बाबरी विध्वंस: आज़ाद भारत का ख़त्म न होने वाला शर्मनाक अध्याय

इस अपराध की साज़िश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.

//
A make shift Ram temple comes up in place of Babri Masjid which was demolished by the Kar Sewaks a day before, Paramilitary force personal at the Make shift temple on 7th Dec 1992.

आख़िर दो दशक पहले मलबे में तब्दील कर दी गई मस्जिद से क्या दोहन किया जाना बचा रह गया है? इस अपराध की साज़िश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.

A make shift Ram temple comes up in place of Babri Masjid which was demolished by the Kar Sewaks a day before, Paramilitary force personal at the Make shift temple on 7th Dec 1992.
अयोध्या में छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस के अगले दिन तंबू में राम मंदिर की स्थापना कर दी गई. (फोटो: टी. नारायण)

(यह लेख मूल रूप से 7 दिसंबर 2017 को प्रकाशित हुआ था.)

भारत दुनिया का संभवतः एकमात्र एक ऐसा मुल्क है, जहां दिन-दहाड़े किया गया एक अपराध, जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग सबूत के तौर पर मौजूद है और जिसे अभियोजन पक्ष के द्वारा कोर्ट में पेश किया जा चुका है, पांच सदी पहले किए गए एक ऐसे काल्पनिक अतिक्रमण के सामने मामूली माना जाता है जिसका न कोई प्रत्यक्षदर्शी है और न जिसका कोई लिखित दस्तावेजी सबूत ही मिलता है.

6 दिसंबर, 1992 को आज केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता एक ऐतिहासिक इमारत जो भारतीय लोगों की पुरातात्विक विरासत का एक हिस्सा थी, को ध्वस्त करने के लिए एक सुनियोजित साजिश के तहत अयोध्या में जमा हुए.

इन नेताओं में आगे चलकर उप-प्रधानमंत्री बनने वाले एलके आडवाणी, जो अब पार्टी के प्रभावशाली गलियारे से बाहर हैं. उमा भारती, जो वर्तमान में नरेंद्र मोदी की सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं और कई छोटी-बड़ी हस्तियां शामिल थे.

16वीं शताब्दी के बाबरी मस्जिद के विध्वंस की पूर्वपीठिका में तौर पर भाजपा ने एक विषैला प्रोपगेंडा अभियान चलाया,जिसका मकसद एक हिंदू वोटबैंक का निर्माण करना था. इसने जिस रामजन्म भूमि आंदोलन की शुरुआत की, उसका मकसद मस्जिद की जगह एक राम मंदिर बनाना था.

इस आंदोलन की बुनियाद में तीन दावे थे. इन दावों के लिए न तो तथाकथित तौर पर हिंदू आस्था से चलने वाली किसी मुहिम में कोई जगह हो सकती थी और न ही क़ानून के शासन से चलने वाले किसी लोकतंत्र में.

इनमें से पहला दावा यह था कि जिस देवता को हिंदू सर्वत्र विद्यमान ईश्वर की तरह मानते हैं, वे वास्तव में एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे. दूसरा, जिनका जन्म उस जगह पर हुआ था जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी और तीसरा, इस मस्जिद को अगर जरूरत पड़े तो, बलपूर्वक हटाया जाना था, ताकि उस जगह पर एक भव्य मंदिर बनाया जा सके- उतना भव्य जितना वह कथित तौर पर बाबर द्वारा ध्वंस किये जाने से पहले था.

ये सब धर्मशास्त्र के हिसाब से (और ऐतिहासिक दृष्टि से भी) तो संदेहास्पद था ही, कानूनी कसौटी पर भी बेतुका था. संविधान के तहत चलने वाली कोई सरकार किसी समूह की आस्था पर आधारित मांग पर किसी व्यक्ति के अधिकार को छीन नहीं सकती है.

1987 में राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भड़के प्रतिक्रिवादी मुस्लिम उलेमाओं का समर्थन हासिल करने के लिए एक मुस्लिम महिला के अधिकार को रौंद डाला.

