संभल संसदीय क्षेत्र में प्रशासन के ‘निष्पक्ष चुनाव’ के दावे पर स्थानीय लोगों ने बयान किया दर्द

उत्तर प्रदेश के संभल लोकसभा क्षेत्र के निवासियों और समाजवादी पार्टी का कहना है कि मुस्लिम मतदाताओं को वोट डालने से रोका गया और उनके साथ बदसलूकी की गई. कई मतदाताओं के साथ पुलिस की मारपीट की वीडियो भी सामने आयी हैं.

संभल में चोट के निशान दिखाते लोग. (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: ‘इस बार लोकसभा चुनाव के दिन सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम थे. लोग गर्मी के बावजूद घरों से मतदान के लिए भारी संख्या में निकले थे. इसके बाद जो बवाल हुआ, वो निश्चित ही एक लोकतंत्र के लिए कलंक से कम नहीं है.’

ये बातें उत्तर प्रदेश के संभल लोकसभा क्षेत्र के एक स्थानीय पत्रकार की हैं. उन्होंने मंगलवार (7 मई) को इस निर्वाचन क्षेत्र के कई मुस्लिम बहुल इलाकों से मतदाताओं को परेशान करने की खबरों पर निराशा व्यक्त करते हुए बताया कि पुलिस-प्रशासन और आम लोगों के दावे अलग-अलग हैं, लेकिन शर्मिंदा हर हाल में लोकतंत्र ही हुआ है. हालांकि पुलिस की कार्रवाई के बाद भी गांव के लोगों ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

मालूम हो कि लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 7 मई को हुए मतदान के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल के कई मुस्लिम बहुल इलाकों से मतदाताओं को परेशान करने की खबरें सामने आईं थीं. स्थानीय लोगों और प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) ने आरोप लगाया था कि मुस्लिम मतदाताओं को वोट डालने से रोका गया या उनके साथ बदसलूकी की गई. पुलिस के कई मतदाताओं के साथ मारपीट की वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी.

‘इंडिया’ गठबंधन से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ज़ियाउर्रहमान बर्क़ ने भी प्रशासन पर आरोप लगाया था कि बेवजह मुस्लिम मतदाताओं पर सख्ती बरती गई. उन्होंने मतदान वाले दिन ही सोशल मीडिया पर कई ट्वीट किए और कहा कि पुलिस ने उन इलाकों में चुन-चुनकर सख़्ती की है जहां उनके समर्थन में मतदान हो रहा था.

स्थानीय निवासियों का क्या कहना है?

शहर से करीब बीस किलोमीटर दूर असमोली थाना क्षेत्र के शहबाज़पुर गांव में भी मुस्लिम मतदाताओं के साथ मारपीट के वीडियो सामने आए थे. यहां के स्थानीय निवासियों ने द वायर को बताया कि पुलिस ने यहां मतदाताओं पर लाठीचार्ज किया. इतना ही नहीं पुलिस कुछ लोगों को वीडियो बनाने के आरोप में पकड़कर थाने भी ले गई.

एक स्थानीय फूलजहां के देवर साज़िद को भी पुलिस शाम करीब चार बजे वीडियो बनाने के आरोप में थाने लेकर गई थी. उन्हें रात भर थाने में ही रखा गया और अगल रोज़ छोड़ा गया.

फूलजहां द वायर को बताती हैं कि पुलिस ने उनके घर का दरवाज़ा तक तोड़ दिया था. करीब 50 की संख्या में भारी पुलिस फोर्स उनके देवर साज़िद को वीडियो बनाने के आरोप में उठाकर ले गई थी. जबकि साजिद के पास उस समय कोई फोन तक नहीं था. वो केवल पूलिंग बूथ पर हो-हल्ला सुनकर छत से यह देखने गए थे कि वहां क्या हो रहा है.

फूलजहां कहती हैं, ‘मेरे देवर के शरीर पर अभी तक चोट के निशान हैं. वो लोग क्यों उठाकर लेकर गए ये हमें समझ ही नहीं आ रहा था. शायद हम मुस्लिम थे, इसलिए. लेकिन वोट डालना तो सबका हक़ है, फिर हिंदू हो या मुसलमान. पुलिस ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया हमें नहीं पता.’

