नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शनिवार को घोषणा की कि अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आया तो विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों द्वारा दर्ज मामले वापस लिए जाएंगे.
द टेलीग्राफ के मुताबिक, खरगे ने पटना में संवाददाताओं से कहा, ‘हम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई, आयकर विभाग (आईटी) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा दर्ज किए गए मामलों को निश्चित रूप से वापस लेंगे क्योंकि ये मामले कानूनी कार्रवाई के परिणामस्वरूप लोगों के खिलाफ दर्ज नहीं किए गए हैं, बल्कि उन्हें परेशान और उत्पीड़ित करने के इरादे से या चुनावों को बाधित करने के लिए लगाए गए हैं. हम सत्ता में आने के बाद ऐसा करेंगे.’
खरगे ने आगे कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने पिछले 10 साल विकास में ध्यान लगाने के बजाय विपक्षी नेताओं को परेशान करने में बिताए हैं.’
हालांकि, कांग्रेस प्रमुख ने स्पष्ट किया कि गठबंधन सरकार मौजूदा कानूनों की भावना के तहत केंद्रीय एजेंसियों द्वारा उचित रूप से दर्ज किए गए मामलों को वापस नहीं लेगी.
गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में पूछे जाने पर खरगे ने कहा कि लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद सभी सदस्य दलों के नेता एक साथ बैठेंगे और इस बारे में फैसला करेंगे.
बता दें कि खरगे बिहार के समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर में 13 मई को होने वाले मतदान के संबंध में रैलियों को संबोधित करने से पहले पटना में पत्रकारों से बात कर रहे थे. यह दो लोकसभा क्षेत्र उन 9 सीटों में शामिल हैं जिन पर कांग्रेस बिहार में चुनाव लड़ रही है.
हालांकि, खरगे ने इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं दिया कि क्या उनकी पार्टी धर्म के आधार पर आरक्षण देगी.
खरगे ने कहा कि इस बार मोदी के लिए सरकार बनाना कठिन होगा क्योंकि बेरोजगारी और महंगाई के कारण जनता भाजपा से नाराज है.
बता दें कि केंद्रीय जांच एजेंसियां देश भर में विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई करने में बीते कुछ समय से काफी सक्रिय रही हैं. इन नेताओं में आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के. कविता, आप के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के नाम प्रमुख तौर पर शामिल हैं.
लगातार ऐसे भी आरोप लगते रहे हैं कि बीते कुछ वर्षों में जितने भी बड़े नेता कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं, उनमें से अधिकांश पर केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा दर्ज किए गए मामलों का दबाव था.