अन्याय के इस कृत्य को 32 सालों के बाद आखिरकार दुरुस्त किया गया, लेकिन बाबरी मस्जिद के ताले को खोलने के उनके (राजीव गांधी के) फैसले के साथ हिंदू कट्टरपंथियों के तुष्टिकरण का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज भी बेलगाम जारी है.

संघ परिवार के धर्मोन्मादियों के हाथों 27 साल पहले मस्जिद के ढहाए जाने के बावजूद न्यायालय को भी कानून के शासन की बहुत ज्यादा परवाह नहीं दिखती.

इस बात का अंदाजा लगाने के लिए कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस का उस समय क्या अर्थ था और आज इसका क्या अर्थ है, 2001 में अफगानिस्तान के बामियान में तालिबान के हाथों बुद्ध की मूर्तियों को नष्ट किये जाने पर उपजे अंतरराष्ट्रीय गुस्से को याद किया जा सकता है.

Bamiyan-Reuters
अफगानिस्तान के बामियान में ढहाए जाने से पहले बुद्ध की प्रतिमा और बाद की तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स)

संघ परिवार की ही तरह, जिनका यह कहना था कि अयोध्या में मस्जिद को देखकर उनका खून खौलता है, तालिबान ने यह ऐलान किया था कि उनका धर्म उन मूर्तियों के वहां खड़े रहने की इजाजत नहीं देता.

अफगानिस्तान में सदियों से बौद्धों का अस्तित्व नहीं रहा है लेकिन फिर भी न्याय के पक्ष में खड़ा हर अफगानी इस करतूत से चकित-व्यथित रह गया था. दुनिया भर में बाबरी मस्जिद जैसे ऐतिहासिक स्मारक के बर्बरतापूर्ण ध्वंस को युद्ध-अपराध की श्रेणी में रखा जाता है.

पिछले साल हेग में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने माली के टिम्बकटू के एक स्थानीय नेता को प्राचीन शहर के कुछ इमारतों को नष्ट करने के अपराध में जिसे वह गैर-इस्लामिक मानता था, सजा सुनाई थी.

2001 में एक टेलीविजन बहस के दौरान, जिसमें नरेंद्र मोदी भी एक प्रतिभागी थे- तब वे आरएसएस के एक प्रचारक मात्र थे- मैंने उनके इस दावे को चुनौती देने के लिए कि ‘सारे आतंकवादी मुस्लिम हैं’,हिंदू धर्मोन्मादियों के हाथों बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद हुई हत्याओं का हवाला दिया था. लेकिन उन्होंने यह तक स्वीकार नहीं किया कि मस्जिद का विध्वंस एक अपराध था.

मामले को लटकाए रखना सीबीआई की रणनीति

जिस अजीबोगरीब तरीके से सीबीआई इस आपराधिक मामले पर कार्रवाई कर रही है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब भी यह यकीन है कि इस विध्वंस में लिए किसी को भी सजा देने की जरूरत नहीं है.

सभी अहम चश्मदीदों से ट्रायल कोर्ट में पूछताछ की जा चुकी है और मुख्य आरोपी को दोषी साबित करने के लिए सबूत के तौर पर काफी वीडियो फुटेज भी मौजूद है. लेकिन, बावजूद इसके सीबीआई ट्रायल कोर्ट के सामने आरोपों को साबित करने के लिए और गवाहों से पूछताछ का बहाना बनाकर, मामले को लटकाए हुए है.

अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी के नेतृत्व वाली एनडीए की पहली सरकार ने इस केस को रफा-दफा करने का पूरा इंतजाम कर दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में संघ के शीर्ष नेताओं के खिलाफ आपराधिक आरोपों को फिर से बहाल करने के फैसले और ट्रायल कोर्ट द्वारा हर दिन सुनवाई करने का आदेश के बाद भाजपा की रणनीति इस मामले को जानबूझकर लटकाए रखने और विध्वंस के मुकदमे के कभी न खत्म होने वाली कयावद बनाकर रखने की हो गई है.

