च को नायब सिंह सैनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. मुख्यमंत्री सैनी ध्वनि मत से विजयी हुए थे. नियमों के मुताबिक, किसी भी अविश्वास प्रस्ताव को पिछले प्रस्ताव के छह महीने के भीतर पेश नहीं किया जा सकता है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में हुड्डा ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया लेकिन साथ ही कहा, ‘मुख्यमंत्री को नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए, क्योंकि उनकी सरकार बहुमत खो चुकी है.’
भले ही कांग्रेस और जेजेपी दोनों राज्यपाल से मिलें और दावा पेश करने के लिए अपने-अपने विधायकों की परेड कराएं, लेकिन राज्यपाल क्या करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. भले ही राज्यपाल राज्य सरकार को एक निश्चित समय अवधि के भीतर अपना बहुमत साबित करने का निर्देश दे दें, फिर भी इस बात की संभावना अधिक है कि जेजेपी के कुछ विधायक या तो दल बदल देंगे या मतदान से अनुपस्थित रहेंगे. दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा फिर से बहुमत साबित करने में कामयाब हो सकती है.
द वायर से बातचीत में यही बात महाराणा प्रताप नेशनल कॉलेज, मुलाना (अंबाला) में राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक विजय चौहान ने कही है. उनका मानना है कि भाजपा अन्य दलों के बागी विधायकों के समर्थन से सरकार बचाने में कामयाब हो सकती है. हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि ताजा उथल-पुथल से पता चलता है कि भाजपा राज्य में पकड़ खो रही है. निर्दलीय विधायकों को लगता है कि सत्तारूढ़ दल की तुलना में कांग्रेस का समर्थन करने में उनका भविष्य बेहतर है.
हरियाणा विधानसभा चुनाव भी अब ज्यादा दूर नहीं हैं. ऐसी संभावना है कि लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद विपक्ष विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा पर दबाव बनाने के लिए इस मुद्दे को फिर से उठा सकता है. फिलहाल कांग्रेस का भी पूरा ध्यान 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों पर है. वर्तमान में सभी 10 सीटों पर भाजपा का कब्जा है.