नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सुरक्षा बलों द्वारा 12 कथित माओवादियों को मारे जाने के दो दिन बाद ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं ने रविवार (12 मई) को कहा कि मारे गए लोग नक्सली नहीं बल्कि स्थानीय निवासी थे.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजापुर जिला कलेक्ट्रेट के बाहर शवों की मांग के लिए एकत्र हुए ग्रामीणों ने बताया कि उनके परिवार वालों को सुरक्षाबलों ने ‘फर्जी मुठभेड़’ में मार दिया है.
पुलिस ने इन दावों का खंडन किया है. अधिकारियों का दावा है कि मुठभेड़ में माओवादी ही मारे गए हैं, उन्होंने जंगल में पुलिस को देखकर स्थानीय लोगों जैसे कपड़े पहन लिए थे.
ग्रामीणों के दावे
ग्रामीणों का आरोप है कि सुरक्षाबलों ने इलाके के निवासियों को मारा है और मुठभेड़ फर्जी थी.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मुठभेड़ के चश्मदीद पीडिया गांव के निवासी गुरुनंदा ने बताया कि कुछ ग्रामीण जंगल से तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे और तभी सुरक्षा बल वाले उनकी ओर बढ़े. ये देखकर ग्रामीण भागने लगे. गुरुनंदा ने आरोप लगाया है कि जब ग्रामीण डर से भाग रहे थे, तभी उन्हें गोली मार दी.
कोरचुली गांव के एक अन्य ग्रामीण राजू ने कहा कि वे अपने रिश्तेदारों के शव लेने आए हैं. राजू ने बताया, ‘मारा गया लालू कुंजाम माओवादी नहीं बल्कि किसान था. वह पुलिस को देखकर भाग रहा था, तभी उसे गोली मार दी गई.’
पीडिया गांव के राकेश आल्वम ने बताया कि उनके छोटे भाई मोटो आल्वम को गोली लगी है, वह जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ ने गए थे.
उन्होंने कहा, ‘पुलिस ने पीडिया गांव और इतावर गांव की घेराबंदी कर दी है. मेरा भाई जंगल में पत्तियां तोड़ रहा था, तभी पुलिस द्वारा चलाई गई गोली से घायल हो गया. मुठभेड़ में मारे गए सभी लोग ग्रामीण थे, उन्हें इन्हीं दो गांवों से उठाकर मार दिया गया.’
राकेश आल्वम ने बीजापुर पुलिस द्वारा जारी एक प्रेस नोट में भी मृतकों की पहचान की और कहा कि सभी इटावर और पीडिया गांव के निवासी थे.
पुलिस का बयान
शुक्रवार (10 मई) को सुरक्षा बलों ने दावा किया कि उन्होंने प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) संगठन की सैन्य कंपनी नंबर दो के सदस्य बुधु ओयम और कल्लू पुनेम सहित 12 माओवादियों को मार गिराया है. बुधु ओयम और कल्लू पुनेम पर 8-8 लाख रुपये का इनाम था.
अधिकारियों ने आगे बताया कि मुठभेड़ में मारे गए अन्य लोगों में माओवादियों के गंगालूर क्षेत्र समिति के सदस्य लाखे कुंजम और सैन्य प्लाटून नंबर 12 के सदस्य भीमा करम शामिल थे. दोनों के सिर पर 5-5 लाख रुपये का इनाम था.
बीजापुर जिले के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र यादव ने दावा किया कि मृतकों में प्लाटून कमांडर सन्नू लकोम और जनताना सरकार के उपाध्यक्ष अवलाम पर दो-दो लाख रुपये का इनाम घोषित गया था.
सामाजिक कार्यकर्ता अदालत जाएंगे
इस बीच, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि वे कानूनी कार्रवाई करेंगे.
राज्य के बस्तर क्षेत्र में काम करने वाली आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी के अनुसार, ‘पुलिस ने निर्दोष ग्रामीणों को मार दिया है. मुठभेड़ पूरी तरह से फर्जी थी. मारे गए लोगों में वे ग्रामीण भी शामिल हैं जो जंगल में तेंदूपत्ते तोड़ रहे थे. पुलिस को देखते ही वे भागने लगे और जवानों ने उन्हें गोली मार दी. मैंने मृतकों के परिवार के कुछ सदस्यों से बात की है, उन्होंने मुझे बताया कि कुछ ग्रामीणों को उनके घरों से उठा लिया गया और जंगल में मार दिया गया.’
सोरी ने आगे जोड़ा, ‘हम उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे क्योंकि पुलिस ने निर्दोष ग्रामीणों को मार दिया है.’
दूसरी तरफ पुलिस अपने इस रुख पर कायम है कि मारे गए लोग माओवादी थे.
दक्षिण बस्तर क्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक कमलोचन कश्यप ने दावा किया, ‘उन्होंने कपड़े बदले और ग्रामीणों के साथ घुलमिल गए. मारे गए सभी लोग माओवादी थे, ग्रामीण नहीं. ग्रामीण अपने माओवादी रिश्तेदारों के शवों को लेने आए थे.’