सीबीआई की इस मामले में कछुआ चाल से चलने की रणनीति वाईसी मोदी द्वारा बनाई गई थी. वाईसी मोदी प्रधानमंत्री के करीबी पुलिस अधिकारी हैं और अब उन्हें ईनाम के तौर पर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) का दायित्व सौंप दिया गया है.

अब जब गुजरात के पुलिस अधिकारी राकेश अस्थाना विशेष निदेशक हैं, वाईसी मोदी की अतिरिक्त गवाहों के सहारे, जिनमें से कईयों के अभियोजन पक्ष के केस में मदद पहुंचाने की भी उम्मीद नहीं की जा सकती, मुकदमे को बोझिल करने की तरकीब से इस मामले को अनिश्चित काल मे लिए लटकाया जा सकेगा.

आंखों में धूल झोंकने का यह काम तब तक चलता रहेगा, जब तक सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप करते हुए इस खेल का अंत न कर दे.

जाहिर तौर पर भाजपा की उम्मीद टाइटल सूट पर रामजन्मभूमि कैंप के पक्ष में फैसले या बलपूर्वक मध्यस्थता पर टिकी है जिसमें सरकार की पूरी ताकत मुस्लिम पक्ष के खिलाफ झोंक दी जाएगी. ऐसी सूरत में विध्वंस का मुकदमा महत्वहीन हो जाएगा. और कुछ नहीं तो इससे यह तो होगा कि अगर अंततः इसके नेता दोषी करार दिए जाते हैं, तो यह उस दाग को कम कर देगा या धो देगा.

चूंकि प्रदर्शन के नाम पर मतदाताओं को दिखाने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की यह ख्वाहिश होगी कि वे मतदाताओं का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए अयोध्या की पत्ती को अपने पास बचा कर रखें.

निश्चित तौर पर अयोध्या पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयानों और फैसलों से यह पता चलता है कि पार्टी एक निश्चित योजना पर काम कर रही है.

yogi ayodhya
अयोध्या के सरयू नटी तट पर पूजा करते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फाइल फोटो: पीटीआई)

अफगानिस्तान का इस्लामी गणतंत्र, जहां बौद्ध आबादी बिल्कुल नहीं है, जनता और सरकार की भावना बुद्ध की मूर्तियों कर पुनर्निर्माण के पक्ष में है. लेकिन भारत के धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र में, एक ऐसे देश में जहां 17 करोड़ मुसलमान आबादी है, बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण किसी के एजेंडे में ही नहीं है.

हमारी राजनीतिक बहस का स्तर इतना शर्मनाक हो गया है कि देश के दूसरे हिस्सों की इस्लामिक विरासतों, जिनमें ताजमहल भी शामिल है, पर भाजपा नेताओं द्वारा निशाना साधा जा रहा है.

आखिर 27 साल पहले मलबे में तब्दील कर दी गई मस्जिद से क्या दोहन किया जाना बचा रह गया है? इस अपराध की साजिश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.

मुस्लिमों को अलग-थलग करने और उन्हें खलनायक के तौर पर दिखाने का सिलसिला जारी है. साथ ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों को अंगूठा दिखाने का सिलसिला भी जारी है.

उस समय राज्य की संस्थाओं- पुलिस, अर्ध-सैनिक बलों, नौकरशाही और कोर्ट ने बहुसंख्यवादी हिंसा के खिलाफ घुटने टेक दिए थे. आज तो उनके द्वारा प्रतिरोध करने की संभावना और कम रह गई है.

सवाल है कि आखिर शर्म का यह अध्याय किस तरह से समाप्त होगा? ऐसी सूरत तभी बनेगी, जब भारत के नागरिक, जिनमें राजनेताओं ने बड़ी चतुराई से नागरिक की जगह महज हिंदू होने का भाव भर दिया है, वे फिर अपने भारतीय नागरिक होने पर गर्व करना शुरू कर देंगे.

जब वे गणतंत्र और इसके आदर्शों- न्याय, स्वतंत्रता, स्वतंत्रता और भाईचारे को संघ परिवार और इसके वंशजों के हाथों से छुड़ाने और उस पर फिर से हासिल करने की पहल करेंगे.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq