उत्तराखंड: जंगल की आग से निपटने में उदासीन रवैये को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकारा

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में जंगल की आग से निपटने में लापरवाह रवैये को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई और मुख्य सचिव को तलब किया है. कोर्ट ने जंगल की आग से निपटने के लिए राज्य को केवल 3.15 करोड़ रुपये उपलब्ध कराने पर केंद्र के प्रति भी नाराज़गी व्यक्त की है.

उत्तराखंड के जंगल में लगे आग को बुझाने की कोशिश करते लोग. (फोटो साभार: X/@kaidensharmaa)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तराखंड में जंगल की आग से निपटने में लापरवाह रवैये को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई और मुख्य सचिव को तलब किया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को 17 मई को उसके सामने पेश होकर यह जवाब देने का आदेश दिया कि जंगल की आग को रोकने में राज्य के ‘लापरवाह’ दृष्टिकोण के बारे में उसने क्या किया है.

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने जानना चाहा कि वन विभाग के अधिकारियों को चुनाव ड्यूटी पर क्यों तैनात किया जा रहा है, जबकि चुनाव आयोग ने विभाग को छूट दी थी और इसे रोकने का निर्देश दिया था.

अदालत ने जंगल की आग से निपटने के लिए राज्य को केवल 3.15 करोड़ रुपये उपलब्ध कराने पर केंद्र पर भी नाराजगी व्यक्त की.

पीठ ने कहा कि उसे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि जंगल की आग को नियंत्रित करने में राज्य का दृष्टिकोण उदासीन है.

चुनाव ड्यूटी पर वन अधिकारियों के बारे में जस्टिस गवई ने राज्य सरकार से कहा, ‘ऐसा लगता है कि आप कोई न कोई वजह ढूंढ रहे हैं. चुनाव आयोग ने पहले ही वन विभाग के कर्मचारियों को छूट दे दी है, तो आपने उन्हें (चुनाव ड्यूटी के लिए) क्यों लिया है?’

राज्य के अधिकारियों ने बताया कि कुछ फील्ड अधिकारियों को पहले चरण में चुनाव ड्यूटी पर तैनात किया गया था और यह अब खत्म हो गया है. उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव ने जिलाधिकारियों को लिखा है कि आग लगने की घटनाओं को देखते हुए वन अधिकारियों को चुनाव ड्यूटी से छूट दी जाए.

कोर्ट ने वन विभाग में रिक्तियों को लेकर भी सवाल किए. जस्टिस गवई ने पूछा, ‘इतनी सारी रिक्तियां क्यों हैं?’

विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जवाब दिया, ‘हमारे पास ये रिक्तियां काफी समय से हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हम उन्हें भरने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. पिछले साल हम 1,500 वन रक्षकों आदि की भर्ती कर सके. हम उम्मीद कर रहे हैं कि राज्य लोक सेवा आयोग जल्द ही बाकी की भर्ती की प्रक्रिया शुरू करेगा.’

राज्य ने तर्क दिया कि जंगल की आग की घटनाएं अन्य राज्यों में भी हो रही हैं और वर्तमान में उत्तराखंड में आग लगने की तीन घटनाएं हुई हैं.

जस्टिस मेहता ने कहा कि समाचारों से संकेत मिलता है कि पूरे देश में 300 से अधिक आग की घटनाओं में से 280 अकेले उत्तराखंड में हुई थीं. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रमुख कारण चीड़ के पत्ते हैं और पूछा गया कि मौसम शुरू होने से पहले उन्हें हटाने की क्या योजना है?

राज्य के वकील ने कहा कि सरकार स्थानीय लोगों को इसे एक निश्चित मूल्य पर एकत्र करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है और इस वर्ष 2,300 मीट्रिक टन पहले ही एकत्र किया जा चुका है. उन्होंने बताया कि इनसे गोलियां बनाने की इकाइयां भी चालू हैं.

अदालत ने कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं बढ़ेंगी और राज्य को उनसे निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले सप्ताह ‘पिरूल लाओ-पैसे पाओ’ मिशन की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत जंगल की आग को रोकने के लिए स्थानीय ग्रामीणों और युवाओं द्वारा जंगल में पड़े पिरूल (चीड़ के पेड़ की पत्तियां) को एकत्र किया जाएगा, वजन किया जाएगा और फिर निर्धारित पिरूल संग्रह केंद्र में संग्रहीत किया जाएगा.

बुधवार को मुख्यमंत्री ने एक्स पर कहा, ‘जंगलों में आग लगने का एक मुख्य कारण पिरूल है. इसके निस्तारण के लिए हम आम लोगों के साथ मिलकर अभियान चला रहे हैं. ‘पिरूल लाओ, पैसे पाओ’ अभियान के तहत बहुत से लोग पिरूल एकत्र कर रहे हैं और इसे 50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से सरकार को बेच रहे हैं.’

धामी ने कहा, ‘इसका व्यापक असर भी देखने को मिल रहा है. वर्तमान में इस अभियान के कारण जंगल में आग की घटनाओं में काफी कमी आई है और वन क्षेत्र के आसपास रहने वाले ग्रामीणों को भी आय हो रही है.’