सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा, मतदान प्रतिशत के आंकड़े वेबसाइट पर डालने में देरी क्यों?

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आवेदन में मतदान प्रतिशत का ख़ुलासा करने में चुनाव आयोग द्वारा दिखाई गई 'अनुचित देरी' पर आपत्ति जताई गई है, क्योंकि मौजूदा लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के आंकड़ों का खुलासा मतदान समाप्ति के 11 दिन बाद और दूसरे चरण का ख़ुलासा मतदान समाप्ति के 4 दिन बाद किया गया था.

(फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर एक याचिका के बाद मौजूदा लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों के प्रमाणिक (और अंतिम) मतदान प्रतिशत के खुलासे पर भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) से जवाब मांगा. याचिका में कहा गया है कि मतदान समाप्ति के तुरंत बाद जारी अस्थायी मतदान प्रतिशत के मुकाबले अंतिम मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में 6% की वृद्धि देखी गई.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनाव आयोग को अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है और मामले को छठे चरण के मतदान की पूर्व संध्या 24 मई को सुनवाई के लिए निर्धारित किया है, और आयोग से आंकड़े तुरंत अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में असमर्थता का कारण बताने को कहा है.

याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण द्वारा प्रस्तुत याचिका में कहा गया है कि 19 और 26 अप्रैल को दो चरणों के लिए मतदान समाप्त होने के तुरंत बाद, ईसीआई ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अनुमानित मतदान प्रतिशत के आंकड़े जारी किए, जो पहले चरण में 60% और दूसरे चरण में शाम 7 बजे तक 60.96% थे. इसके बाद, 30 अप्रैल को प्रकाशित संशोधित आंकड़ों में दोनों चरणों के लिए कुल मतदान के आंकड़े 66.14% और 66.71% रहे, जो लगभग 6% की वृद्धि दिखाते थे.

मतदान प्रतिशत आमतौर पर अंतिम मतदान प्रतिशत जारी होने के बाद बढ़ता ही है क्योंकि मतदान दलों को भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण इलाकों में स्थित दूर-दराज के मतदान केंद्रों से लौटने में समय लगता है, जो अन्य चीजों के अलावा मौसम की स्थिति पर भी निर्भर करता है. डेटा अपडेट करने में देरी किसी निर्वाचन क्षेत्र में पुनर्मतदान के कारण भी हो सकती है. हालांकि, इस बार अंतराल अधिक रहा है.

अदालत ने चुनाव आयोग के वकील से अगली तारीख पर निर्देश लेकर आने को कहा. साथ ही, अदालत ने आयोग से पूछा कि मतदान प्रतिशत के आंकड़े वेबसाइट पर अपलोड करने में देरी क्यों हुई?

अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा, ‘आप किस आधार पर अस्थायी मतदान प्रतिशत का खुलासा करते हैं. क्या यह फॉर्म 17सी पर आधारित है? इसे वेबसाइट पर डालने में क्या कठिनाई है?’

भूषण ने कहा कि मतदान केंद्र के प्रत्येक मतदान अधिकारी को फॉर्म 17सी भरकर रिटर्निंग अधिकारी को जमा करना आवश्यक होता है. उन्होंने कहा, इस फॉर्म में मतदान के वास्तविक आंकड़े शामिल होते हैं जिन्हें चुनाव आयोग द्वारा वेबसाइट अपलोड करने की जरूरत होती है.

चुनाव आयोग के वकील ने बताया कि मतदान पूरा होने के बाद रिटर्निंग अधिकारी पूरे निर्वाचन क्षेत्र से डेटा एकत्र करता है, जिसमें समय लगता है. वहीं कुछ निर्वाचन क्षेत्र दूर-दराज के स्थानों पर हैं, कुछ अन्य निर्वाचन क्षेत्र भी हैं जहां पुनर्मतदान का आदेश दिया गया है.

शर्मा ने कहा, ‘यह आवेदन 9 मई को दायर किया गया है और इसका एक निर्धारित पैटर्न है. इसकी शुरुआत मतदाता सूची और ईवीएम पर सवाल उठाने से हुई और अब मतदान प्रतिशत पर सवाल उठाए जा रहे हैं. यह मुद्दा सिर्फ नए मतदाताओं के मन में संदेह पैदा करने के लिए है. इस तरह की धारणा मतदान प्रतिशत को प्रभावित करती है.’

बता दें कि एडीआर ने 2019 में ईवीएम पर चिंता जताते हुए एक याचिका दायर की थी, उसमें ही यह आवेदन जोड़ा गया है.

एडीआर के आवेदन में मतदान के आंकड़ों का खुलासा करने में ईसीआई द्वारा दिखाई गई ‘अनुचित देरी’ पर आपत्ति जताई गई है क्योंकि पहले चरण के मतदान के आंकड़ों का खुलासा 19 अप्रैल को मतदान समाप्त होने के 11 दिन बाद और दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल को समाप्त होने के 4 दिन बाद किया गया था.

आवेदन में कहा गया है, ‘मतदाताओं के विश्वास को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि ईसीआई को अपनी वेबसाइट पर मतदान समाप्ति के 48 घंटे के भीतर सभी मतदान केंद्रों के फॉर्म 17सी के भाग- I (रिकॉर्ड किए गए मतों की संख्या) की स्कैन प्रतियों का खुलासा करने का निर्देश दिया जाए, जिसमें डाले गए मतों के प्रमाणित आंकड़े होते हैं.’

द हिंदू के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में आयोग से आंकड़े तुरंत अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में असमर्थता का कारण बताने को कहा.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने आयोग के वकील से पूछा, ‘प्रत्येक मतदान अधिकारी शाम 6 या 7 बजे के बाद मतदान के आंकड़े सौंप देता है. इसके बाद रिटर्निंग अधिकारी के पास पूरे निर्वाचन क्षेत्र का डेटा होगा. आप इसे वेबसाइट पर क्यों नहीं डालते हैं?’