नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के ग्रामीणों का कहना है कि पिछले हफ्ते सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए लोग ‘नक्सली’ नहीं थे, बल्कि घटनास्थल के समीप दो गांवों के निवासी थे.
रविवार को बीजापुर जिला मुख्यालय के बाहर ग्रामीणों ने प्रतिरोध प्रदर्शन किया कि उनके परिवार वालों को सुरक्षाबलों ने ‘फर्जी मुठभेड़’ में मार दिया है. वहीं पुलिस का कहना है कि शुक्रवार दस मई को हुई मुठभेड़ में मारे गए सभी व्यक्ति माओवादी थे.
बीजापुर पुलिस ने एक सूची भी जारी की है जिसमें सभी मृतकों के नाम के साथ कथित तौर पर माओवादी संगठन में उनके पद और उनके ऊपर घोषित इनाम राशि का भी जिक्र है. पुलिस के अनुसार मृतकों के नाम हैं-
- बुधु ओयाम, मिलिट्री कंपनी नंबर 2 सदस्य, इनाम राशि 8 लाख रुपये
- कल्लू पूनेम, मिलिट्री कंपनी नंबर 2 सदस्य, इनाम राशि 8 लाख रुपये
- लक्खे कुंजाम, सदस्य गंगालूर एरिया कमेटी, इनाम राशि 5 लाख रुपये
- भीमा कारम, मिलिट्री प्लाटून नंबर 12 सदस्य, इनाम राशि 5 लाख रुपये
- सन्नू लकोम, मिलिशिया प्लाटून कमांडर, इनाम राशि 2 लाख रुपये
- सुखराम अवलम, जनताना सरकार, (आरपीसी) उपाध्यक्ष, पीडिया, इनाम राशि 2 लाख रुपये.
इनके अलावा छह अन्य मृतकों को पुलिस की सूची मिलिशिया सदस्य घोषित करती है- चैतु कुंजाम, सन्नू अवलम, सुनीता कुंजाम, जागे बरसी, भीमा ओयाम और दुला तामो.
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गौरतलब है कि मिलिशिया सदस्य सीपीआई (माओवादी) के सक्रिय सदस्य नहीं होते. ये वे ग्रामीण हैं, जो नक्सलियों की थोड़ी-बहुत मदद इत्यादि कर दिया करते हैं. जब पुलिस को किसी को नक्सली साबित करना होता है, वह उसे मिलिशिया घोषित कर देती है.
मृतकों के परिजनों का कहना है कि मारे गए 12 में से 10 लोग पीडिया और ईतावर गांव के निवासी थे. उनका माओवादियों से कोई संबंध नहीं था. वे खेती-किसानी करते थे.
पुलिस की सूची में बाकी दो नामों पर ग्रामीणों ने अनभिज्ञता जाहिर की है.
इस सूची में एक नाम को ग्रामीणों ने प्रश्नांकित भी किया है कि जिसे पुलिस भीमा कारम कह रही है, वह दरअसल छोटू नाम का व्यक्ति था.
द वायर ने इस सिलसिले में कई स्थानीय निवासियों से बात की है.
उनका कहना है कि दस मई की सुबह पुलिस और माओवादियों के बीच पीडिया के जंगल में मुठभेड़ हुई थी, जिसमें दो कथित माओवादी मारे गए थे. गंगालूर थाना क्षेत्र में आने वाला पीडिया बीजापुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दक्षिण में है.
ग्रामीणों ने बताया कि इस मुठभेड़ के कुछ घंटे बाद जब सुरक्षाबल वापस लौट रहे थे उन्होंने कुछ आदिवासियों को देखा जो जंगल में तेंदूपत्ता एकत्र करने आए थे. गांववालों के अनुसार, ‘पुलिस उन्हें दौड़ाकर नाले की ओर ले गई जहां उन पर गोलीबारी की गई.’
द वायर ने बस्तर-केंद्रित ख़बरों के लिए चर्चित ‘बस्तर टाकीज’ के संपादक विकास तिवारी से बात की जो इस घटना के तुरंत बाद घटनास्थल पर गए थे. उनके मुताबिक, ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि ‘लगभग सभी मृतक पीडिया और ईतावर गांव के निवासी हैं. गांव वालों ने दो को छोड़कर सभी मृतकों की पहचान कर ली है… उन्होंने उनमें से किसी के भी माओवादी होने के दावे को सिरे से खारिज किया.’
पीडिया के निवासी राकेश अवलम ने विकास तिवारी से कहा, ‘गांव के लोग तेंदूपत्ता तोड़ने के लिए जंगल गए हुए थे, तभी पुलिस ने इलाके को चारों ओर से घेर लिया और गोलीबारी शुरू कर दी. कई लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए. घायल में से एक राकेश का 15 साल का भाई मोटू अवलम हैं, जिसके पैर में तीन गोली लगी हैं. लेकिन उनके परिजन उनको अस्पताल नहीं ले जा रहे हैं. उनका कहना है कि ‘अस्पताल ले जाने पर पुलिस उसे माओवादी बताकर गिरफ्तार कर लेगी.’
राकेश आगे बताते हैं कि पुलिस ने गोलीबारी के बाद पीडिया गांव से 74 तथा ईतावर गांव से 29 लोगों को हिरासत में लिया है.