शहबाज़पुर में एक स्कूल को मतदान केंद्र बनाया गया था, जिसके आस-पास कई घर हैं. वहां रहने वाले लोगों ने पुलिस पर बेवजह मारपीट और धमकाने के आरोप लगाए. उनकी मानें, तो पुलिस ने यहां मुस्लिम लोगों को जान-बूझकर मतदान करने से रोकने के लिए ये सब किया.

ओवरी की भी यही कहानी

यहां के दूसरे मुस्लिम बहुल गांव ओवरी की भी यही कहानी है. ओवरी में मतदान शुरू होते ही बूथ पर लाइन तो लग गई थी. लेकिन कई लोगों को अपने मत देने की कीमत भी चुकानी पड़ी. लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने जबरन मतदान केंद्र पर अफरा-तफरी का माहौल बनाकर लोगों को वहां से खदेड़ दिया.

70 वर्षीय बानो, जो जूनियर स्कूल से अपना वोट डालकर बाहर निकल रही थीं. उनका आरोप है कि पुलिस ने उन पर भी लाठीचार्ज किया. पुलिस ने वहां मौजूद सभी मतदाताओं को मतदान केंद्र के बाहर बेरहमी से पीटा, जिसमें कई लोगों को चोट भी आई है.

बानो के बेटे यूनुस ने द वायर को बताया कि उनकी बूढ़ी मां पर पुलिस ने बेवजह लाठी चलाई गई. वहां कई लोगों को मारा-पीटा गया, जिसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हैं.

यूनुस का कहना है, ‘जिस फर्जी मतदान का पुलिस आरोप लगा रही है, अव्वल तो उसकी गुंजाइश ही नहीं थी, क्योंकि सुरक्षा पहले से ही टाइट थी. दूसरा अगर कुछ संदिग्ध भी था, तो पुलिस सभी के दस्तावेज़ देखकर फर्जी लोगों को बाहर निकाल देती. लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं किया गया. सभी को एक साथ निशाना बनाया गया.’

इसी गांव के इस्सर मलिक कहते हैं कि पुलिस ने गांव की जामा मस्जिद चौक से लेकर जूनियर स्कूल पोलिंग बूथ तक लाठीचार्ज किया था. यहां दो बार पुलिस आई थी, एक बार करीब 10.30 बजे तो वहीं दूसरी बार 3 बजे.

इस्सर मलिक की भी शिकायत है कि पुलिस ने बिना दस्तावेज़ जांचे, एक भी फर्जी वोटर को पकड़े, एकदम से लाठीचार्ज कैसे कर दिया.

इस्सर इसकी पीछे की वजह की ओर इशारा करते हुए आरोप लगाते हैं कि पुलिस जानती थी कि यहां समाजवादी पार्टी के ज्यादा समर्थक हैं. इसलिए उनके अंदर डर पैदा करने की कोशिश की जा रही थी.

इस गांव के अन्य कई निवासियों ने भी आरोप लगाया कि पुलिस ने उनकी लाठियों से पिटाई की. कई लोगों के जिस्म पर चोटों के निशान भी नज़र आए. इस गांव के प्राथमिक स्कूल का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, जिसमें मतदाताओं की भीड़ बूथ से भागते हुए दिखाई दे रही थी और उनके पीछे पुलिसकर्मी भी थे.

ओवरी गांव के ही एक अन्य वीडियो में एक घायल बुजुर्ग सड़क पर पड़े दिखाई दिए थे और उनके पीछे कुछ पुलिसकर्मी भी खड़े नजर आए थे. इन बुजुर्ग की उम्र क़रीब 80 साल की बताई जा रही है. एक स्थानीय ने बताया कि इन बुजुर्ग का नाम रईस अहमद है, जिनके पूरे परिवार को उस दिन पुलिस ने पीटा था.

