नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने राजभवन की एक महिला कर्मचारी द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए छेड़छाड़ के आरोपों के बाद गुरुवार (9 मई) को लगभग 50 से अधिक लोगों को 2 मई के परिसर के सीसीटीवी फुटेज दिखाए.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक असामान्य स्क्रीनिंग के लिए कोलकाता में राजभवन के प्रतिष्ठित हॉल में एक अंधेरे कमरे में 50 से अधिक लोगों की भीड़ एकत्र हुई. राज्यपाल सीवी आनंद बोस अपने ऊपर लगे आरोपों से खुद को बेदाग साबित करने की कोशिश में 2 मई की फुटेज प्रसारित करने वाले थे, जिस दिन उनके कार्यालय में एक अस्थायी कर्मचारी ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. स्क्रीनिंग के समय बोस हॉल में मौजूद नहीं थे लेकिन वह राजभवन के परिसर में मौजूद थे.
दर्शकों को राजभवन के उत्तरी गेट पर लगे दो सीसीटीवी कैमरों की 69 मिनट की फुटेज दिखाई गई. फ़ुटेज में बहुत कम गतिविधि थी, जिसमें मुख्य रूप से सफेद वर्दी में लगभग 30 से 40 पुलिस कर्मियों को परिसर के विशाल लोहे के गेटों के आसपास घूमते हुए दिखाया गया है.
हालांकि, कुछ सेकंड के लिए वीडियो में शिकायतकर्ता को – उनका चेहरा ब्लर किए बिना राजभवन की मुख्य इमारत से बाहर निकलते हुए और उत्तरी गेट के पास परिसर के अंदर तैनात पुलिस कर्मियों से बात करते हुए दिखाया गया.
उनका खुद को बेदाग साबित करने के लिए की गई स्क्रीनिंग ने अब बोस को एक नए विवाद में डाल दिया है, जहां शिकायतकर्ता महिला ने उन पर पहचान उजागर करने का आरोप लगाया है. उन्होंने मीडिया से कहा, ‘ऐसा करके उन्होंने न सिर्फ मेरा बल्कि मेरे परिवार का अपमान किया है.’
मालूम हो कि महिला ने बोस पर दो बार उसके साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है. पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की है क्योंकि उनका कहना है कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है. आरोप लगाए जाने के कुछ घंटों बाद राज्यपाल ने 2 मई को रात 9.20 बजे एक बयान जारी कर आरोपों से इनकार किया था और राजभवन में पुलिस के प्रवेश पर रोक लगा दी थी.
बोस ने बुधवार को घोषणा की थी कि वह 2 मई की फुटेज जारी करेंगे और गुरुवार को इसे राजभवन परिसर के अंदर उन पहले 100 लोगों के लिए प्रसारित करेंगे जिन्होंने इसे देखने के लिए ईमेल के जरिये अनुरोध किया था. बताया गया है कि लगभग 50 लोग, जिनमें से अधिकांश मीडिया कर्मी और राजभवन कर्मचारी थे, जल्दबाजी में आयोजित इस स्क्रीनिंग के लिए पहुंचे थे.
हालांकि, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें कोई फुटेज नहीं मिला है, लेकिन पीड़िता ने इसे प्रसारित करने के लिए राज्यपाल की आलोचना की है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला ने गुरुवार को कहा, ‘मेरी अनुमति के बिना मेरे चेहरे को बिना ब्लर किए लोगों को दिखाया गया और ऐसा करना एक अपराध है. कार्यक्रम में शामिल एक व्यक्ति से मुझे मेरा वीडियो मिला, जिसमें मुझे ब्लर नहीं किया गया था. इसका मतलब है कि मुझे बदनाम करने के लिए ये वीडियो फैलाए जा रहे हैं.’
ज्ञात हो कि भारतीय कानून के मुताबिक कोई भी व्यक्ति यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाले की पहचान को उजागर नहीं कर सकता है.
शिकायतकर्ता ने कहा, ‘सीसीटीवी वीडियो से पता चलता है कि मैंने उत्तरी गेट पर पुलिस से संपर्क किया. ये हास्यास्पद है. अगर ग्राउंड फ्लोर की सीसीटीवी इमेज भी जारी की जाए तो उसमें दिखेगा कि मैं रो रही हूं. मैं एक आम नागरिक हूं और वे राज्यपाल हैं. उन्हें पुलिस को जांच करने की अनुमति देनी चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘अगर वह निर्दोष थे, तो उन्होंने पुलिस जांच की अनुमति दी होती. मैं लाई-डिटेक्टर जैसे किसी भी तरह के परीक्षण का सामना करने के लिए तैयार हूं.’
राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि राज्यपाल ने ‘अप्रासंगिक फुटेज’ साझा किया है.
राज्य की वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल की आबादी 10 करोड़ से अधिक है. फुटेज को केवल 100 लोगों के साथ साझा किया गया था. लेकिन उन्होंने इसे पुलिस के साथ साझा करने से इनकार कर दिया है. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि महिला उत्तरी गेट पर पुलिस के पास पहुंची. यह कितना प्रासंगिक है? वह पहले ही कह चुकी है कि उसने पुलिस से संपर्क किया जिसने शिकायत दर्ज करने में उसकी मदद की.’