विकास तिवारी ने पुलिसिया कार्रवाई पर संदेह जाहिर करते हुए कहा, ‘पुलिस ने कहा है कि घटनास्थल पर सौ से डेढ़ सौ सशस्त्र माओवादी मौजूद थे. उनमें चैतू नामक माओवादी भी था. चैतू बड़ा नाम है. अगर चैतू वहां मौजूद था तो उसके इर्द-गिर्द ऑटोमैटिक हथियार वाले माओवादी ही होंगे, लेकिन सिर्फ कुछ बंदूकें ही जब्त हुई हैं.’
उन्होंने यह भी बताया कि ‘नाले के पास खून से सने कुछ कपड़े पड़े थे, जो गांववालों के थे. कुछ चप्पलें थीं, जो गांववाले पहनते हैं. माओवादी उस तरह की चप्पल और कपड़े नहीं पहनते.’
पुलिस की सूची में सन्नू अवलम नामक व्यक्ति भी है. ग्रामीणों का कहना है कि उसे पुलिस गिरफ्तार कर ले गई थी, और उसके मारे जाने की जानकारी उन्हें पुलिस द्वारा जारी प्रेस नोट के जरिये मिली. गांववालों का कहना है कि वह व्यक्ति ठीक से बोल-सुन नहीं सकता था. पुलिस ने उन्हें पहले भी तीन बार पकड़ा था, लेकिन ठीक से न बोलने सुनने के कारण छोड़ दिया गया था.
उधर, बीजापुर के एसपी जितेंद्र यादव का कहना है, ‘ग्रामीणों का दावा नक्सली प्रोपगैंडा है. मुठभेड़ में नक्सलियों को जो नुकसान हुआ है, वे इसे उजागर नहीं करना चाहते, इसलिए गांववालों का सहारा ले रहे हैं.’
पुलिस ने यह भी दावा किया है कि मारे गए माओवादियों की शिनाख्त उनके ही एक साथी ने की है जो घटना के दौरान गिरफ्तार हुआ था. बीजापुर पुलिस ने इस कथित नक्सली से पूछताछ की रिकॉर्डिंग भी स्थानीय पत्रकारों को जारी की है.
द वायर ने बीजापुर के एसपी जितेंद्र यादव से संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
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बीजापुर के पत्रकार गणेश मिश्रा ने द वायर को बताया कि वे घटनास्थल पर गए थे. ‘यह पक्का है कि नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई थी और कुछ माओवादी मारे गए थे… लेकिन यह भी लग रहा था कि मुठभेड़ में निर्दोष गांव वालों की भी मौत हुई है,’ गणेश मिश्रा ने कहा.
दिलचस्प है कि पश्चिम बस्तर डिवीजन कमेटी, माकपा (माओवादी) के सचिव मोहन ने एक प्रेस रिलीज़ जारी कर कहा है कि पुनेम कल्लू और उईका बुधु पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी) के सदस्य थे, जबकि बाकी मृतक निर्दोष आदिवासी थे.
स्थानीय सीपीआई नेता कमलेश झाड़ी ने द वायर से कहा, ‘गांववाले तेंदूपत्ता तोड़ने जंगल गए रहते हैं, और पुलिस को देखकर भागने लगते हैं. उन्हें भागता देख पुलिस उन पर माओवादी होने के शक में गोली चला देती है. जब पता चलता है कि वे गांववाले थे, तब पुलिस झूठे हथियार दिखाकर और गलत साक्ष्य जुटाकर खुद को बचाने के लिए उन्हें माओवादी बता देती है.’
उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद से नक्सल-विरोधी अभियान में काफी तेजी आई है. सरकारी आकड़ों के अनुसार इस वर्ष अभी तक 103 ‘माओवादी’ मारे जा चुके हैं. पिछले साल यह आंकड़ा 30 था. साल 2019 के बाद से यह आंकड़ा सबसे अधिक है.
पुलिस की ताजा विज्ञप्ति के अनुसार जनवरी 2024 से लेकर अब तक बीजापुर में कुल 180 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 76 नक्सलियों ने समर्पण किया है.
यह घटना अकेली नहीं है. बस्तर का इतिहास ऐसी तमाम त्रासदियों ने रचा है जब बेगुनाह आदिवासी सुरक्षा बलों की गोलियों के निशाने पर आ गए.
बीजापुर के एड्समेट्टा गांव में मई 2013 में तकरीबन 1,000 सुरक्षाबलों ने ‘बीज पंडुम’ पर्व मना रहे आदिवासियों पर गोली चला दी थी, जिसमें 8 आदिवासी मारे गए थे. सुरक्षाबलों ने कहा था कि ये सभी माओवादी थे और यह कार्रवाई उन्होंने माओवादियों द्वारा की गई गोलीबारी के जवाब में की थी. लेकिन हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की जांच में सामने आया था कि यह एनकाउंटर फ़र्ज़ी था और एक भी मृतक माओवादी नहीं था.
एक अन्य मामले में बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में सुरक्षाबलों द्वारा जून 2012 में 6 नाबालिग समेत 17 लोगों की हत्या कर दी गई थी. 28 जून की रात आदिवासी किसी पर्व के लिए एकत्र हुए थे. सुरक्षाबलों ने उसे नक्सलियों की बैठक समझ कर फायरिंग शुरू कर दी. जांच में सामने आया था कि एक भी मृतक नक्सली नहीं था.
(श्रुति शर्मा मीडिया की छात्रा है और द वायर में इंटर्नशिप कर रही हैं.)