रईस अहमद के परिवार से मोहम्मद सलीम ने द वायर को बताया कि रईस के छोटे बेटे मोहम्मद आलम प्रादेशिक आर्म्‍ड कांस्टेबुलरी (पीएसी) में सिपाही हैं, मतदान वाले दिन वे छुट्टी लेकर वोट डालने आए थे. लेकिन पुलिस द्वारा उनकी भी पिटाई की गई. आलम के बड़े भाई मोहम्मद मुस्तकीम को तो पुलिस अपने साथ गाड़ी में बिठाकर थाने तक ले गई थी. यहां तक की उनके घर की महिलाओं तक को भी पीटा गया और वोट नहीं डालने दिया गया.

मोहम्मद सलीम कहते हैं, ‘मुस्तकीम भाई को पुलिस थाने के बाद कहीं और ले गई, जहां उनसे जबरन वीडियो में बयान रिकार्ड करवाया गया. उन्होंने पुलिस के दबाव में कहा कि उनके पिता को पुलिस ने नहीं मारा, जबकि ये सच्चाई नहीं थी. उन्हें इसके लिए मारा-पीटा भी गया.’

ज्ञात हो कि संभल भारत की उन चुनिंदा सीटों में शामिल है जहां मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी-खासी आबादी है और वो यहां निर्णायक संख्या में हैं. ऐसे में संभल में हुए इस घटनाक्रम की पूरे देश में चर्चा है. विपक्ष के साथ-साथ आम लोग भी पुलिस और प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं.

पुलिस प्रशासन का क्या कहना है?

मतदाताओं और नेताओं के आरोपों को संभल के पुलिस प्रशासन ने खारिज किया है. सोशल मीडिया मंच एक्स पर जारी एक बयान में पुलिस की तरफ से कहा गया कि मतदान के दौरान शांति भंग करने वाले करीब पचास लोगों को अलग-अलग जगहों से हिरासत में लिया गया था.

पुलिस अपने बयान में शांति और निष्पक्ष चुनाव की बात कर रही है, जिसे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी दोहरा रही है. पार्टी के जिलाध्यक्ष चौधरी हरेंद्र सिंह ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा कि पुलिस ने सिर्फ़ उन स्थानों पर सख्ती की है जहां फर्ज़ी मतदान की कोशिश की जा रही थी. बाकी मतदान बिल्कुल निष्पक्ष हुआ है.

मतदान वाले दिन ही संभल की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनुकृति के मतदान बूथ का एक वीडियो भी शेयर किया जा रहा था जिसमें वो पुलिसकर्मियों को किसी भी मतदाता को बेवजह परेशानी नहीं होने देने की बात करती दिखाई दे रही थीं. वो वीडियो में ये भी कहती नज़र आईं कि मतदाताओं का आधार कार्ड चेक करना उनका नहीं, मतदान कराने आई टीम का काम है.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में पहले दो चरणों के चुनाव के तहत भी कई मुसलमान बहुल क्षेत्रों जैसे, रामपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, मेरठ में मतदान हुआ था. तब मथुरा और अन्य कुछ जगहों पर भी मुस्लिम मतदाताओं को मतदान से वंचित करने का आरोप लगा था. लेकिन तीसरे चरण में संभल का चुनाव राष्ट्रीय सुर्खी तो बना ही साथ ही यहां की पुलिस और प्रशासन को लेकर कई गंभीर सवाल भी खड़े कर गया.

चुनाव आयोग के मुताबिक, संभल में इस बार 62.81 प्रतिशत मतदान हुआ है जो कि पिछली बार के 64.71 प्रतिशत हुए मतदान से कुछ ही कम है. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में यहां समाजवादी पार्टी के शफीकुर्रहमान बर्क ने जीत हासिल की थी. इस साल फरवरी में उनके निधन के बाद पार्टी ने उनके पोते जियाउर्रहमान बर्क को इस सीट की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

बहरहाल, पक्ष-विपक्ष के आरोपों के बीच संभल का चुनाव अगले चार चरणों के बचे चुनावों के लिए एक सबक जरूर बन गया है.