नई दिल्ली: प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर (जेआईजेके) चुनाव लड़ना चाहता है. साल 2019 में जेआईजेके पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंधित लगा दिया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, 15 मई को श्रीनगर लोकसभा क्षेत्र में मतदान करने वाले जेआईजेके के पूर्व प्रमुख गुलाम कादिर वानी ने कहा है, ‘हमने किसी चुनाव का बहिष्कार नहीं किया. हम कश्मीर की स्थिति के कारण चुनाव से दूर रहे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम केंद्र के साथ बातचीत कर रहे हैं. अगर जमात पर से प्रतिबंध हटाया जाता है तो हम चुनाव (आगामी विधानसभा) में हिस्सा लेंगे.’
जेआईजेके कैडर आधारित संगठन है. इसे कश्मीर के सबसे बड़े उग्रवादी समूह हिजबुल मुजाहिदीन का वैचारिक स्रोत भी माना जाता है.
ज्ञात हो कि 2019 में दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवादी हमले के दो सप्ताह बाद 28 फरवरी, 2019 को जेआईजेके पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. पुलवामा में 40 से अधिक जवान मारे गए थे और चार दर्जन से अधिक जवान घायल हुए थे.
वानी ने दावा किया है कि चुनाव लड़ने का फैसला समूह की मजलिस-ए-शौरा (जमात में निर्णय लेने वाली इकाई) की एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद लिया गया. उन्होंने कहा, ‘अगर जमात पर प्रतिबंध हटा लिया जाता है तो हम लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
जमात ने ‘बयान जारी’ कर वानी के दावे को किया खारिज
सोशल मीडिया पर जमात-ए-इस्लामी जम्मू एवं कश्मीर की एक प्रेस विज्ञप्ति शेयर की जा रही है, जिसमें वानी के इस दावे को खारिज कर दिया गया कि चुनाव पर फैसला मजलिस-ए-शौरा की बैठक के बाद लिया गया था.
उर्दू में जारी विज्ञप्ति में लिखा है, ‘वानी ने जो भी कहा है वह उनकी निजी राय है.’
द वायर इस प्रतिबंधित संगठन के श्रीनगर स्थित प्रवक्ता द्वारा जारी किए गए बयान की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं कर सका है.
वानी की घोषणा गृह मंत्री अमित शाह की कश्मीर यात्रा से मेल खाती है, जो लोकसभा चुनाव के बीच गुरुवार (16 मई) को श्रीनगर पहुंचने वाले हैं. एक स्थानीय समाचार एजेंसी ने बताया कि शाह श्रीनगर में विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों से मिलने वाले हैं, जिसमें सिविल सोसाइटी के कुछ लोग, भाजपा कार्यकर्ता और एक्टिविस्ट शामिल हैं.
कुछ अपुष्ट खबरों में यह भी कहा गया है कि जमात के कुछ नेता भी शाह से मुलाकात कर सकते हैं. हालांकि, द वायर इन खबरों की तत्काल पुष्टि नहीं कर सका है.
उमर अब्दुल्ला ने की जमात से प्रतिबंध हटाने की मांग
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने वानी की घोषणा का स्वागत किया. उन्होंने गृह मंत्री से प्रतिबंध हटाकर जेआईजेके को आगामी विधानसभा चुनावों में भाग लेने देने का आग्रह किया है.
अब्दुल्ला ने कहा है, ‘उन्हें चुनाव में भाग लेने दीजिए. जमात ने चुनाव के समय जम्मू-कश्मीर में विभिन्न उम्मीदवारों और पार्टियों की मदद की है. अब यह बेहतर होगा कि संगठन दूसरों के बजाय अपने लिए काम करे.’
जम्मू और कश्मीर में जमात के लगभग 6,000 सदस्य हैं. 2019 से पहले भी इस संगठन पर दो बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है. पहली बार 1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने जमात पर प्रतिबंध लगाया था. दूसरी बार 1990 से 1995 तक कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह भड़कने के बाद संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया था.
2019 में संगठन को गैरकानूनी घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद जमात के खिलाफ छापे और गिरफ्तारियों मामले बढ़ गए थे.
केंद्र सरकार की कार्रवाई ने जमात की कमर तोड़ दी. संगठन पहले शिक्षा, राहत कार्य और अन्य सामाजिक मुद्दों सहित सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में शामिल था. प्रतिबंध के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा जमात द्वारा संचालित कई स्कूलों को बंद कर दिया गया था और संगठन के स्वामित्व वाली सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति आतंकवाद विरोधी कानून के तहत जब्त कर ली गई थी.
रिपोर्ट्स बताती हैं कि निवारक निरोध कानूनों के तहत शीर्ष नेताओं सहित 300 से अधिक जमात सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, केंद्र सरकार ने जमात को जम्मू-कश्मीर की समस्या का एक हिस्सा मानते हुए कार्रवाई की क्योंकि अतीत में संगठन ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार ‘कश्मीर समस्या’ के समाधान की वकालत की थी. वहीं कुछ अन्य विश्लेषकों का तर्क है कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर में जमात के प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया.
पहले भी चुनाव लड़ चुका है जमात
जमात, कश्मीर के सबसे पुराने राजनीतिक दलों में से एक है. इस संगठन के प्रेरणास्रोत ‘जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान’ के संस्थापक अबू आला मौदूदी हैं. जेआईजेके का अपना संविधान है, जिसे 1952 में तैयार किया गया था. संगठन 1965 से 1987 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़कर अपने ही संविधान का उल्लंघन कर चुका है.
डॉ. मंजूर अहमद ने अपने एक शोध पत्र में बताया है कि जमात के लिए चुनाव एक टूल था. संगठन ने चुनावों में इसलिए भाग लिया था ताकि वह अपने जनाधार को बढ़ा सके. इस्लामीकरण की अपनी योजना को पूरा कर सके.
अहमद का शोध पत्र मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस द्वारा 2021 में प्रकाशित किया गया था.
1972 के विधानसभा चुनाव में जमात अपने चरम पर था. उस चुनाव में जमात को पांच सीटों पर जीत मिली थी. चुने गए लोगों में अनुभवी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी भी शामिल थे. बाद के वर्षों में गिलानी ने जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य को बहुत प्रभावित किया. जमात पहले के चुनावों में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का समर्थन कर चुका था.
जमात में टूट की संभावना
मार्च 2020 में जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी बनी थी. भाजपा जम्मू की दो सीटों को छोड़कर कश्मीर में आम चुनाव नहीं लड़ रही. विपक्ष का आरोप है कि भाजपा ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी’ का समर्थन कर रही है.
सूत्रों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने भाजपा से मंजूरी मिलने पर जमात के नेताओं से संपर्क किया होगा ताकि उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके. इस साल फरवरी में बुखारी ने जमात के सदस्यों से राजनीति से दूर रहने और अपने धार्मिक कामों पर ध्यान देने की अपील की थी. पिछले साल अक्टूबर में जमात का एक प्रमुख सदस्य ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी’ में शामिल हो गया था.
विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले हफ्तों में जमात में टूट होने की संभावना है. जमात के प्रवक्ता द्वारा जारी असत्यापित प्रेस विज्ञप्ति जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े सामाजिक-राजनीतिक संगठनों में से एक पर संकट के बादल छाने के संकेत देता है.
विश्लेषकों का यह भी मानना है कि जमात पर से इतनी जल्दी प्रतिबंध हटाए जाने की संभावना नहीं है. संगठन पर इस साल फरवरी में ही पांच साल के लिए प्रतिबंध बढ़ाया गया था.